क्या सच में राहुल-नाथ के बीच छत्तीस का आंकड़ा !
राज-काज
दिनेश निगम ‘त्यागी’
राष्ट्रीय स्तर पर वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद के कांग्रेस छोड़ने और गांधी परिवार खासकर राहुल गांधी पर हमले का मुद्दा कल से ही छाया है। जयराम रमेश, अशोक गहलोत, दिग्विजय सिंह सहित कांग्रेस नेताओं ने इसे लेकर अपने-अपने ढंग से आजाद को घेरा है, लेकिन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ की चुप्पी हतप्रभ करने वाली है। सवाल यह है कि क्या वास्तव में राहुल गांधी और कमलनाथ एक दूसरे को पसंद नहीं करते? क्या सच में दोनों के बीच छत्तीस का आंकड़ा है? पहले भी चर्चा थी कि कमलनाथ को राहुल पसंद नहीं करते। वे सोनिया गांधी के नजदीक हैं। उन्हीं की बदौलत वे मप्र कांग्रेस में सर्व-शक्तिमान हैं। आजाद ने कांग्रेस छोड़ते वक्त पांच पेज का जो पत्र लिखा है, इसमें सोनिया के नेतृत्व पर भी सवाल उठाया गया है। राहुल गांधी के लिए तो अपमानित करने वाली भाषा लिखी गई है। फिर भी कमलनाथ का आजाद को लेकर टिप्पणी न करने से स्पष्ट है कि ‘दाल में कुछ काला’ है। ये कयास भी लगाए जा रहे हैं कि असंतुष्टों के जी-23 समूह को कमलनाथ का समर्थन था। उनके खास विवेक तन्खा उसमें शामिल थे। आजाद इसी समूह का हिस्सा थे, इसलिए कमलनाथ उन पर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहते। जबकि आजाद ने कांग्रेस को तो बख्शा ही नहीं, गांधी परिवार की भी बखिया उधेड़ कर रख दी है।
जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी’-
यह चौपाई तुलसीदास कृत रामचरित मानस की है। इसे भगवान राम के संदर्भ में लिखा गया है। यह राजनीति के मौजूदा दौर में कई जगह फिट बैठने लगी है। बीते सप्ताह केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह मप्र के दौरे पर आए और इंदौर में केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपने बेटे के साथ भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री कैलाश विजयर्गीय के घर जाकर मुलाकात की। इन दोनों घटनाओं को ‘जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी’, की भावना से लिया और देखा जा रहा है। एक नजर है कि अमित शाह इस दौरे में दो प्रमुख नेताओं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा के कामकाज पर पीठ थपथपा गए, जबकि दूसरी नजर कहती है कि अजय जामवाल के बाद अमित शाह के दौरे के संकेत हैं कि प्रदेश भाजपा की राजनीति में कुछ बड़ा घटने वाला है। इसी प्रकार सिंधिया-विजयवर्गीय मुलाकात के भी कइ अर्थ निकाले जा रहे हैं। एक पक्ष भविष्य में सिंधिया को और बड़ी जवाबदारी मिलने की संभावना व्यक्त कर रहा है तो दूसरा विजयर्गीय की मप्र की राजनीति में वापसी की बात करने लगा है। एक राय यह भी है कि कैलाश विजयवर्गीय को अमित शाह के दौरे के दौरान इंदौर की बजाय भोपाल में उनके साथ होना चाहिए था। यही तो अपनी अपनी नजर है।
बेड़ा पार लगा पाएगी कमलनाथ की यह सख्ती !
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर गंभीर हैं और नकारा नेताओं के प्रति सख्त भी। पार्टी नेता नाथ के ये तेवर बैठकों में देख रहे हैं, व्यक्तिगत मुलाकातों में भी। हाल में हुई पार्टी की एक बड़ी बैठक में उन्होंने काम न करने वाले नेताओं की जमकर क्लास ली। उन्होंने कहा कि आपसे अच्छी तो बाल कांग्रेस है, काम के प्रति वहां आपसे ज्यादा उत्साह है। आप लोगों ने बंदूकों का मुंह सामने की बजाय अपनी ओर ही कर रखा है। जो काम नहीं करना चाहते, वे पद छोड़ दें वर्ना हटा दिए जाएंगे। जो चुनाव लड़ना चाहते हैं, वे अध्यक्ष सहित संगठन के पदों को त्याग दें। मिलने वालों की श्रंखला में सागर कांग्रेस के कुछ नेता जिलाध्यक्ष बनने की मंशा लेकर कमलनाथ से मिलने पहुंचे। नाथ ने सवाल किया कि निकाय और पंचायत चुनाव में किसके वार्डों में कांग्रेस जीती है तो सबके सिर नीचे हो गए। महापौर प्रत्याशी के पति ने कहा कि अधिकांश वार्ड हारे हैं। अंकलेश्वर दुबे ने कहा कि मेरा वार्ड जीता है। उनके साथ आए एक पार्षद ने भी कहा हमें अंकलेश्वर दुबे ने जिताया है। बावजूद इसके कमलनाथ ने कहा कि सागर में मेरे लोग हैं, उनसे पूछूंगा, सर्वे कराऊंगा, इसके बाद ही जिलाध्यक्ष बनाऊंगा। सवाल है कि क्या कमलनाथ ऐसे तेवरों से कांग्रेस का बेड़ा पार लगा पाएंगे?
प्रीतम’ विवाद से भाजपा को कितना ‘नफा-नुकसान’
कथावाचकों, ब्राह्मणों को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणी करने वाले भाजपा के निष्कासित नेता प्रीतम लोधी का मामला अलग मोड़ लेता दिख रहा है। प्रारंभ में लगा था कि भाजपा नेतृत्व ने ‘डैमेज कंट्रोल’ कर लिया है। प्रीतम को बुलाकर बात करने और भरोसे में लेने के बाद उसके खिलाफ कार्रवाई की गई है। अब मामला लोधी बनाम ब्राह्मण बनता दिख रहा है। प्रीतम लोधी और छतरपुर जिले के बागेश्वर धाम के पंडित धीरेंद्र शास्त्री आमने-सामने आ गए हैं। धीरेंद्र शास्त्री ने भी प्रीतम को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणी कर दी थी। उन्होंने कहा था कि यदि ब्राह्मण न होते तो किसी को अपने बाप का पता न चलता और न ही कोई भगवान राम को जान पाता। उन्होंने यहां तक कह डाला कि प्रीतम मेरे सामने आ जाए तो मैं मसल कर रख दूं। इसके बाद प्रीतम ने धीरेंद्र शास्त्री से जान का खतरा बता दिया। हालात ये हैं कि ब्राह्मण समाज प्रीतम लोधी का पुतला जला रहा है और लोधी समाज प्रीतम के साथ लामबंद होता दिख रहा है। प्रीतम के पक्ष में कथावाचक साधना भारती खड़ी हुईं और धीरेंद्र के समर्थन में उनके गुरू रामभद्राचार्य सामने आए। सवाल यह है कि इससे भाजपा को फायदा होगा या नुकसान। नुकसान की संभावना ज्यादा है, क्योंकि ब्राह्मण और लोधी दोनों भाजपा का वोट बैंक रहा है। लिहाजा, भाजपा नेतृत्व संभावित नुकसान का आकलन कर रहा है।
विंध्य में अपने ही बन रहे भाजपा के लिए मुसीबत
विंध्य अंचल में भाजपा के सामने विधानसभा के पिछले चुनाव में मिली बड़ी सफलता को बरकरार रखना सबसे बड़ी चुनौती है। नगर निगम रीवा में अपना महापौर जिता कर कांग्रेस के हौसले बुलंद हैं। अंचल के अन्य जिलों में भी उसे अपेक्षा से ज्यादा सफलता मिली है। विधानसभा का पिछला चुनाव हारे पूर्व नेता प्रतिपक्ष के चुरहट और सीधी जिले में कांग्रेस ने अच्छा प्रदर्शन किया है। पंचायत चुनाव में भाजपा के कई दिग्गजों के परिजनों को शिकस्त मिली है। ऐसे माहौल में एकजुटता से मैदान में होने की बजाय अपने विधायक ही भाजपा के लिए मुसीबत बन रहे हैं। मैहर के नारायण त्रिपाठी के तेवर पहले से बगावती हैं। विधायक केपी त्रिपाठी के वायरल वीडियो एवं जनपद पंचायत के एक अफसर की बेहरमी से पिटाई के कारण भाजपा की छीछालेदर हुई है। पार्टी नेतृत्व ने भाजपा के मंडल अध्यक्ष के खिलाफ तो कार्रवाई कर दी लेकिन नाराजगी विधायक के खिलाफ भी है। जन्माष्टमी के अवसर पर सिरमौर से भाजपा विधायक दिव्यराज सिंह एक मंदिर खुलवाने को लेकर धरने पर बैठ गए थे। यह मसला अब तक नहीं सुलझा है। इससे पहले रैगांव विधानसभा के उप चुनाव में भाजपा पराजय का सामना कर चुकी है। साफ है, भाजपा नेतृत्व के सामने सबसे बड़ी चिंता का कारण विंध्य अंचल बन गया है।
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