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कुपोषित बच्चों को खिलौनों से ज्यादा खुराक की है जरूरत


डॉ. चन्दर सोनाने
                हाल ही में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराजसिंह चौहान द्वारा भोपाल और इंदौर में हाथ ठेला चलाकर आंगनवाड़ी के बच्चों के लिए आमजन से खिलौनें एकत्रित किए। प्रदेश के कुपोषित बच्चों को आज खिलौनां से ज्यादा अच्छी खुराक की जरूरत है, ताकि वे कुपोषण से बाहर निकल सके। 
              केन्द्र सरकार द्वारा पिछले दिनों जारी सेंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम ( एसआरएस) बुलेटिन के अनुसार मध्यप्रदेश में शिशु मृत्यु दर यानी जन्म से लेकर एक साल तक के उम्र के बच्चों के मामले में मध्यप्रदेश की स्थिति अपने देश में सबसे ज्यादा खराब है। यही नहीं मध्यप्रदेश की स्थिति देश में सबसे ज्यादा खराब है। मध्यप्रदेश में आज हर 1000 बच्चों में से 46 बच्चें एक साल की आयु के पहले ही दम तोड़ देते हैं। राज्य के शहरी क्षेत्रों में शिशु मृत्युदर जहाँ 32 है, वहीं ग्रामीण क्षेत्र में 50 है। एसआरएस की इस 2021 की रिपोर्ट में रेफरेन्स ईयर 2019 के आंकड़े लिए गए हैं। देश के सबसे खराब पाँच राज्यों में सबसे ज्यादा शिशु मृत्युदर में मध्यप्रदेश में जहाँ 46 है, वहीं छत्तीसगढ़ और असम में 40-40, राजस्थान में 35 और मेघालय में 33 है। यह अत्यन्त दुःखद स्थिति है। 
              नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-4 ( एनएफएचएस -4 ) में कुपोषित बच्चों के असमय मृत्यु होने के प्रमुख कारण भी बताए गए हैं। इसके अनुसार कुपोषण के तीनों पैमानों पर मध्यप्रदेश सबसे कमजोर 10 प्रदेशों में शामिल है। प्रदेश में 42 प्रतिशत बच्चें कम कद के, 25.8 प्रतिशत निर्बलता और 42.8 प्रतिशत में कम वजन के बच्चें होते हैं। मध्यप्रदेश में 52.4 प्रतिशत गर्भवती महिलाओं में एनीमिया की समस्या रहती है। इस कारण से उनकी होने वाली संतान में भी स्वास्थ्य संबंधी समस्या ज्यादा होती है। राज्य में जन्म के घंटे के अंदर सिर्फ 36 प्रतिशत बच्चों को ही माँ का पहला दूध मिल पाता है। माँ का पहला दूध, जिसे खीस भी कहते है, बच्चे के स्वास्थ्य के लिए बहुत जरूरी होता है। मध्यप्रदेश में 18.4 प्रतिशत लड़कियों की शादी 18 साल से पहले ही हो जाती है। इस कारण बच्चें भी जल्दी हो जाते है। और यह कुपोषण का प्रमुख कारण भी है। रूरल हेल्थ स्टेटिक्स 2020 की रिपोर्ट के अनुसार मध्यप्रदेश के ग्रामीण स्वास्थ्य केन्द्रों पर 298 और आदिवासी क्षेत्रों में 85 शिशु रोग विशेषज्ञों की कमी है। 
           मध्यप्रदेश में हर साल 1 हजार में से 33 बच्चें जन्म के 28 दिन बाद ही दम तोड़ देते हैं। जनगणना निदेशालय की सेम्पल रजिस्ट्रेशन सिस्टम की 2021 की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2019 में मध्यप्रदेश की नवजात मृत्युदर ( एनएमआर ) 33 प्रति हजार थी। अभी भी देश में यह सर्वाधिक है। देश में सबसे कम नवजात मृत्युदर केरल में है। केरल में एनएमआर सिर्फ पाँच है। मातृ मृत्युदर में भी प्रदेश की स्थिति ठीक नहीं है। देश में मध्यप्रदेश का स्थान नीचे से तीसरा है। इस प्रदेश में हर साल प्रति लाख गर्भवती महिलाओं में से 163 महिलाओं की मौत हो जाती है। मध्यप्रदेश से नीचे दो राज्यों में से असम में 205 और उत्तरप्रदेश में 167 महिलाओं की मौत हो जाती है। 
              उल्लेखनीय है कि मध्यप्रदेश में कुल 97 हजार 135 आंगनवाड़ियाँ संचालित है। इन आंगनवाड़ियों में पाँच साल तक की उम्र के 65 लाख 2 हजार 723 बच्चें दर्ज हैं। इनमें 10 लाख 32 हजार 166 कुपोषित बच्चें हैं। इनमें से 6 लाख 30 हजार 90 बच्चें अतिकुपोषित की श्रेणी में आते है। मध्यप्रदेश सरकार कुपोषण मिटाने का प्रयास कर रही है, किन्तु यह पर्याप्त नहीं है।
              मुख्यमंत्री द्वारा हाल ही में हाथ ठेला चलाकर प्रदेश के आंगनवाडी़ के बच्चों के लिए प्रदेश की जनता से खिलौने एकत्रित किए हैं। किन्तु प्रदेश के कुपोषित और अतिकुपोषित बच्चों को खिलौने से ज्यादा पोषण की जरूरत है ! अच्छा होगा, यदि मुख्यमंत्री प्रदेश के सभी 97,135 आंगनवाड़ियों को गोद लेने के लिए मुहिम चलाएँ। यदि प्रदेश की इन सभी आंगनवाड़ियों को जनप्रतिनिधि, सामाजिक, धार्मिक, शैक्षणिक, खेलकूद आदि संस्थाओं के पदाधिकारी, सभी विभागों के सरकारी अधिकारी और गणमान्य नागरिक यदि एक-एक आंगनवाड़ी गोद लें तो और उस आंगनवाड़ी के सभी कुपोषित बच्चों को कुपोषण से बाहर निकालने का जिम्मेदारी लें तो आगामी कुछ सालों में प्रदेश कुपोषण के कलंक से मुक्ति प्राप्त कर सकता है। जिस प्रकार मुख्यमंत्री ने आंगनवाड़ी के बच्चों के लिए ठेला चलाया और खिलौने एकत्रित किए, उसी प्रकार वे आंगनवाडियों को भी गोद लेने का अभियान चलाए तो प्रदेश की आंगनवाड़ियों के लिए वरदान सिद्ध होगा !
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