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जामवाल के बाद शाह के दौरे से अटकीं सांसें


राज-काज
* दिनेश निगम 'त्यागी'
                   भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व द्वारा नियुक्त मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ के क्षेत्रीय संगठन महामंत्री अजय जामवाल के बाद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के मप्र दौरे से पार्टी नेताओं की सांसें अटकी हैं। ज्यादा वजह जामवाल हैं। उनके दौरे के बाद छत्तीसगढ़ में पूरी तरह नेतृत्व परिवर्तन हो चुका है। वहां पहले प्रदेश अध्यक्ष, इसके बाद नेता प्रतिपक्ष को बदला जा चुका है। मप्र को लेकर अटकलों का दौर चल रहा था, इस बीच अमित शाह का दौरा तय हो गया। 21 अगस्त की रात आ चुके अमित शाह 22 को सुबह साढ़े 10 बजे से रात साढ़े 9 बजे तक भोपाल में रहकर कई कार्यक्रमों में हिस्सा लेंगे। एक तर्क है कि जामवाल ने मप्र को लेकर रिपोर्ट केंद्रीय नेतृत्व को सौंप दी है। शाह के दौरे के बाद उस पर अमल होगा। प्रदेश के किसी बड़े नेता का विकेट गिर भी सकता है। दूसरा तर्क है कि मप्र में परिवर्तन होना होता तो शाह का दौरा अभी न होता। शाह के आने का मतलब है कि जामवाल ने प्रदेश नेतृत्व के कामकाज पर मुहर लगा दी है। भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व क्या निर्णय लेता है, फिलहाल कुछ नहीं कहा जा सकता लेकिन यह तय है कि जो भी होगा, 2023 के विधानसभा और 2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों को ध्यान में रखकर होगा। पार्टी नेतृत्व को सिर्फ जीत चाहिए और कुछ नहीं। फिलहाल शाह के दौरे से अटकलों का बाजार गर्म है।
लीजिए, अपनों को ही नाराज कर गए गिरिराज
                    भाजपा नेतृत्व छिंदवाड़ा में कमलनाथ का गढ़ भेदने कई प्रयोग कर चुका है, लेकिन अब तक सफलता हाथ नहीं लगी। प्रदेश का लगभग हर नेता यहां आजमाया जा चुका है। केंद्रीय मंत्री रहते प्रकाश जावड़ेकर को भी जवाबदारी सौंपी गई थी। उन्होंने जिले का एक गांव गोद भी लिया था, पर नतीजा कुछ नहीं निकला। अब बिहार के कट्टर हिंदू नेता केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह पर दांव लगाया गया है। वे पहली बार तीन दिन के दौरे पर छिंदवाड़ा पहुंचे। उन्हें भेजा गया था कमलनाथ को पस्त करने भाजपा कार्यकर्ताओं में जोश भरने के लिए, लेकिन वे अपनों को ही नाराज कर बैठे। सौंसर में छत्रपति शिवाजी चौक में भाजपा कार्यकर्ता गिरिराज का स्वागत करने के लिए एक घंटे से खड़े थे। गिरिराज पहुंचे तो उन्होंने रुकने और शिवाजी की प्रतिमा पर माल्यार्पण करने से ही इंकार कर दिया। गिरिराज ने प्रोटोकॉल का हवाला दिया। कार्यकतार्ओं ने जिद की तो भड़क गए। बैठक में भी उन्होंने इसे लेकर काफी खरी खोटी सुना दी। बाद में कमलनाथ के सांसद बेटे नकुल नाथ ने इसे मुद्दा बना लिया। उन्होंने कहा कि शिवाजी का अपमान बर्दाश्त नहीं किया जाएगा और गिरिराज से माफी की मांग का डाली। सवाल है कि क्या इस तरह कमलनाथ का गढ़ भेदा जा सकेगा?
सच ! इसलिए मध्यप्रदेश अजब है, गजब भी                                                                                                                                                                 मध्यप्रदेश का गहराई से अध्ययन करने वाले अनायास बोल जाते हैं कि यह प्रदेश अजब है और गजब भी। शायद ही किसी ने सुना हो कि चुनाव में जीता कोई और शपथ ले ली किसी और ने, लेकिन मध्यप्रदेश में ऐसा हो गया। सागर और दमोह में महिलाएं चुनाव जीतीं लेकिन पद की शपथ उनके पतियों ने ले ली, पत्नियां घर में चूल्हा-चौका करती रहीं। मामले ने तूल पकड़ा तो कुछ पर कार्रवाई हो गई। इससे सबक लेकर राज्य सरकार ने एक आदेश निकाला है। इसमें कहा गया है कि यदि सरपंच की जगह सरपंच पति ग्राम सभा या किसी बैठक में शामिल होता है तो संबंधित सरपंच को बर्खास्त कर दिया जाए। मामला यहां तक ही सीमित नहीं है, निकायों में भी बड़ी तादाद में महिलाएं महापौर, अध्यक्ष और पार्षद बनी हैं। राजनीति में सक्रिय कुछ को छोड़ दें तो महिलाओं के पति ही बैठकों में शामिल होकर महत्वपूर्ण निर्णय ले रहे हैं। अफसर भी निर्वाचित महिलाओं के पतियों की हाजिरी बजाते नजर आते हैं। सवाल यह है कि क्या सरकार निकायों के लिए भी ऐसा कोई आदेश निकालेगी कि यदि निर्वाचित महिला का पति बैठकों में हिस्सा लेंगे तो उनका पद भी चला जाएगा? आखिर, प्रदेश में पंचायतों एवं निकायों के लिए अलग-अलग विधान कैसे हो सकते हैं?
 ‘एक तरफ कुआ, दूसरी तरफ खाई’ की थी स्थिति
                      पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती के रिश्तेदार भाजपा नेता प्रीतम लोधी ने प्रदेश भाजपा नेतृत्व के सामने ‘एक तरफ कुआ, दूसरी तरफ खाई’ की स्थिति पैदा कर दी थी। विधानसभा के पिछले चुनाव में भाजपा सवर्ण खासकर ब्राह्मणों की नाराजगी का खामियाजा भुगत चुकी थी। चंबल-ग्वालियर अंचल में पार्टी का लगभग सफाया हो गया था। अगले साल होने वाले चुनाव से पहले नेतृत्व फिर ब्राह्मणों की नाराजगी मोल लेने के मूड में नहीं था। दूसरी तरफ प्रदेश में लोधी समाज के मतदाताओं की तादाद भी अच्छी खासी है। प्रीतम इस समाज की बड़ी नेता उमा भारती के रिश्तेदार हैं। प्रीतम का भी समाज में अच्छा असर है। इसलिए पार्टी को लोधी मतदाताओं के नाराज होने का भी खतरा था। इसीलिए कथावाचकों और ब्राह्मणों के लिए आपत्तिजनक टिप्पणी करने वाले प्रीतम को बुलाकर बात की गई। उससे माफीनामा लिया गया। प्रीतम ने ब्राह्मणों को देवता कह कर माफी मांगी। फिर उन्हें भाजपा से भी निकाल दिया गया। भाजपा ने पहले ब्राह्मणों की नाराजगी दूर की। इसके साथ प्रीतम को भरोसे में लेकर उन्हें पार्टी से भी निकाला। यह ‘डैमेज कंट्रोल’ कितना कारगर होगा, यह भविष्य बताएगा। फिलहाल तो निष्कासन के अगले दिन ही उमा भारती ने शराबनीति को लेकर आंदोलन का ऐलान कर दिया है।
मोदी-शाह के फामूर्ले को समझना आसान नहीं
                       भाजपा के इस युग में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ऐसी जोड़ी के तौर पर उभरे हैं, जिनके फामूर्ले को समझना किसी जानकार के बूते की बात नहीं। वरिष्ठ नेताओं को मुख्य धारा से अलग करने के लिए 75 की आयु का क्राइटेरिया तय किया गया। फिर उसे अपनी सुविधानुसार तोड़ भी दिया गया। इसके तहत मप्र में बाबूलाल गौर, सरताज सिंह जैसे नेता मंत्री पद से हटाए गए और इस आयु सीमा में होने के बावजूद कर्नाटक में बीएस येदियुरप्पा मुख्यमंत्री बना दिए गए। हाल ही में भाजपा की सबसे पॉवरफुल नीति निर्धारक बॉडी संसदीय बोर्ड में 76 वर्षीय सत्यनारायण जटिया और 79 वर्षीय येदियुरप्पा को शामिल कर लिया गया और 65 से कम उम्र के नितिन गडकरी और शिवराज सिंह चौहान को बाहर कर दिया गया। बोर्ड में एक भी मुख्यमंत्री नहीं है, इसलिए शिवराज का बाहर किया जाना समझ आता है। लेकिन गडकरी केंद्रीय मंत्री के साथ भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं, उनको बाहर किया जाना किसी के गले नहीं उतरा। साफ है कि उम्र कुछ नहीं, मोदी-शाह जो फामूर्ला तय कर लें, वहीं क्राइटेरिया है। इसीलिए मोदी-शाह किस मसले पर क्या निर्णय लेंगे, कोई ज्ञानी नहीं बता सकता। मार्गदर्शक मंडल नेताओं को घर बैठाने का जरिया मात्र है और कुछ नहीं।
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