यह आने वाले तूफान का संकेत तो नहीं!.
राज-काज
वरिष्ठ पत्रकार, दिनेश निगम ‘त्यागी’
प्रदेश में जब कांग्रेस की सरकार थी और कमलनाथ मुख्यमंत्री, तब ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थक सरकार की नाक में दम किए रहते थे। अलग शक्ति केंद्र के तौर पर बैठकों का दौर चलता था, अपनी ही सरकार के कामकाज पर उंगली उठाई जाती थी। अब प्रदेश में भाजपा की सरकार है और सिंधिया अपने समर्थकों के साथ भाजपा में। सिंधिया समर्थक एक मंत्री महेंद्र सिंह सिसोदिया ने जब प्रदेश के मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस को निरंकुश कहा, एक एसपी के खिलाफ कार्रवाई के लिए पत्र लिखा तो पुरानी याद ताजा हो गई। कई मस्तिक में यह सवाल कौंधने लगा कि ‘कहीं यह आने वाले तूफान का संकेत तो नहीं’? मुख्यमंत्री से चर्चा के बाद एक मंत्री सिसोदिया शांत हुए तो सिंधिया समर्थक दूसरे मंत्री ब्रजेंद्र सिंह यादव की नाराजगी सामने आ गई। उन्होंने कहा कि सहकारिता से जुड़े एक मामले में ‘न कलेक्टर ने मेरे पत्र पर ध्यान दिया, न ही सहकारिता आयुक्त ने’। हालांकि दोनों में से किसी ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की आलोचना नहीं की। पर सर्वाजनिक तौर पर मुख्य सचिव, कलेक्टर, एसपी के खिलाफ बोलने से साफ है कि ‘दाल में कुछ काला’ जरूर है। वैसे भी इस समय बदलाव की अटकलों का दौर है और सिंधिया भाजपा में संबंध सुधारो अभियान चलाए हुए हैं।
शिवराज ने फिर खींच दी सबसे बड़ी लकीर....
ऐसा नहीं है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के कार्यकाल में कमियां नहीं है, बहुत सारी हैं। इनकी आलोचना भी होती है, लेकिन अचानक वे ऐसा कुछ कर जाते हैं कि उनकी लकीर दूसरों से बड़ी खिंच जाती है। उम्र कैद की सजा काटने वालों को लेकर लिया गया उनका फैसला इस दिशा में एक और कदम है। निर्णय इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि गुजरात सरकार बलात्कार के आरोपियों को छोड़ने को लेकर कटघरे में है। एक बड़ा वर्ग इसे लेकर आंदोलित है। सरकार के निर्णय की आलोचना कर रहा है। ऐसे में शिवराज का फैसला कि ‘उम्र कैद की सजा भुगतने वाले आरोपियों को पूरी उम्र जेल में रहना पड़ेगा, उन्हें छोड़ा नहीं जाएगा’, साहसिक है और दूसरों से उन्हें अलग खड़ा करता है। फैसले में कहा गया है, ‘आजीवन कारावास पाए ऐसे कैदी जो अपने अच्छे आचरण की वजह से समय से पहले रिहा किए जाते हैं, उनकी श्रेणियां बनाई जाएंगी। बलात्कारी, आतंकी, देश के प्रति अपराध करने वाले और सरकारी कर्मचारियों की ड्यूटी के दौरान हत्या करने वाले अपराधियों को सजा में कोई छूट नही दी जाएगी। उन्हें आखिरी सांस तक जेल में ही रहना होगा।’ शायद, ऐसे निर्णयों की बदौलत ही शिवराज सर्वाधिक समय तक मुख्यमंत्री बनने का रिकॉर्ड बना चुके हैं।
कैलाश के लिए ‘राहत’ में भी ‘आफत’
पूरे सत्रह साल बाद भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय और विधायक रमेश मैंदोला से जुड़ी पेंशन घोटाले की फाइल न्यायालय ने बंद कर दी है। फौरी तौर पर कैलाश के लिए यह राहत भरा फैसला लगता है। उन्होंने अपनी प्रतिक्रिया में कहा भी कि ‘सांच को आंच नहीं’, कोई घोटाला हुआ ही नहीं, इसलिए एक दिन यह होना ही था। दूसरी तरफ यदि जानकारों की माने तो इससे कैलाश की मुश्किल कम नहीं हुई है। एक, न्यायालय ने यह कह कर मामले में प्रश्नचिन्ह लगा दिया है कि 17 साल गुजरने के बाद भी अभियोजन की स्वीकृति नहीं मिली, इसलिए प्रकरण बंद किया जा रहा है। साफ है कि कैलाश दोष मुक्त अथवा आरोप से बरी नहीं हुए हैं, उनके रसूख के चलते अभियोजन की स्वीकृति नहीं मिली। इसलिए इस घोटाले की छाया उनके राजनीतिक कैरियर पर पड़ती रहेगी। दूसरा, न्यायालय ने यह भी कहा है कि यदि कभी फरियादी को अभियोजन की स्वीकृति प्राप्त हो जाती है तो वह कार्रवाई के लिए स्वतंत्र है। इससे मामला कभी भी न्यायालय की दहलीज तक फिर जा सकता है। इसलिए निर्णय पर न किसी को ज्यादा खुश होना चाहिए और न ही दुखी। इसे यथास्थिति के तौर पर लिया जाना चाहिए। यह ‘राहत’ कभी भी ‘आफत’ भी ला सकती है।
‘बातें हैं बातों का क्या, थमती ही नहीं’
प्रदेश में जितनी राजनीतिक उठापटक बाहर दिख रही है, उससे कहीं ज्यादा हलचल अंदर है। इसके कारण भाजपा की सरकार और संगठन में नेतृत्व परिवर्तन की कयासो का कभी न थमने वाला सिलसिला जारी है। केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री कैलाश विजयवर्गीय प्रमुख किरदार के तौर पर उभरे हैं। उनकी मुलाकात हुई तो बदलाव के कयास शुरू हुए, सिंधिया एक अन्य केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल से मिले तो अटकलों को और बल मिला। अमित शाह और अजय जामवाल के दौरों से भी ऐसे की कयास लगे थे। सरकार और संगठन के मुखिया शिवराज सिंह चौहान एवं वीडी शर्मा अपनी सक्रियता से ऐसी अटकलों पर विराम लगाने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। मुख्यमंत्री चौहान हर रोज सुबह से लेकर देर रात तक सक्रिय दिखाई पड़ते हैं। वे भाजपा नेतृत्व के सामने ऐसे मुख्यमंत्री के तौर पर उभरे हैं, जो पार्टी के अन्य सभी मुख्यमंत्रियों की तुलना में ज्यादा सक्रिय और लोगों के बीच रहते हैं। इसी बीच मुख्यमंत्री दिल्ली गए और राष्ट्रपति, केंद्रीय मंत्रियों के साथ भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा से भी मिले। कयासों का घोड़ा फिर दौड़ पड़ा। अधिकृत तौर पर अभी किसी ने नेतृत्व परिवर्तन की बात नहीं कही, पर ‘बातें हैं बातों का क्या, वे थमती ही नहीं’।
‘गए थे हरि भजन को ओटन लगे कपास’
राजनीतिक तौर पर प्रदेश का विंध्य अंचल लगातार चर्चा में है। ताजा मामला चित्रकूट की सिद्धा पहाड़ी और विधायकों की मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एवं प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा से मुलाकात का है। धार्मिक महत्व की सिद्धा पहाड़ी को लेकर विधायक नारायण त्रिपाठी ने अपनी ही सरकार के खिलाफ आर-पार के संघर्ष का ऐलान कर दिया। कांग्रेस भी सरकार को घेर रही थी। सरकार बैकफुट पर आई और मुख्यमंत्री ने पहाड़ी के उत्खनन का ठेका देने से इंकार कर दिया। शिवराज ने अपने ट्वीट में कहा कि आस्था और श्रद्धा के केंद्र सिद्धा पहाड़ी में उत्खनन किसी भी कीमत पर नहीं होगा। इस संदर्भ में कलेक्टर सतना को निर्देश दे दिए गए हैं। यह मामला खत्म। अब बारी सरकार की थी। विंध्य अंचल के विधायक शिवराज-वीडी से भोपाल में आकर मिले और अंचल को मंत्रिमंडल में प्रतिनिधित्व देने के साथ सूखाग्रस्त घोषित करने की मांग की। सवाल हुआ कि इतने विधायक होने के बावजूद पंचायत, निकाय चुनाव में भाजपा क्यों हारी तो सभी की बोलती बंद हो गई। बस क्या था, इसके बाद सभी सरकार की तारीफ में कसीदे पढ़ने लगे और एकजुट होकर काम करने की नसीहत लेकर बैरंग लौट आए। इसे ही कहते हैं, ‘गए थे हरि भजन को ओटन लगे कपास’।
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