सर्वोच्च न्यायालय ने एक बार फिर पत्रकारों के पक्ष में सुनाया फैसला
डॉ. चन्दर सोनाने
सर्वोच्च न्यायालय ने एक बार फिर पत्रकारों के पक्ष में हाल ही में अपना फैसला सुनाया है। सर्वोच्च न्यायालय ने फैक्ट चेकर मोहम्मद जुबेर को उनके ट्वीट को लेकर उत्तरप्रदेश पुलिस द्वारा दर्ज सभी एफआईआर में अंतिम निर्णय देते हुए जमानत की शर्त लगाने से साफ मना कर दिया है। उत्तरप्रदेश के एडिशनल एडव्होकेट जनरल ने तर्क दिया था कि जुबेर को जमानत देते समय यह शर्त जोड़ी जाए कि वह अब कोई ट्वीट नहीं करेगा। इस पर जस्टिस श्री डी. व्हाय चन्द्रचूड़ ने कहा कि यह एक वकील से ऐसा कहने जैसा है कि आपको बहस नहीं करना चाहिए। हम एक पत्रकार से कैसे कह सकते है कि वह एक शब्द भी नहीं लिखेगा या नहीं बोलेगा ?
सुप्रीम कोर्ट ने इसके साथ ही मोहम्मद जुबेर के विरूद्ध यूपी पुलिस की सभी 7 एफआईआर को दिल्ली पुलिस की एफआईआर के साथ जोड़ने के भी आदेश दिए। उन्होंने यह देखते हुए कि मामले की विषय वस्तु एक समान है। दिल्ली पुलिस ने व्यापक जाँच की है। इसलिए पीठ ने ट्वीट के संबंध में जुबेर के खिलाफ दर्ज किसी भी भविष्य की एफआईआर को दिल्ली पुलिस को हस्तांरित किये जाने की बात कही। सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि मोहम्मद जुबेर भविष्य में इस तरह की एफआईआर में भी जमानत में हकदार होंगे।
उल्लेखनीय है कि मोहम्मद जुबेर द्वारा एक ट्वीट करने पर उत्तरप्रदेश सहित अनेक स्थानों पर उसके विरूद्ध एफआईआर दर्ज की गई थी। इन्हीं एफआईआर के आधार पर मोहम्मद जुबेर को जेल में डाल दिया गया था। किसी एक एफआईआर पर उन्हें जमानत मिल जाती तो दूसरी एफआईआर पर गिरफ्तारी का क्रम पिछले काफी दिनों से चल रहा था। इसी कारण पिछले अनेक हफ्तों से जुबेर को जेल में डाले रखा गया था और उसे जमानत भी नहीं मिल सकी थी। इन्हीं सभी एफआईआर के मद्देनजर सर्वोच्च न्यायालय ने उसे तुरन्त रिहा करने के आदेश दिए। और उत्तर प्रदेश की सरकार की भी कड़ी आलोचना की।
सर्वोच्च न्यायालय के जजों ने इस प्रकरण के संबंध में स्पष्ट रूप से कहा कि किसी पत्रकार की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में कोई भी बाधा कैसे बन सकता है ? यदि जुबेर ने 2018 में किसी फिल्म के संवाद को ट्वीट कर दिया तो क्या उसने इतना खतरनाक काम कर दिया है कि उसे जेल में बंद कर दिया जाए ? उसे जमानत भी नहीं दी जाए ? और उसे दंगे भड़काने के लिए जिम्मेदार ठहरा दिया जाए ? जजां ने इस तथ्य पर भी एतराज जाहिर किया कि जुबेर के खिलाफ कई एजेंसियाँ जाँच पड़ताल में जुट गई है। जुबेर पर उत्तरप्रदेश की पुलिस ने तरह-तरह के आरोप भी लगाए हैं। उसका तर्क था कि जुबेर पत्रकार ही नहीं है। जबकि वह अल्टन्यूज नामक संस्था चलाता है और उसके जरिए करीब दो करोड़ रूपए सालाना कमाता है।
यहाँ यह भी उल्लेख करना जरूरी है कि यह सब मामला भाजपा प्रवक्ता नुपूर शर्मा से जुड़ा मामला है। एक टीवी कार्यक्रम में जब एक वक्ता ने शिवलिंगों का मजाक उड़ाया तो नुपूर ने जवाब में एक हदीस को उधृत कर उसका जवाब दिया । इसे ही पैगम्बर की शान में गुस्ताखी माना गया। और इसी के चलते दो लोगों की नृसंश हत्या भी कर दी गई। इस मामले में नुपूर को भी उसकी हत्या की धमकियाँ दी गई और उस पर भी अनेक मुकदमें दर्ज हो गए। किन्तु यहाँ यह भी खास बात है कि मोहम्मद जुबेर द्वारा एक उद्धरण देने पर उसके विरूद्व अनेक मुकदमें दायर होने के बाद उसे गिरफ्तार कर लिया गया और हफ्तों जेल में डाल दिया गया, जबकि नुपूर के विरूद्ध भी अनेक एफआईआर दर्ज की गई। उसने भी एक हदीस को उद्यृत किया था। उसे आज तक गिरफ्तार ही नहीं किया गया। उसे क्यों गिरफ्तार नहीं किया गया ? इस बारे में सब मौन है। यह अपने आप में एक ही तरह के प्रकरण में दो तरह की कार्रवाई करने का एक ज्वलंत उदाहरण है !
और आखिरकार मोहम्मद जुबेर को हफ्तों जेल रखने के बाद सर्वोच्च न्यायालय के कारण ही जमानत मिल सकी है। जब-जब पत्रकारों ने शासन-प्रशासन के विरूद्ध कुछ लिखा है तो उसके विरूद्ध कार्रवाई की गई है। उसके अनेक उदाहरण है। यहाँ यह उदाहरण धार्मिक भेदभाव का है। एक जैसे प्रकरण होने पर मुस्लिम होने के नाते मोहम्मद जुबेर को जेल में डाल दिया गया और हिन्दू होने तथा भाजपा की प्रवक्ता होने के नाते नुपूर शर्मा के विरूद्ध अनेक प्रकरण दर्ज होने के बावजूद वह अभी तक जेल से बची हुई है। इसे धार्मिक स्तर पर भेदभाव ही कहा जायेगा। यह हमारे संविधान और न्याय प्रक्रिया के भी विरूद्ध है। ऐसा नहीं होना चाहिए, किन्तु हाल-फिलहाल देश में यही हो रहा है। यह अत्यन्त दुःखद है। सबके साथ संविधान और न्याय के अनुसार समान व्यवहार होना चाहिए।
यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट के दो न्यायधीशों जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जेबी पारदीवाला ने बीजेपी की निलंबित प्रवक्ता नूपुर शर्मा को कड़ी फटकार लगाई और कहा कि उन्हें पूरे देश से माफी मांगनी चाहिए। बेंच ने अपनी मौखिक टिप्पणी में उदयपुर में कन्हैयालाल का गला रेंतने की वारदात के लिए नुपूर शर्मा को जिम्मेदार बताते हुए कहा था कि देश में जो कुछ भी हो रहा है, उसके लिए वो अकेली जिम्मेदार है। सर्वोच्च न्यायालय के दोनों जस्टिसों की टिप्पणी के बाद सौ से अधिक नौकरशाहों और पूर्व जजों ने उक्त दोनों जस्टिसों के बयानों पर आपत्ति दर्ज की थी। इसके बाद तो सोशल मीडिया पर दोनों जजों के विरूद्ध आपत्तियों की झड़ी लग गई। यह सबको पता है कि यह सब किसकी शह पर हुआ ! आरोपों की झड़ी के बाद बेंच में शामिल जज जेबी पारदीवाला ने एक कार्यक्रम में पिछले दिनों कहा कि जजों के फैसलों को लेकर निजी हमला करना खतरनाक स्थिति पैदा कर सकता है। जहाँ जजों को यह सोचना पड़े कि इस पर मीडिया क्या सोचेगा , न कि यह की कानून क्या चाहता है , वहाँ गंभीर स्थिति पैदा हो सकती है। इससे नियम और कानून को भी नुकसान पहुँचेगा। जज कभी अपने मन की बात नहीं बालते हैं। वे वही कहते हैं जो कि कानून कहता है। सोशल मीडिया के जरिए कानूनी और संवैधानिक बातों का भी राजनीतिकरण किया जाता है। ऐसा नहीं होना चाहिए। इस पर भी राजनैतिक दलों और सोशल मीडिया पर काम करने वाले लोगों को गंभीरतापूर्वक सोचने की सख्त जरूरत है।
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