राष्ट्रीय संगोष्ठी : विक्रम संवत् के आधार पर ही राष्ट्रीय कैलेन्डर बनें
संदीप कुलश्रेष्ठ
स्वतंत्रता की 75 वीं वर्षगांठ को देशभर में अमृत महोत्सव के रूप में मनाया जा रहा है। इसके अर्न्तगत केन्द्र सरकार ने एक बहुप्रतीक्षित सराहनीय पहल की है। भारतीय राष्ट्रीय दिनदर्शिका ( नेशनल कैलेन्डर ऑफ इंडिया ) द्वारा विक्रम विश्वविद्यालय और विक्रम कीर्ति मंदिर में आगामी 22 और 23 अप्रैल को दो दिन की देशभर के विद्वानों की राष्ट्रीय संगोष्ठी और पंचांगों की प्रदर्शनी आयोजित की जा रही है। इस संगोष्ठी में देश में एक समान तिथि, वार , त्यौहार आदि मनाने के लिए राष्ट्रीय कैलेन्डर भी बनाया जायेगा। इस संगोष्ठी में करीब 300 विद्वान उज्जैन पधारेंगे। उज्जैनवासियों की ओर से उक्त संगोष्ठी में आने वाले समस्त विद्वानों से यह विनम्र निवेदन है कि वे देश के महान सम्राट विक्रमादित्य द्वारा लागू किये गये विक्रम संवत् को ही राष्ट्रीय कैलेन्डर के रूप में शामिल करने की महत्वपूर्ण सिफारिश केन्द्र सरकार से करें !
अनेक आयोजकों द्वारा महत्वपूर्ण संगोष्ठी आयोजित -
उक्त संगोष्ठी के आयोजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वालों में से केन्द्रीय संसदीय मंत्रालय, केन्द्रीय विज्ञान प्रोद्यौगिकी विभाग, विज्ञान प्रसार, भारतीय तारा भौतिकी संस्थान, खगोल विज्ञान केन्द्र, विज्ञान भारती, धारा, मध्यप्रदेश विज्ञान प्रोद्योगिकी परिसर, विक्रम विश्वविद्यालय और पाणिनी संस्कृत विश्वविद्यालय उज्जैन प्रमुख भागीदार है। विक्रम विश्वविद्यालय परिसर में 21 अप्रैल को देश भर में प्रचलित पचांगों की प्रदर्शनी लगेगी। इसी प्रकार विक्रम कीर्ति मंदिर में 22 अप्रैल को राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की जायेगी। इसमें देश भर से आए विषय विशेषज्ञ और विद्वान राष्ट्रीय कैलेन्डर तय करने के संबंध में गंभीर विचार विमर्श और मंथन करेंगे।
यूनिफार्म कैलेन्डर के लिए 1952 में कैलेन्डर रिफार्म कमेटी गठित -
1952 में देश में यूनिफार्म कैलेन्डर के लिए एक कैलेन्डर रिफार्म कमेटी गठित की गई थी। इस कमेटी की अनुशंसा पर नेशनल कैलेन्डर के लिए प्रयास भी हुए थे, लेकिन बाद में मामला आगे न बढ़ सका। केन्द्र सरकार ने फिर से इसकी पहल की है। उल्लेखनीय है कि अभी जिस अग्रेंजी कैलेन्डर को माना जाता है, उस कैलेन्डर के दिन, महीने, वर्ष को लेकर कोई प्रमाणिक मान्यता नहीं है। भारतीय कैलेन्डर पंचांग खगोल पर आधारित है। उदाहरण के लिए महीनों के नाम, नक्षत्रों के आधार पर रखे गए हैं। गृहों के आधार पर ही दिन, तिथि, वार, त्यौहार आदि तय होते हैं। इसलिए पूरे भारत देश में भारतीय कैलेन्डर ज्यादा उपयोगी और प्रासंगिक भी है।
काल गणना का प्राचीन केन्द्र है उज्जैन -
उल्लेखनीय है कि उज्जैन काल गणना का प्राचीन केन्द्र रहा है। उज्जैन की काल गणना को विश्व में मान्यता थी। उज्जैन कर्क रेखा पर स्थित है। इसलिए समय की गणना यहाँ सबसे ज्यादा शुद्ध होती है। और इसी कारण से राजा जयसिंह ने उज्जैन में वैधशाला स्थापित की थी। इसी कारण उज्जैन का देश ही नहीं विश्व में महत्वपूर्ण स्थान है।
विक्रम संवत् को ही राष्ट्रीय कैलेन्डर के रूप में अपनाया जाए -
हमारे देश में 22 मार्च 1957 को भारत के राष्ट्रीय कैलेन्डर के रूप में शक संवत् को ग्रेगोरियन कैलेन्डर के साथ स्वीकार किया गया था। वर्तमान में शक संवत् 1944 चल रहा है। यह सर्वविदित सत्य है कि शक बाहरी आक्रमणकारी थे। फिर भी शक संवत् को राष्ट्रीय कैलेन्डर के रूप में मान्यता देकर ऐतिहासिक भूल की गई है। वर्तमान में विक्रम संवत् 2079 चल रहा है। इस प्रकार विक्रम संवत् शक संवत से 135 साल पुराना है। इसी प्रकार ग्रेगोरियन कैलेन्डर से विक्रम संवत् 57 साल पुराना है। हमारे देश में अभी शहरों और गांवों में मनाये जाने वाले प्रमुख तीज, त्यौहार, पर्व आदि पंचांग और विक्रम संवत् के आधार पर ही मनाए जाते है। विक्रम संवत् का महत्व और उपयोगिता देश के जन-जन के मानस में व्याप्त है।
संगोष्ठी में आने वाले विद्वानों से अनुरोध -
अमृत महोत्सव के अर्न्तगत उज्जैन में आयोजित हो रही राष्ट्रीय संगोष्ठी में केन्द्र और राज्य सरकार से संबंधित सग्रंहालयों और राष्ट्रीय स्तर की विभिन्न संस्थाओं के करीब 100 प्रतिनिधि तथा करीब 200 ज्योतिष, पंचांगकर्ता और खगोल विज्ञान के विद्वान शामिल होंगे। यह सभी विद्वान पंचांगों के तथ्यों पर मंथन कर राष्ट्रीय कैलेन्डर बनायेंगे। इस राष्ट्रीय महत्वपूर्ण संगोष्ठी में आने वाले समस्त विद्वानों से उज्जैनवासियों का अनुरोध है कि वे सम्राट विक्रमादित्य द्वारा आरंभ किये गए विक्रम संवत् को ही मान्यता दें। इसके साथ ही वे अपनी इसी संबंध में महत्वपूर्ण सिफारिश केन्द्र शासन को भेंजे, ताकि केन्द्र शासन विक्रम संवत् को ही नेशनल कैलेन्डर के रूप में मान्य कर सकें। आज समय है कि हम 1957 में की गई गलती को सुधारें। देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी से भी उज्जैनवासियों का अनुरोध है कि वे नवीन राष्ट्रीय कैलेन्डर के रूप में विक्रम संवत् को ही मान्यता दें।
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