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देश में बढ़ते दुष्कर्म : कानून में हो सख्त बदलाव


  डॉ. चन्दर सोनाने
                       मध्यप्रदेश के लिए एक ओैर शर्मनाक घटना है । यूं तो पूरे देश के लिए शर्मनाक है। किंतु, मध्यप्रदेश एक बार फिर नाबालिक लड़कियों से दुष्कर्म के मामले में एक नम्बर पर आ गया है। वर्ष 2021 में पूरे देश में नाबालिक बच्चियों से दुष्कर्म के 33,036 मामले दर्ज भी है। इसमें से अकेले मध्यप्रदेश में देश में सर्वाधिक 3,515 मामले दर्ज किए गए। अर्थात् हर तीन घंटें में एक बच्ची से दुष्कर्म हुआ। वर्ष 2020 में भी लगभग यही स्थिति थी। उस वर्ष नाबालिक बच्चियों से दुष्कर्म के 3,259 प्रकरण दर्ज किए गए। उस वर्ष भी मध्यप्रदेश देश में प्रथम स्थान पर था। यह मध्यप्रदेश और देश के लिए शर्मनाक है।
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो ( एनसीआरबी ) की रिपोर्ट पिछले दिनों जारी हुई। वर्ष 2021 में मध्यप्रदेश में कुल दुष्कर्म के मामले 6,462 दर्ज किए गए। इसमें नाबालिक, बालिक और बुजुर्ग महिलाएं भी शामिल है। यह पूरे प्रदेश के लिए शर्मनाक है। वर्ष 2020 में मध्यप्रदेश में दुष्कर्म के कुल 5,598 केस दर्ज किए गए। लगातार दो साल तक मध्यप्रदेश में नाबालिक बच्चियों के दुष्कर्म के मामले में और कुल दुष्कर्म के मामले में प्रथम स्तर पर बने रहना यह दिखाता है कि कहीं न कहीं राज्य सरकार के प्रयासों में कमी रह गई। दुष्कर्मियों को किसी बात का डर नहीं है। विषेशकर नाबालिक बच्चियों के साथ दुष्कर्म के मामले निरंतर बढ़ते रहना हम सबको सोचने के लिए मजबूर करता है !
                      अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों के अत्याचार के मामले में भी मध्यप्रदेश प्रथम स्थान पर है। वर्ष 2021 में मध्यप्रदेश में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अत्याचार अधिनियम के तहत 2,627 प्रकरण दर्ज किए गए। वर्ष 2020 की तुलना में यह करीब 9.38 प्रतिशत ज्यादा है। वर्ष 2020 में इनसे संबंधित कुल 2,401 मामले दर्ज हुए थे। इसके साथ ही मध्यप्रदेश में दलितों से अत्याचार के कुल 7,214 प्रकरण भी दर्ज किए गए। 
                       नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार देश में बढ़ रही आत्महत्या के प्रकरण झकझोरने वाले है। वर्ष 2021 में देशभर में आत्महत्या के 1 लाख 64 हजार मामले दर्ज किए गए। प्रति 10 लाख व्यक्तियों में देश में 120 लोगों ने आत्महत्या की। ये आँकड़ें बताते है कि साल 1967 के बाद यह संख्या सबसे ज्यादा है। वर्ष 2020 में आत्महत्या के 1 लाख 53 हजार प्रकरण दर्ज किए गए थे। ये आँकड़ें चौंकाने वाले हैं। आत्महत्या के इन मामलों की समाजशास्त्र की दृष्टि से भी जाँच करने की आवश्यकता है। आत्महत्या के कारणों का पता लगाया जाना चाहिए और उन प्रकरणों के अध्ययन के बाद ऐसे मामले की पुनरावृत्ति न हो, इसके लिए केन्द्र सरकार को जहाँ कारगार उपाय उठाने की जरूरत है, वहीं हम सब देश के नागरिकों की भी अहम जिम्मेदारी है। हम सभी को अपने आस-पास देखना चाहिए कि कुंठा और अवसाद से पीड़ित व्यक्तियों से मानवीय और सहानुभूतिपूर्वक व्यवहार किया जाए।
                       नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट हर साल हमें चौंकाती है और कुछ दिनों के बाद वह रिपोर्ट भूला दी जाती है ! केन्द्र सरकार को राज्यों की सरकारों से मिलकर दुष्कर्मो को प्रभावी ढंग से रोकने के लिए कारगार कदम उठाने की जरूरत है। इसके साथ ही जो प्रकरण दर्ज हुए हैं, उनमें समय पर पीड़ितों को न्याय मिले और तेजी से प्रकरणों का निराकरण किया जाना आवश्यक है। इसके लिए केन्द्र सरकार को कानून में परिवर्तन करने की भी आवश्यकता है। व्यवहारिक रूप से यह देखा जा रहा है कि दुष्कर्म के अपराधी जमानत पर छूट जाते है और बरसों केस चलने से न्याय में देरी होती है। इसके लिए केन्द्र सरकार को प्रकरणों के निराकरण के लिए हर स्तर अर्थात् जिला, उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय पर समय सीमा तय करना चाहिए। इसके लिए एक बात यह भी है कि एक बार आजीवन करावास या फाँसी की सजा हो जाने पर उसकी हर स्तर पर अपील की भी समय सीमा तय की जानी चाहिए। राष्ट्रपति को भी दयायाचिका का निराकरण करने के लिए अधिकतम एक माह का समय देना चाहिए। एक बार राष्ट्रपति द्वारा दया याचिका खारिज कर देने के बाद फिर आगे भविष्य में कहीं पर भी उसकी पुनर्विचार याचिका स्वीकार करने पर प्रतिबंध लगा दिया जाना चाहिए। कानून में इस प्रकार के सख्त प्रावधान किए जाने पर मुमकिन है ऐसी विचारधारा लाने के पहले व्यक्ति सौ बार सोचे !
                           सन् 2002 के गुजरात दंगों के दौरान रनधिकापुर गाँव में बिलकिस बानो से सामूहिक दुष्कर्म और उनकी 3 साल की मासूम बेटी के साथ परिवार के 7 लोगों की हत्या करने वाले 11 दोषी आजीवन कारावास की सजा भुगत रहे थे। उन्हें गुजरात सरकार ने पिछले 15 अगस्त को माफी देकर जेल से रिहा कर दिया। इन जघन्य दुष्कर्मियों और हत्यारों के रिहा होने पर गोधरा में विश्व हिन्दू परिषद द्वारा पुष्पमाला से सार्वजनिक स्वागत और अभिनंदन किया गया । जबकि वर्ष 2014 में बनाई गई एक नीति में यह स्पष्ट किया गया है, कि दुष्कर्म के अपराधियों को दोषमुक्त नहीं किया जा सकेगा। किन्तु इस नियम की खुलेआम गुजरात सरकार ने धज्जियाँ उड़ा दी और इन जघन्य अपराधियों को जेल से रिहा कर दिया। कानून में यह भी प्रावधान किया जाना चाहिए कि दुष्कर्म के ऐसे अपराधियों को पूरी सजा होने के पहले किसी हाल में छोड़ा नहीं जाएगा। जैसा कि हाल ही में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने इस संबंध में स्पष्ट रूप से यही कहा है। इसके साथ ही कानून में यह भी प्रावधान किया जाना चाहिए कि दुष्कर्म के अपराधियों का जेल से रिहा होने पर सार्वजनिक रूप से स्वागत अभिनंदन करने वालों  के विरूद्ध भी प्रकरण दर्ज किया जाना चाहिए और उन्हें भी सजा दी जानी चाहिए तभी ऐसे निंदनीय प्रयासों पर रोक लग सकेगी। देश के संवेदनशील व्यक्तियों का प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी से अनुरोध है कि वे इस दिशा में कानून में सख्त बदलाव लाकर दुष्कर्मियों पर प्रभावी रोक लगावें। 
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