नौकरी के समय में ताउम्र याद रहने वाला वाकया....
लेखक डॉ आनंद शर्मा रिटायर्ड सीनियर आईएएस अफ़सर हैं और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री के विशेष कर्तव्यस्थ अधिकारी हैं।
यूँ तो नौकरी के हर काल खण्ड में कुछ ऐसा घटित होता रहता है , जिससे आप कुछ न कुछ सीखते रहते हो , पर नौकरी की शुरुआत में ही कभी ऐसा वाक़या घट जाता है जो ताज़िंदगी आपको याद रहा आता है । आज मुझे जो याद आ रहा है वो है, मेरी पहली पोस्टिंग का एक वाकया, जिसने प्रशासन में मेरे काम करने के तरीके को बहुत हद तक प्रभावित किया |
परिवीक्षा काल में हमारा प्रशिक्षण तो भोपाल स्थित प्रशासन अकादमी में हुआ , पर हमारी पदस्थापनायें अपने अपने ज़िलों में आदेश के साथ ही कर दी गयीं थीं । ट्रेनिंग के दौरान सर्वे व सेटलमेंट प्रशिक्षण के लिए हमें भोपाल से बाहर भी जाना पड़ा । हम जहाँ भी जाते और पदस्थापना सहित अपना परिचय देते तो लगभग सभी यही कहते कि तुम बड़े लकी हो । दरअसल मेरी पोस्टिंग बतौर डिप्टी कलेक्टर राजनांदगाँव जिले में हुई थी , जहाँ कलेक्टर थे , श्री हर्ष मंदर और जल्द ही मुझे अपने लकी होने का अर्थ समझ आ गया । हर्ष मंदर सेवा और विनम्रता की एक मिसाल थे । नौकरी में परिवीक्षा काल में अलग अलग विभागों में जाकर ट्रेनिंग शेड्यूल पूरा करना होता है , पर जल्द ही करीब छः महीने की ट्रेनिग के बाद मुझे डोंगरगढ़ तहसील के अनुविभागीय अधिकारी के रूप में पदस्थ कर दिया गया । नई नौकरी , नई उम्र और एस. डी.एम. का पद मुझे लगा “साला मैं तो साहब बन गया “ । शाम के बाद का समय या तो ग़ुलाम अली , मेंहदी हसन , भूपेन्द्र - मिताली , जगजीत - चित्रा की ग़ज़लों को सुनने में बीतता अथवा किताबों को पढ़ने में । एक बार कुछ लोग मुझसे उनके अतिक्रमण हटाने की समस्या को लेकर रात को दस बजे के क़रीब मिलने आये । मुझे बड़ा ऐतराज हुआ कि भाई ये तो अब हमारा आराम का समय है आखिर दिन भर दफ्तर में बैठते है तब क्यों नहीं मिलते ? और इतनी रात को जब हम कुछ निजी काम कर रहे हैं या आराम कर रहे हैं तो इतनी रात गए मिलने या सुनने का क्या तुक ? और इतनी रात मैं करूँगा भी क्या ? चलो जाओ सुबह आना तब सुनूंगा ये कह के मैंने उन्हें चलता किया |
सुबह सुबह टेलीफोन पर कलेक्टर का फोन आया और उन्होंने बड़ी सहजता से पूछा कि क्या कल रात कुछ लोग तुमसे किसी समस्या के बारे में मिलने आये थे ? मैं कुछ असहज तो हुआ पर ये कह के बात सम्हालने की कोशिश की कि हाँ सर आये तो थे सही पर बड़ी रात हो चुकी थी तो मैंने कह दिया कि ऑफिस की बात आफिस में करेंगे , कल आना , ये लोग तो किसी की प्रायवेसी समझते ही नहीं हैं ।
उन्होंने जो कहा वो बड़ा ही दिलचस्प था कहने लगे “अच्छा ये बताओ भला इतनी रात वो तुम्हें ही परेशान करने क्यों आये क्या तुम्हारे शहर में कोई जनरल स्टोर्स नहीं है ? जहाँ जा के वो अपनी इन बातों को बता सकते थे । मै बड़ी हैरानी से बोला की सर वो दुकानदार इनकी परेशानी का क्या करते ? हर्ष मंदर जी बोले वही तो ...जो तुम कर सकते थे या हो, वो कोई और उस शहर में कर सकता तो वो कभी तुम्हारे पास न आते ..हो सकता है कि उनकी बात सच न हो या क्या जाने सच भी हो ......पर तुम्हारे खुद के उसे सुने बिना कोई और उनकी सहायता नहीं कर सकता है ये तय है । हमारे प्रशासन की नौकरी दस से पांच की नौकरी नहीं है , और जो उलटे वक्त में तुम कर पाओ वो क्या पता कोई और कर ही न पाए , तो लोग तो आएंगे ही , उनको सुनो तो सही..... फिर करो वो जो सही हो नियम में हो ।
मेरी आँखें खुलीं और एक सबक मिला जो शासकीय सेवा के पूरे काल में मैंने निभाया कि जो भी , जब भी कोई शिकवा शिकायत लेकर आया , उसे ध्यान से सुना और कोशिश की कि उसकी समस्या का हल निकल सके ।
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