गरीबों के लिए वरदान प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना बंद नहीं हो
डॉ. चन्दर सोनाने
यूएन की द स्टेट ऑफ फूड सिक्योरिटी एंड न्यूट्रीशन इन द वर्ल्ड 2022 की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2019 में दुनिया में 61.8 करोड़ लोगों का भूख से सामना हुआ था। किन्तु वर्ष 2021 में कोरोना काल में यह संख्या बढ़कर 76.8 करोड़ हो गई। अर्थात केवल दो साल में ही 15 करोड़ लोग बढ़ गए, जिन्हें एक वक्त का खाना भी नसीब नहीं हुआ। रिपोर्ट के अनुसार भारत में 22.4 करोड़ आबादी कुपोषण का शिकार पायी गई। अर्थात भारत के 16.3 प्रतिशत भारतीयों की थाली में भोजन नहीं था। उन्हें भूखा ही सोना पड़ा। उन्हें या तो एक वक्त का खाना नहीं मिल पाया या उनके भोजन में पौष्टिक तत्व 50 प्रतिशत से भी कम थे।
भारत में 22 करोड़ से भी अधिक लोगों को खाना नसीब नहीं हो रहा है। यह अत्यन्त गंभीर बात है। कोरोना काल में इनकी हालत और भी खराब हो गई थी। एक और आश्चर्य की बात यह है कि भारत में पौष्टिक खाना दुनिया के अन्य अनेक देशों की तुलना में बहुत सस्ता है। फिर भी 70.5 प्रतिशत भारतीय इस पौष्टिक खाने से वंचित है। यह अत्यन्त दुःखद है। हांलाकि वर्ष 2004 में भारत में 21.6 प्रतिशत आबादी कुपोषण का शिकार थी। अब इसमें जरूर सुधार हुआ है। किन्तु यह पर्याप्त नहीं है।
कोरोना काल में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने गरीबों को भरपेट भोजन मिले, इसके लिए प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना शुरू की थी। यह योजना गरीबों के लिए अत्यन्त उपयोगी रही। सरकार का कहना है कि इस योजना के अर्न्तगत देशभर में 80 करोड़ गरीबों को लाभान्वित किया गया है। इस योजना से उन्हें वास्तव में बहुत बड़ा संबल मिला भी था।
हाल ही में एक दुःखद खबर आई है। यह खबर अत्यन्त गंभीर चेतावनी की ओर संकेत कर रही है। देश के वित्त मंत्रालय के अर्न्तगत आने वाले व्यय विभाग ने सरकार को सुझाव दिया है कि प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना को सितंबर से आगे नहीं बढ़ाया जाए। यह खबर अत्यन्त चिंताजनक है। गरीबों को कोरोना काल के कारण अपना काम धंधा गंवाना पड़ा। उन्हें प्रधानमंत्री की उक्त योजना से बहुत बड़ा संबल मिला था। वह योजना अब सितम्बर माह के बाद से बंद होने जा रही है!
भारत सरकार ने इस साल मार्च महीने में इस योजना को सितंबर 2022 तक के लिए बढ़ा दिया था। इस वित्तीय वर्ष 2022-23 में भी सरकार ने बजट में भी खाद्यान्न अनुदान के लिए 2.07 लाख करोड़ रूपए आवंटित भी किया है। इसके बावजूद वित्त विभाग द्वारा इस प्रकार के प्रस्ताव देना गरीबां के लिए अन्यायपूर्ण है ! एक तरफ गरीबों के पास कोई काम-धंधा और रोजगार नहीं है, दूसरी तरफ पिछले तीन दशक की सबसे ज्यादा महंगाई दर से वे रोजाना जूझ रहे है। ऐसी हालत में इस कल्याणकारी योजना को बंद करना, उनके लिए बहुत बड़े संकट का सामना करना होगा।
यूएन की ताजा रिपोर्ट यह बता रही है कि दुनिया की एक चौथाई से ज्यादा कुपोषित लोग भारत में निवास करते है। और वे कुपोषण और भूखमरी से जूझ रहे है। ऐसी स्थिति में कल्याणकारी योजना को बंद करना किसी भी तरह से सही नहीं कहा जा सकता।
अब देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी को ही तय करना है कि देश के गरीबों के लिए अत्यन्त कल्याणकारी और लाभप्रद प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के अर्न्तगत गरीबों को मुफ्त में अनाज देने की जो योजना शुरू की थी, वह सितम्बर के बाद बंद कर दी जाए या जारी रखी जाए ? यूएन की वर्ष 2022 की उक्त रिपोर्ट को देखते हुए प्रधानमंत्री को चाहिए कि वे इस योजना को तब तक चालू रखे, जब तक कि भारतीयों को भरपेट खाना नसीब नहीं हो जाए ! गरीबों के लिए उक्त योजना वरदान थी, उसे छीनी नहीं जाए ! इस योजना को बंद करने का मतलब है गरीबों के मुँह से निवाला छीनना ! यह योजना इसलिए भी चालू रखी जाए, क्योंकि वर्तमान में भारत का अन्न भंडार पर्याप्त भरा हुआ है, वहाँ अनाज रखने की जगह नहीं है। प्रति वर्ष हजारां क्विंटल अनाज रखरखाव के अभाव में बारिश में सड़ जाता है और उसे फेंकना पड़ता है। अतः प्रधानमंत्री जी से अनुरोध है कि वे गरीबों की इस अत्यन्त कल्याणकारी योजना को तब तक जारी रखे, जब तक देश से कुपोषण समाप्त नहीं हो जाए !
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