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मुख्यमंत्री के विरूद्ध पेशनरों को अब करना ही चाहिए बड़ा आंदोलन


 डॉ. चन्दर सोनाने
                         मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने सावन महीने के तीसरे सोमवार को प्रदेश के शासकीय कर्मचारियों के महँगाई भत्तें में 3 प्रतिशत बढ़ोत्तरी करने की घोषणा की है। अभी तक कर्मचारियों को 31 प्रतिशत महँगाई भत्ता मिल रहा था। अब उन्हें केन्द्र के समान 34 प्रतिशत महँगाई भत्ता कर दिया गया है। किन्तु इस बार फिर हर बार की तरह मुख्यमंत्री द्वारा पेंशनरों की उपेक्षा कर दी है। मुख्यमंत्री की घोषणा में पेंशनरों को कोई स्थान नहीं मिला है। अभी पेंशनरों को मात्र 17 प्रतिशत महँगाई भत्ता ही मिल रहा है। इस प्रकार मध्यप्रदेश के शासकीय कर्मचारियों से पेंशनर आधा यानी मात्र 14 प्रतिशत महँगाई भत्ता ही प्राप्त कर रहे  हैं। मुख्यमंत्री की इस तानाशाही प्रवृत्ति के विरूद्ध अब पेंशनरों के संगठनों को चुप नहीं रहना चाहिए। उन्हें मुख्यमंत्री निवास पर अनिश्चितकालीन धरना देने के साथ ही प्रदेश के सभी 52 जिलों में भी अनिश्चितकालीन धरना प्रदर्शन का आयोजन करना ही चाहिए।
उल्लेखनीय है कि मध्यप्रदेश सरकार द्वारा पिछले दिनों कर्मचारियों के समान पेंशनरों को भी महँगाई भत्ता देने के लिए छत्तीसगढ़ सरकार को चिट्ठी लिखी थी। उस चिट्ठी के जवाब में छत्तीसगढ़ सरकार ने हाल ही में केवल 5 प्रतिशत महँगाई राहत ही पेंशनरों को देने की अपनी सहमति दी है। यह अत्यन्त ही हास्यास्पद है और पेंशनरों का घोर अपमान भी है। यदि राज्य सरकार छत्तीसगढ़ सरकार की सहमति के अनुसार 5 प्रतिशत महँगाई भत्ता देने का आदेश निकालती भी है तो मध्यप्रदेश के पेंशनरों के संगठनों को उसका विरोध करते हुए मात्र 5 प्रतिशत महगाँई भत्ता लेने से साफ मना कर देना चाहिए। पेंशनरों को हर हालत में अब कर्मचारियों के समान ही महँगाई भत्ता से कम महँगाई भत्ता स्वीकार नहीं होना चाहिए। इस मामले में सभी पेंशनरों को एकजुट हो जाना चाहिए।
यहाँ खास बात यह है कि केन्द्र सरकार जब भी अपने कर्मचारियों के लिए महँगाई भत्ता स्वीकृत करती है तो उसी के साथ पेंशनरों के लिए भी महँगाई भत्ता स्वीकृत कर देती है। मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार ही देश में एक अनोखी सरकार है, जो राज्य पुर्नगठन अधिनियम की धारा 49 को पकड़कर बैठी है और इसकी गलत व्याख्या कर पेंशनरों के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार पिछले 22 साल से करती आ रही है। जबकि केन्द्र सरकार ने यह स्पष्ट कर दिया है कि दोनों राज्य सरकार अपने-अपने पेंशनरों को महँगाई भत्ता देने के लिए स्वतंत्र है। इसके बावजूद मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार हठधर्मिता और तानाशाही सा व्यवहार कर रही है। 
                         मध्यप्रदेश सरकार छत्तीसगढ़ सरकार की सहमति के नाम पर न तो कर्मचारियों के समान पेंशनरों को महँगाई भत्ता दे रही है और न ही पेंशनरों को 6वें वेतनमान का 32 महीने का एरियर तथा 7वें वेतनमान का 27 महीने के एरियर का भुगतान कर रही है। राज्य पुनर्गठन अधिनियम 2000 के तहत जिस तरह 1 नवम्बर 2000 को मध्यप्रदेश से अलग कर छत्तीसगढ़ राज्य बनाया गया था। उसी प्रकार उत्तरप्रदेश से अलग कर 9 नवंबर 2000 को उत्तराखंड और 15 नवंबर 2000 को बिहार का विभाजन कर झारखंड राज्य भी बनाया गया था। उन दोनों राज्यों में पेंशनरों के लिए राज्य पुनर्गठन अधिनियम 2000 की धारा 49 और 6 वीं अनुसूची के प्रावधान मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ की तरह ही उत्तरप्रदेश- उत्तराखंड और बिहार-झारखंड राज्य में भी लागू होते थे। किन्तु मध्यप्रदेश के अलावा उक्त दोनों राज्यों ने राज्य पुनर्गठन अधिनियम 2000 की धारा 49 और 6 वीं अनुसूची को विलोपित कर दिया। इसके साथ ही वे दोनों राज्य अपने-अपने राज्य के पेंशनरों की पेंशन का भुगतान बहुत पहले से ही स्वतंत्र रूप से कर रहे हैं। वहीं मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार इस धारा को अपनी छाती से चिपकाए हुए कुंभकर्णी नींद में सोई हुई है। पेंशनरों के प्रति मुख्यमंत्री की हटधर्मिता और तानाशाही प्रवृत्ति के कारण प्र्रत्येक पेंशनर करीब 4 हजार से लेकर 14 हजार रूपए का हर महिने नुकसान उठाने के लिए अभिशप्त हो रहे हैं। 
                      हाल ही में बुजुर्गों के कल्याणार्थ कार्यरत समाजसेवी संस्था एजवेल फाउंडेशन द्वारा राज्य स्तरीय सर्वेक्षण किया गया। इस सर्वेक्षण का विषय था भारत में बुजुर्गो पर बढ़ती महंगाई का प्रभाव ( मानव अधिकारों पर प्रभाव सहित ) । इस राज्य स्तरीय सर्वेक्षण में कई दुःखद खुलासे हुए हैं। इसमें बताया गया है कि भारत में हर 5 बुजुर्गों में से 4 बुजुर्ग बढ़ती महँगाई के कारण अनेक मुश्किलें झेल रहे हैं। लगभग 81.4 प्रतिशत बुजुर्गो के लिए बढ़ती हुई महँगाई ज्यादा ही पीड़ादायक बन चुकी है। यह सर्वेक्षण इसी जुलाई 2022 के दौरान देश के 24 राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों में फैले स्वयंसेवकों द्वारा किया गया था। उन्होंने विभिन्न सामाजिक और आर्थिक पृष्ठभूमि के 10 हजार बुजुर्गों का साक्षात्कार लिया था। इस अध्ययन का मुख्य उद्देश्य भारत में बुजर्गों की आर्थिक स्थिति, मनौवैज्ञानिक समस्या और उनके मानवाधिकारों पर बढ़ती महँगाई के प्रभावों का आकलन करके एक सामाजिक आर्थिक अध्ययन करना था। 
                      इस अध्ययन के अनुसार निम्न, मध्य आय समूह के बुजुर्ग महँगाई से ज्यादा त्रस्त पाए गए। इनमें से 94 प्रतिशत बुजुर्गां ने माना कि बढती महँगाई ने उन्हें अत्यन्त प्रभावित किया है। इस बढ़ती महँगाई दर का बुजुर्गों की मानसिक दशा पर भी विपरीत प्रभाव पड़ा है। सर्वेक्षण के आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि बढ़ती महँगाई और बुजर्गों के मानवाधिकारों की स्थिति के बीच सीधा संबंध है। परिजनों और दूसरों पर निर्भर रहने के कारण बुजुर्ग अपने साथ हो रहे उत्पीड़न के खिलाफ आवाज भी नहीं उठा पाते। वे इसे अपने जीवन की कड़वी सच्चाई के तौर पर स्वीकार करने के लिए मजबूर हो जाते हैं। 
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान को चाहिए कि वे हाल ही में एजवेल फाउंडेशन द्वारा जारी सर्वेक्षण को देंखे। सर्वेक्षण के विस्तृत नतीजे भी देंखे। बुजुर्गो की हालतों को भी देंखे और समझें। शायद उन्हें अपनी भूल महसूस हो और वे इन बुजुर्गो में शामिल मध्यप्रदेश के साढ़े चार लाख पेंशनरों की आर्थिक, सामाजिक और मानसिक स्थिति को समझ सके। मुख्यमंत्री के तथाकथित सलाहकारों को भी यह रिपोर्ट देखना चाहिए और चिंतन मनन करना चाहिए। अब बहुत हो गया। पानी सर से गुजर चुका है। यदि अब भी मुख्यमंत्री राज्य के कर्मचारियों के समान महँगाई भत्ता अपने पेंशनरों को देने के लिए आगे नहीं आते हैं तो सभी झिझक और संकोच छोड़कर पेंशनर संगठनों को मुख्यमंत्री के निवास के सामने अनिश्चितकालीन धरना देना जल्द से जल्द शुरू कर देना चाहिए। इसी के साथ मध्यप्रदेश के सभी संभागीय और जिला मुख्यालयों पर भी संभागायुक्त और कलेक्टर कार्यालय के सामने अनिश्चितकालीन धरना प्रदर्शन करना चाहिए। शायद तभी मुख्यमंत्री जी चैते और पेंशनरों के हकां पर डाका डालना छोड़कर उन्हें उनका वाजिब हक दें। 
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