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पुष्प की अभिलाषा : दुष्कर्मियों और जघन्य हत्यारों के गले में न डाला जाऊं!


  डॉ. चन्दर सोनाने
                    सन् 2002 के गुजरात दंगों के दौरान रनधिकापुर गाँव में बिलकिस बानो से सामूहिक दुष्कर्म और उसकी 3 साल की मासूम बेटी के साथ ही परिवार के 7 लोगों की हत्या करने वाले उम्र कैद की सजा काट रहे 11 दोषियों को हाल ही में गुजरात सरकार ने 15 अगस्त को जेल से रिहा कर दिया। इन दुष्कर्मियों और हत्यारों के रिहा होने पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक की आनुषांगिक ईकाई विश्व हिन्दू परिषद द्वारा गोधरा में पुष्पहारों से उनका सार्वजनिक अभिनंदन किया गया ! जबकि 2014 में बनाई गई एक नीति में यह स्पष्ट कहा गया है कि दुष्कर्म के अपराधियों को दोषमुक्त नहीं किया जा सकेगा। इसके बावजूद गुजरात की भाजपा सरकार द्वारा इन दोषी करार दिए गए और आजन्म कैद की सजा भुगत रहे दोषियों की आगे की सजा माफ करते हुए जेल से रिहा करने का निंदनीय कार्य किया गया ! 
                   इसी मामले को लेकर मीडिया में जितना शोरगुल मचना था, दुख की बात है की उतना शोरगुल नहीं मचा ! किन्तु ऐसे मामले में साहित्यकार चुप नहीं रहते ! मध्यप्रदेश के उज्जैन निवासी सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार श्री शांतिलाल जैन ने हाल ही में प्रकाशित एक व्यंग्य रचना नए भारत की एक तस्वीर यह भी ! में इस घटना के संदर्भ में माखनलाल चतुर्वेदी की सुप्रसिद्ध रचना पुष्प की अभिलाषा का उल्लेख करते हुए उस पुष्प की मनोदशा, वेदना और व्यथा को अपनी वाणी दी है, जिस पुष्प की माला बनाकर विश्व हिन्दू परिषद के स्वयंसेवकां द्वारा दुष्कर्मियों और जघन्य हत्यारों के गले में पहनाई गई ! वह पुष्प हार में गुंथे दूसरे पुष्प से अपनी इच्छा प्रकट करते हुए कहता है कि “मैं मरना चाहता हूँ। वह उसे कहता है, सम्मान करने के उद्देश्य से जिस गले में हमें डाला गया है, वह नृशंस हत्या और दुष्कर्म का सजायाप्ता मुजरिम का गला है। वह उस गुलबदन को मसल देने का अपराधी है, जिसके गर्भ में 5 माह की कली पनप रही थी। उसी की टहनी से फूटी नन्ही नाजुक सी ट्यूलिप को पत्थर पर पटक-पटक कर जिन्होंने कुचल दिया, उनकी सजा माफ कर दी गई है। गला इनका है और दम मेरा घुट रहा है। जो कैक्टस का हार पहनाए जाने की पात्रता नहीं रखता, उसके गले को गुलो-गुलाबों से सजाया गया है। उफ... घीन आने लगी है, दोस्त अब और जीने का मन नहीं“ 
                 “फिर उसने हार में से कुछ तिरछा होकर आसमान की ओर देखा और कहा- अगले जनम में अंटार्कटिका में उगा देना प्रभु, मगर आर्य वर्ग में नहीं । मैं टहनियों में उगे काँटों के बीच रह लूँगा। मगर ऐसे लोगों के निमित्त निर्मित मालाओं, गुलदस्तों में तो बिल्कुल नहीं। कभी हम देवताओं के हाथों बरसाये जाने के काम आते रहे, आज आपराधियों के हाथों बरसाए जा रहे है। हमारी प्रजाति में जूही, चम्पा, चमेली किसी दुष्कर्मी के रिहा होने पर तिलक नहीं लगाती, आरती नहीं उतारती। आर्यावर्त में जुर्म, सजा, इंसाफ अपराध देखकर नहीं होते, अपराधी का सम्प्रदाय और रिश्ते देखकर तय होते रहे हैं। ... इल्तिजा बस इतनी सी है प्रभु कि सहारा के रेगिस्तान में उगलें, साइबैरिया की बर्फ में उगलें, सागर की गहराईयों में उगलें, लेकिन यहाँ नहीं मालिक“...।
                      बिलकिस बानों के अपराधियों की रिहाई पर राष्ट्रीय महिला आयोग चुप है ! राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग मौन है ! कांग्रेस और वाम दलों को छोड़कर किसी राजनीति पार्टी ने बिलकिस बानो के मामले में गुजरात सरकार की नीति की आलोचना नहीं की। यह अत्यन्त दुःखद है ! यहाँ सहज ये प्रश्न उत्पन्न होता है कि गुजरात सरकार बहुसंख्यकवादी राजनीति के कारण उक्त दुष्कर्मियों और हत्यारों को छोड़कर समाज में क्या संदेश देना चाहती है ? यहाँ उल्लेखनीय यह भी है कि विश्व हिन्दू परिषद जिसने गोधरा में इन जघन्य अपराधियों का पुष्पहारों से स्वागत किया, वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का ही एक संगठन है, तो क्या इन दुष्कर्मियों के स्वागत में संघ भी शामिल है ? यह एक ज्वलंत प्रश्न हैं, जिसके उत्तर का देश के हर एक संवेदनशील व्यक्ति को इंतजार है ! 
                 हांलाकि गुजरात सरकार ने उम्रकैद की सजा काट रहे इन दोषियों को जो रिहा किया, उसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएँ दर्ज हो चुकी है ! चीफ जस्टिस एन.वी रमना ( जो अब सेवानिवृत्त हो गए हैं ), जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस विक्रम नाथ की पीठ याचिकाओं की सुनवाई कर रही है। सुप्रीम कार्ट में सामाजिक कार्यकर्ता सुभाषिनी अली, प्रो. रूपरेखा सहित कुछ लोगों ने याचिका दायर कर इन दुष्कर्मियों की सजा में छूट के फैसले को रद्द करने की माँग की है। अब सुप्रीम कोर्ट से ही आशा है ! सुप्रीम कोर्ट हमेशा अपने फैसले में एक आदर्श उत्पन्न करता आया है। शुभ आशा है, इस फैसले में भी ऐसा ही होगा, तभी बिलकिस बानो को सही न्याय मिल सकेगा !
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