बच्चों के बस्ते का बोझ हुआ कम : पालक अपनी मानसिकता भी बदलें
संदीप कुलश्रेष्ठ
हाल ही में मध्यप्रदेश सरकार ने प्रदेश में स्कूली बच्चों के बस्तों का बोझ कम करने के लिए कारगार प्रयास किए हैं। मध्यप्रदेश में स्कूली बैग की पॉलिसी नये सिरे से लागू कर दी गई। इसके अनुसार कक्षा 1ली से 10वीं तक के बच्चों के बस्तों का बोझ निर्धारित कर दिया गया है। इस नई नीति के अनुसार जिला शिक्षा अधिकारी को हर तीन महीने में स्कूलों में जाकर आकस्मिक रूप से बच्चों के बस्तों का वजन की जाँच करना अनिवार्य कर दिया गया है। किन्तु सिर्फ इतना ही पर्याप्त नहीं होगा। पालकों को भी अपनी मानसिकता बदलनी होगी। अपने पाल्य को अच्छा इंसान और श्रेष्ठ नागरिक बनाने के लिए कौन सी शिक्षा की आवश्यकता है ?
10वीं तक के बच्चों के बस्तों का वजन तय -
मध्यप्रदेश की स्कूल बैग की नई पॉलिसी 2020 के अनुसार प्रदेश के सभी सरकारी, गैर सरकारी और अनुदान प्राप्त स्कूल में कक्षा 1ली से कक्षा 10वीं तक के बच्चों पर बस्तों का होमवर्क का बोझ भी कम होगा। इसके अनुसार कक्षा 1ली से 5वीं तक के बच्चों के बस्ते का वजन 1.6 से 2.5 किलोग्राम तक रहेगा। कक्षा 6ठी से 8वी तक के बच्चों के बस्तों का वजन 2.0 किलोग्राम से 4.0 किलोग्राम तक का वजन निर्धारित किया गया है। कक्षा 9वीं से 10वीं तक के बच्चों के बस्तों का वजन 2.5 किलोग्राम से 4.5 किलोग्राम तक तय किया गया है। कक्षा 11वीं और 12वीं तक के बच्चों के बस्तों का वजन शाला प्रबंधन समिति स्ट्रीम के आधार पर तय करेगी। उनके बस्तों में राज्य सरकार और एनसीआरटी द्वारा निर्धारित की गई पुस्तकों को ही रखा जाएगा।
पहली और दूसरी कक्षा में होमवर्क समाप्त -
मध्यप्रदेश में नए सिरे से लागू नीति के अनुसार पहली कक्षा और दूसरी कक्षा तक के विद्यार्थियों को अब होमवर्क नहीं दिया जा सकेगा। कक्षा 3 से 5वीं तक के विद्यार्थियों को सप्ताह में 2 घंटे, कक्षा 6ठीं से 8वीं तक प्रतिदिन 1 घंटे और कक्षा 9वीं से 12वीं तक के बच्चों को हर दिन अधिकतम 2 घंटे का ही होमवर्क दिया जा सकेगा।
नोटिस बोर्ड पर बताया जाएगा बस्तों का वजन -
प्रदेश के सभी सरकारी और गैर सरकारी अनुदान प्राप्त स्कूलों में यह अनिवार्य कर दिया गया है कि वे अपने नोटिस बोर्ड पर कक्षावार बच्चों के बस्तें के वजन का चार्ट लगावें। इसके साथ ही कम्प्यूटर, नैतिक शिक्षा और सामान्य ज्ञान की कक्षाएं बिना पुस्तकों के लगानी होगी। सप्ताह में एक दिन बच्चों को बिना बैग के बुलाना अनिवार्य किया गया है। इसमें वोकेशनल एक्टिविटी कराना अनिवार्य किया गया है।
पालक भी मानसिकता बदलें -
राज्य सरकार ने तो मध्यप्रदेश में स्कूल बैग पॉलिसी नए सिरे से लागू कर दी है, किन्तु यहाँ यह उल्लेखनीय है कि इन बच्चों के माता-पिता और पालकों को भी अपनी मानसिकता बदलनी होगी। कई पालकों में यह गलत मानसिकता दिमाग में भर गई है कि जिस स्कूल में जितनी अधिक पुस्तकें और जितना अधिक होमवर्क दिया जाता है, वह स्कूल उतना ही अच्छा होता है। उन्हें अपनी इस मानसिकता को बदलना होगा। साथ ही सरकारी , गैर सरकारी और अनुदान प्राप्त स्कूलों के प्रबंधकों की भी जिम्मेदारी है कि राज्य सरकार की नई बैग पॉलिसी को ईमानदारी और सख्ती से लागू करें।
अच्छे शिक्षण संस्थान भी है मौजूद -
देश प्रदेश के हर शहर में कई ऐसे शिक्षण संस्थान, गुरुकुल भी मौजूद हैं जो बच्चो को बस्ते का बोझ नहीं बढ़ाते, अपितु उन्हें संस्कारी शिक्षा प्रदान करते हैं। बस जरूरत है पालकों द्वारा ऐसे शिक्षण संस्थानों को पहचानने की। वर्तमान में अन्य दिखावटी क्रियाकलापों की वजह से पालक ऐसे शिक्षण संस्थानों की ओर आकर्षित हो रहे हैं और बच्चे भारी बस्तों के बोझ के तले दबे जा रहे है। अब अभिभावकों को जरूरत है कि अपने मासूम बच्चों के लिए सही शिक्षण संस्थान चुने और उन्हें वहां भेजे जहाँ संस्कारमय शिक्षा ग्रहण करने के साथ वे भविष्य में अच्छे इंसान , देश के जिम्मेदार नागरिक और परिवार के जिम्मेदार सदस्य बन सके, न कि शिक्षा के क्षेत्र में चल रही प्रतिस्पर्धा में उन्हें झोंक दें।
बच्चों का बचपन बचाना होगा -
बच्चें के तीन साल के होते ही उसके माता-पिता और अभिभावक उसे किसी अच्छे अंग्रेजी स्कूल में दाखिला दिलाने के लिए उतावले हो उठते है। वे गैर सरकारी और अनुदान प्राप्त स्कूलों के प्रबंधक पालकों की इस मानसिकता का लाभ उठाते है और वे अपने स्कूलों में राज्य सरकार द्वारा निर्धारित की गई पुस्तकों के अलावा भी अनावश्यक गतिविधियों से संबंधित पुस्तकों का बोझ बच्चों पर लाद देते हैं। छोटे बच्चों से भी वे होमवर्क करवाकर उनसे उनका बचपन छीन रहे हैं। इसलिए बच्चों के माता-पिता और अभिभावकों को समझना होगा वे बच्चों के बचपन को एक प्रकार से निजी स्कूलों की प्रतिस्पर्धा के जाल में फंसा देते है। पालकों को इस प्रतिस्पर्धा से बचकर बच्चों से उनका बचपन छीनने से बचाना होगा। स्कूली बच्चों के बस्तों का बोझ कम करने का राज्य सरकार का प्रयास अभिनंदनीय है। अब बारी है, स्कूल प्रबंधकों और बच्चों के पालकों की।
’’’ ’’’ ’’’