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600 करोड़ रूपये की लागत से फिर बन रही है खान डायवर्सन योजना ?


 डॉ. चन्दर सोनाने
              ऐसा लगता है जैसे उज्जैन में पदस्थ कलेक्टर और जल संसाधन विभाग के अधिकारियों ने यह तय कर लिया है कि उन्हें जो करना है, वही करेंगे। जनता की धार्मिक भावनाओं की उन्हें रत्तीभर परवाह नहीं है ! ऐसा इसलिए लगता है कि पिछले दिनों 2 अप्रैल को गुड़ी पड़वा पर्व के लिए शिप्रा में मिलाने के लिए एनवीडीए से जो नर्मदा का साफ पानी लिया था, उस पानी में त्रिवेणी पर खान नदी का प्रदूषित पानी सीधा शिप्रा में मिल रहा है और उसे प्रदूषित कर रहा है ! कलेक्टर और जल संसाधन विभाग के अधिकारियों द्वारा शिप्रा को खान नदी से दूषित होने से रोकने के लिए कोई भी कार्रवाई नहीं की गई ! 
उल्लेखनीय है कि 25 अप्रैल से आस्था और विश्वास की पंचक्रोशी यात्रा शुरू हो रही है। और इसी के साथ-साथ विशेषकर ग्रामीण अंचलों में रहने वाले ग्रामीणों की आस्था का पर्व शनिश्चरी अमावस्या भी आ रही है। किन्तु हाल फिलहाल शिप्रा नदी खान नदी के दूषित पानी से पूरी तरह दूषित हो गई है। हर बार जल संसाधन विभाग द्वारा शनिश्चरी अमावस्या के पूर्व खान नदी का दूषित पानी शिप्रा नदी में नहीं मिले, इसके लिए त्रिवेणी पर खान नदी पर एक कच्चा बाँध बना दिया जाता है। इससे खान नदी का प्रदूषित पानी कभी रूकता है और कभी वह कच्चे मिट्टी के बने बाँध को तोड़कर शिप्रा में मिल भी जाया करता है ! ऐसा पिछले अनेक वर्षों से हो रहा है ! कोई देखने वाला नहीं है ! 
                वर्ष 2019 में आए शनिश्चरी अमावस्या स्नान पर्व पर ऐसा भी हुआ था, जब यहाँ स्नान के लिए पानी के नाम पर केवल कीचड़ था ! उस समय कांग्रेस के श्री कमलनाथ मुख्यमंत्री बने ही बने थे। जब शनिश्चरी अमावस्या पर आने वाले हजारों श्रद्धालुओं की भावना आहत हुई और प्रिन्ट, इलेक्ट्रॉनिक और सोशल मीडिया में चारों ओर राज्य शासन और जिला प्रशासन की घोर आलोचना हुई, तो तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री कमलनाथ ने सख्त कार्रवाई की। उन्होंने तत्काल कलेक्टर और संभाग आयुक्त को उज्जैन से हटा दिया और अपने तेज तर्राट मुख्यसचिव श्री एस आर मोहन्ती को घटना की जाँच करने के लिए उज्जैन भेजा था।
                तत्कालीन मुख्यमंत्री के निर्देश पर उज्जैन आये मुख्य सचिव श्री एस आर मोहन्ती ने त्रिवेणी पर संबंधित विभागों के आला अधिकरियों के साथ मौके का निरीक्षण किया और त्रिवेणी पर खान नदी का गंदा पानी शिप्रा में नहीं मिले, इसके लिए मिट्टी के कच्चे बाँध की जगह पक्का बाँध बनाने के निर्देश जल संसाधन विभाग को दिए। तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री कमलनाथ करीब डेढ़ साल मुख्यमंत्री रहे, किन्तु उस दौरान भी खान नदी पर पक्का बाँध नहीं बनाया जा सका ! इसके बाद जोड़-तोड़ की राजनीति के आधार पर मुख्यमंत्री बने श्री शिवराज सिंह चौहान वापस आ गए। पिछली शनिश्चरी अमावस्या पर भी ठीक प्रातःकाल खान नदी पर बनाया गया कच्चा बाँध तोड़कर खान नदी का प्रदूषित पानी शिप्रा में मिल गया और खान नदी का साफ पानी दूषित कर दिया। इस पर भी काफी हो हल्ला मचा। श्रद्धालुओं की भावनाओं पर आघात लगा। मुख्यमंत्री ने 4 मंत्रियों का दल गठित किया । इन 4 मंत्रियों में से 2 मंत्री प्रदेश के जल संसाधन मंत्री श्री तुलसी सिलावट और उच्च शिक्षा मंत्री डॉ. मोहन यादव ने अधिकारियों के साथ मौका मुआयना किया और आगे से खान नदी का दूषित पानी शिप्रा में नहीं मिल सके इसके लिए सभी को आश्वस्त किया। मुख्यमंत्री द्वारा गठित 4 मंत्रियों में से 2 मंत्री श्री भूपेन्द्र सिंह और उज्जैन जिले के प्रभारी मंत्री श्री जगदीश देवड़ा तो समिति गठित होने के बाद से आज दिनांक तक आए ही नहीं और न ही उन्होंने शिप्रा को देखने का कष्ट उठाया ! 
               उसी समय उज्जैन के साधु संत भी शिप्रा की इस दुर्दशा और श्रद्धालुओं की भावनाओं को आघात होते देखकर वे भी मैदान में कूद पड़े। साधु संतों ने शिप्रा शुद्धिकरण और खान नदी का पानी शिप्रा में न मिले, इसके लिए धरना दिया। मुख्यमंत्री के निर्देश पर साधु संतों को मनाया गया और उन्हें यह कहा गया कि वे अपना धरना समाप्त कर लें, आगे से ऐसी नहीं होगा ! इसकी सुनिश्चित योजना बनाई जायेगी। किन्तु आज तारीख तक कुछ नहीं हुआ और न ही कच्चा बाँध बना और खुले आम शिप्रा का दूषित पानी रोज शिप्रा को दूषित कर रहा है। शिप्रा मैली की मैली ही बनी हुई है ! और अपनी दुर्दशा पर आँसू बहाने के लिए बाध्य है ! उसी समय साधु संत मुख्यमंत्री से भोपाल जाकर मिले भी और उन्हें शिप्रा शुद्धिकरण तथा खान नदी के प्रदूषित पानी से रोज दूषित हो रही शिप्रा नदी पर प्रभावी रोक लगाने की भी मांग की थी। तब मुख्यमंत्री ने इस पर सोच विचार कर ठोस कार्रवाई करने के लिए उन्हें आश्वस्त भी किया।
                पिछले दिनों उच्च शिक्षा मंत्री डॉ. मोहन यादव की अध्यक्षता में उज्जेन में खान नदी डायवर्सन योजना के 2 विकल्पों पर साधु संतों की उपस्थिति में विचार विमर्श भी किया गया। उस बैठक में जल संसाधन विभाग के प्रमुख सचिव ने बताया कि जल संसाधन विभाग भोपाल की तकनीकी परीक्षण शाखा ने ओपन चैनल और क्लोस डक्ट की दो योजना बनाई है। बैठक में उक्त दोनां प्रस्ताव के फायदे नुकसान से अवगत कराते हुए यह भी बताया गया कि क्लोज डक्ट ज्यादा उपयुक्त है। इस प्रस्ताव की लागत 600 करोड़ रूपये है ! इस योजना में गोठड़ा ग्राम के पास खान नदी पर एक स्टॉप डेम का निर्माण किया जाएगा। इस स्टॉप डेम से पानी को ले जाकर कालियादेह महल के समीप शिप्रा नदी में मिलाया जायेगा। बैठक में यह भी बताया गया कि इस प्रस्ताव में दो विकल्प है। प्रथम उज्जैन शहर के अर्न्तगत मेला क्षेत्र के बाहर ओपन चैनल का निर्माण किया जाये और दूसरा शिप्रा नदी के समानान्तर भूतिगत आरसीसी बॉक्स का निर्माण किया जाये। इसमें गोठड़ा से कालियादेह महल तक साढ़े 16 किलोमीटर लंबी अंडरग्राउंड डक्ट का निर्माण किया जाएगा। बैठक में क्लोज डक्ट को अधिक उपयोगी बताया गया है।  
                उल्लेखनीय है कि पूर्व में 90 करोड़ रूपये की खान नदी डायवर्सन योजना बनाई गई थी, जो अपने उद्देश्य में पूरी तरह से असफल सिद्ध हो चुकी है। यह सभी मंत्री और वरिष्ठ अधिकारी मानते है, किन्तु खुलकर बोलने में हर काई हिचक रहा है। अब फिर 6 गुना से भी अधिक लागत की करीब 600 करोड़ रूपये के लागत की योजना बनाई जा रही है ! यहाँ यह उल्लेखनीय है कि जब 90 करोड़ रूपये की खान डायवर्सन योजना असफल सिद्ध हो चुकी है, तो उसी प्रकार की 6 गुना अधिक लागत की अंडरग्राउंड डक्ट का निर्माण कैसे उपयोगी और सफल सिद्ध हो सकेगा ? यह प्रश्न चिन्ह है ? इसका उत्तर किसी के पास नहीं है ! 
                शिप्रा नदी को हमेशा शुद्ध रखने और वर्षभर तीज त्यौहारों पर देशभर से आने वाले श्रद्धालुजन शुद्ध जल में ही स्नान कर आचमन भी कर सके, इसके लिए मूल कारणों पर कोई भी नहीं सोच रहा है। यह सब जानते हैं ओर मानते हैं कि शिप्रा नदी के दूषित होने का सबसे प्रमुख कारण खान नदी का प्रदूषित पानी ही है। तो फिर प्रदूषित खान नदी को ही शुद्ध करने पर क्यों विचार नहीं किया जा रहा ? मूल समस्या है खान नदी का दूषित पानी ! तो फिर इन्दौर से उज्जैन तक आने वाली इस खान नदी पर इन्दौर और देवास के कल कारखानों द्वारा अपने दूषित पानी से खान नदी को निरन्तर दूषित होने से रोकने पर क्यों सख्त कार्रवाई नहीं की जा रही है ? यह शाश्वत प्रश्न है ? यदि इन्दौर, देवास और उज्जैन के रास्ते में पड़ने वाले कलकारखानों का दूषित पानी शिप्रा में मिलने से सख्ती से रोक दिया जाये तो खान नदी दूषित ही नहीं होने पायेगी ! और शिप्रा नदी में खान नदी का साफ पानी भी यदि मिले तो किसी को कोई आपत्ति नहीं होगी ! उज्जैन के समीप स्थित शनि मंदिर के तअ पर त्रिवेणी पर पर्व स्नान की परंपरा है। शिप्रा और खान नदी के बाद तीसरी नदी सरस्वती गुप्त मानी जाती है। 
                 राज्य सरकार के साथ ही इन्दौर, देवास और उज्जैन के जिला प्रशासन के अधिकारियों को सर्वोच्च प्राथमिकता पर मिल बैठकर यह गंभीर चिंतन विमर्श करना चाहिए कि किस प्रकार खान नदी में मिलने वाले कल कारखानों का दूषित पानी और नदी नालों का गंदा पानी मिलने ही न पाए ! इन्दौर से उज्जैन तक खान नदी बहकर त्रिवेणी पर शिप्रा नदी में मिलती है। यदि हाल ही में बनाई जा रही 600 करोड़ रूपये की योजना के बजाए इस राशि से खान नदी को ही शुद्ध करने की ठोस योजना बनाई जाए तो वह ज्यादा उपयुक्त होगी ! 
                    यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि शिप्रा को प्रवाहमान बनाने के लिए हाल ही में एक अभिनव योजना उज्जैन में शुरू की गई है। जन सहयोग से आरंभ इस योजना में 22 सहायक नदियों का गहरीकरण करना आंरभ कर दिया गया है। चन्द्रभागा नदी से इसकी शुरूआत भी कर दी गई है। इसमें छोटे-छोटे स्टॉप डेम भी बनाए जाएंगे। शिप्रा संरंक्षण अभियान के अर्न्तगत उज्जैन से लेकर आलोट ( सिपावरा ) तक , जहाँ शिप्रा नदी चंबल नदी में मिलती है, वहाँ तक रास्ते में आने वाली 22 सहायक नदियों के आसपास पौधारोपण और गंदे पानी को नदी में मिलने से राकने के प्रयास भी शुरू कर दिये गए हैं। इस पुनीत कार्य में तालाबों और नदियों पर सेवा कार्य करने वाले पद्मश्री श्री महेश शर्मा और पद्मश्री श्री अनिल प्रकाश जोशी भी जुड़ गए है। इस शिप्रा संरक्षण अभियान के प्रणेता नगर निगम के पूर्व अध्यक्ष श्री सोनू गेहलोत है। इस पुनीत महायज्ञ में मुख्यमंत्री को भी रूचि लेकर इसको तीव्र गति देने का पुनीत कार्य करना चाहिए। मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान जो स्वयं शिप्रा शुद्धिकरण के लिए सतत प्रयासरत रहते है, वे व्यक्तिगत रूप से इस पर ध्यान केन्द्रीत करेंगे तो ही इस मूल समस्या का निराकरण हो सकेगा। अन्यथा पहले 90 करोड़ रूपये की योजना असफल हो गई और अब 600 करोड़ की योजना बनेगी और वह भी निश्चित रूप से अपने उद्देश्य में असफल ही सिद्ध होगी। 
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