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पालकी और रथ का मिला-जुला स्वरूप हो बाबा महाकाल की नई पालकी


  संदीप कुलश्रेष्ठ
            और फिर सावन आ गया। इस बार सावन महीने की पहली और दूसरी सवारी में ही श्रद्धालुओं का हुजूम उमड़ पड़ा। ऐसा लग रहा था, जैसे यही शाही सवारी हो। हजारों श्रद्धालुओं को बाबा महाकाल की एक झलक पाने के लिए कड़ी मशक्कत उठानी पड़ी। कई को तो एक झलक भी नहीं मिल पाई । कारण यह था कि जिला प्रशासन ने पूरे सवारी मार्ग पर बैरिकैटिंग कर दी थी और बैरिकैटिंग की ऊँचाई ही 6 फुट से भी ज्यादा थी। इस कारण अनेक श्रद्धालुओं को बाबा महाकाल की एक झलक पाने से भी वंचित हो जाना पड़ा।
नगर निगम के पूर्व अध्यक्ष ने उठाया मसला-             
             उज्जैन नगर निगम के पूर्व अध्यक्ष श्री सोनू गेहलोत ने एक बार फिर जनहित का मुद्दा उठाया है। उन्होंने प्रदेश के मुखिया को चिट्ठी भेजकर यह अनुरोध किया है कि नीची पालकी होने और बैरिकैटिंग के कारण श्रद्धालु बाबा महाकाल के दर्शन अच्छी तरह नहीं कर पाते है। इसलिए उन्होंने एक चलित वाहन के ऊपर कहारां को पालकी लेकर खड़े रहने की व्यवस्था करने का सुझाव दिया है। इससे बाबा महाकाल की पालकी पर्याप्त ऊँची हो जायेगी और श्रद्धालु दूर से भी अपने बाबा के दर्शन का लाभ आसानी से ले सकेंगे। इससे बैरिकैटिंग पर लोगों की भीड़ भी नहीं उमड़ेगी।
मिला भरपूर समर्थन-            
              श्री सोनू गेहलोत की उक्त चिट्ठी के बाद उज्जैन की अनेक स्वयंसेवी, सामाजिक, धार्मिक संस्थाओं और गणमान्य नागरिकों ने पालकी ऊँची करने की माँग का समर्थन करते हुए इसकी उचित व्यवस्था करने की माँग भी कर दी। आश्चर्य की बात है कि प्रिन्ट मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और सोशल मीडिया में पालकी ऊँची करने की माँग सामने आने के बावजूद जिला प्रशासन और पुलिस प्रशासन के कानों में जूं तक नहीं रैंगी। इस पर उनकी कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आई। यह दुःखद है। 
हजारों श्रद्धालु हो रहे परेशान -            
           हजारों श्रद्धालुओं की यह माँग सही है कि पालकी ऊँची होना चाहिए। पहले सीमित संख्या में श्रद्धालु बाबा महाकाल के दर्शन करने के लिए आते थे। इसलिए सबको आसानी से बाबा के दर्शन हो जाते थे। बाद में जैसे-जैसे भीड़ बढ़ती गई, जिला प्रशासन द्वारा प्रमुख स्थानों पर बैरिगेटिंग लगाए जाने लगे। श्रद्धालुओं की संख्या और बढ़ने पर बाबा महाकाल के मंदिर से लेकर सभी मार्गो पर और वापसी तक के मार्ग पर बैरिकैटिंग की जाने लगी। यानी बाबा महाकाल बैरिकैटिंग होकर ही निकलने लगे और तब से ही श्रद्धालुओं की परेशानी बढ़ती ही गई। अब तो हद पार हो गई है। बाबा महाकाल की दूसरी सवारी के समय जिला और पुलिस प्रशासन द्वारा बाबा महाकाल की सवारी के मार्ग में आने वाली तमाम गलियों और रास्तों पर ही सख्त बैरिकैटिंग कर दी गई। इसके कारण श्रद्धालु और नागरिक दोपहर से रात तक अपने- अपने घरों में ही कैद हो जाने लगे। गलियों और सभी सवारी मार्गों पर सख्त बैरिकैटिंग होने से आमजन, नागरिक और श्रद्धालु घंटो न तो बैरिकैटिंग के अंदर आ सकते है न बाहर जा सकते हैं। पूरे सवारी मार्ग को लगभग जेल में तब्दील कर दिया गया है। इससे आमजन की समस्या बहुत बढ़ गई है। वे हताश और निराश है। और कुछ भी नहीं कर पाने की मजबूरी में मन मसोज कर रह जाते हैं। 
समय की मांग है पालकी ऊँची हो -           
            सावन और भादौ माह में बाबा महाकाल की अनेक दशकों से निकलने वाली सवारी के दर्शन के लिए आने वाले श्रद्धालुओं को बाबा महाकाल के सुलभ दर्शन हो सके। इसके लिए पालकी ऊँची करना आज बहुत जरूरी हो गया है। इसके लिए भगवान जगन्नाथ की निकलने वाले रथ यात्रा की तर्ज पर लकड़ी का करीब 6 फुट से भी ऊँचा रथ बनाया जाना चाहिए। इस रथ पर पालकी रखी जाए। पालकी चारों ओर से खुली होना चाहिए। समय के अनुसार बाबा महाकाल के सभी मुखौटे भी चार गुना बड़े होने चाहिए। अब इस रथ सह पालकी को कहारों द्वारा उठाने की जगह रस्से से खींचा जाना चाहिए।
रथ और पालकी का मिला-जुला स्वरूप हो-            
                इस प्रकार भगवान जगन्नाथ के रथ और बाबा महाकाल की पालकी का मिला-जुला नया स्वरूप ही समय की आवश्यकता है। जिला प्रशासन को इस संबंध में जिले के समस्त जनप्रतिनिधियों , गणमान्य नागरिकों और बाबा महाकाल की सवारी से पिछले अनेक दशकों से जुड़े सेवाभावी व्यक्तियों की संयुक्त बैठक बुलाकार उनकी राय ली जानी चाहिए। इसके बाद एक निर्णय लिया जाना चाहिए जो जनहित में समय की आवश्यकता के अनुरूप हो। इसका लाभ यह भी होगा कि श्रद्धालु बैरिकैटिंग पर बाबा की एक झलक पाने के लिए परेशान नहीं होंगे। वे दूर खड़े होकर भी अपने आराध्य का दर्शन आसानी से कर सकेंगे। अब जरूरत इस बात की है कि जिला प्रशासन इस मामले में जागृत हो, और इस संबंध में सभी संबंधितों की बैठक आयोजित कर एक निर्णय लें, जो आम श्रद्धालुओं के हित में हो। 
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