सुख का दाता नहीं दुःख का दाता, सिर्फ अपनों का साथी
वरिष्ठ पत्रकार, श्री श्रीप्रकाश दीक्षित
ना मेरा ना तेरा यह शिवराज का है मध्यप्रदेश...?
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एयर इंडिया के चेयरमेन और एमडी तथा रेलवे बोर्ड के चेयरमैन के अलावा कई मर्तबा मध्यप्रदेश पर्यटन विकास निगम के एमडी रहे अश्विन लोहानी के दौर में निगम का स्लोगन खासा मशहूर हुआ था-एम पी...ईईईई..गजब है..! अब यह जुमले में बदल कर बदनाम हो रहा है.बाद में मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार को राष्ट्रगान की तर्ज पर मध्यप्रदेश गान की सूझी.तब उसके आग्रह पर प्रदेश के दिग्गज पत्रकार महेश श्रीवास्तव ने गीत रचा- सुख का दाता,सब का साथी,मेरा मध्यप्रदेश है.दुर्भाग्य से शिवराज सरकार की विफलताओं से इस गान का संदेश कभी मूर्त रूप नही ले पाया.सरकार अपनी लोक लुभावनी योजनाओं के विशाल विज्ञापन अख़बारों में छपवा बेजा जनधन लुटा रही है पर जमीन पर इनमे जमकर भ्रष्ट्राचार होता है.दिवालिया जैसे प्रदेश के निगम मंडलों में थोक में अपनों को मंत्री और राज्यमंत्री का दर्जा दिया गया है.
प्रदेश में सरकारी अस्पतालों और स्कूलों में डाक्टरों और मास्टरों की कमी और इनके भवनों की दुर्दशाऔर संसाधनों के अभाव पर रोज ही फोटो/खबरें छपती हैं.ताजा खबर जबलपुर के बरगी की है जहाँ सरकारी अस्पताल में डाक्टर के ना होने से पांच साल के बच्चे की जान चली गई.एनडीटीवी के मुताबिक मध्यप्रदेश में डाक्टरों के चार हजार से ज्यादा पद खली पड़े हैं.सरकारी योजनाओं में भ्रष्टाचार का एक उदाहरण कन्या विवाह का है जिसकी पोल भाजपा के ही विधायक ने खोली.इसके बाद जिम्मेदार अधिकारी,जो एक मंत्री के रिश्तेदार हैं,जेल में हैं.प्रदेश में सड़क दुर्घटनाओं में हर 42 मिनट में एक मौत होती है क्योंकि सड़कों की बिना होमवर्क बेरहम खुदाई और आराम फरमाती गौमाता को बचाते,उनसे बचते लोग जान दे रहे हैं,घायल हो रहे हैं.इन दिनों तो सड़कों पर गड्ढ़े नहीं बल्कि गड्ढों पर सड़कें नजर आती हैं.
दो बूँद पानी के लिए गाँव-कस्बों में महिलाएँ और बच्चे जान हथेली पर रख कर भटकते देखे जा सकते हैं.कुपोषण से सबसे ज्यादा बच्चे हमारे प्रदेश में ही दम तोड़ देते हैं तो अवयस्क बालिकाओं के लापता होने की सबसे ज्यादा घटनाएं भी हमारे सूबे में ही हो रही हैं.औसतन हर तीन घंटे में एक बालिका दुष्कर्म का शिकार होती है.आदिवासियों पर अत्याचार की सबसे ज्यादा वारदातें यहीं होती है तो आत्महत्याओं की घटनाओं में प्रदेश तीसरे नंबर पर है. राज्य सरकार की नीति है की अदालतों में तीन साल से अधिक तक कोई प्रकरण लंबित नहीं रहना चाहिए पर यहाँ आपको 11 साल पुराने प्रकरण भी मिल जाएगे. प्रदेश की अदालतों में 4.17 लाख प्रकरण लंबित हैं.
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