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प्रधानमंत्रीजी के नाम उज्जैनवासियों की पातीःदेश में विक्रम संवत् लागू करें !


    संदीप कुलश्रेष्ठ
             मध्यप्रदेश राज्य सरकार द्वारा एक अभिनव प्रयास शुरू किया गया है। इसके अन्तर्गत प्रत्येक शहर का जन्मदिन घोषित कर इसे गौरव दिवस के रूप में मनाया जाएगा। इसमें चैत्र प्रतिपदा नव विक्रम संवत् को उज्जैन शहर का जन्म दिन मनाने की घोषणा की गई। सम्राट विक्रमादित्य ने विक्रम संवत् की शुरूआत की थी। शनिवार चैत्र प्रतिपदा से नव विक्रम संवत् 2079 शुरू हो गया है। उज्जैन के इस जन्म दिन को गौरव दिवस के रूप में भव्य स्तर पर मनाया जा रहा है। इस जन्म दिन और गौरव दिवस को विक्रमोत्सव के रूप में मनाने के लिए प्रदेश के राज्यपाल महामहिम श्री मंगूभाई पटेल और प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान भी उज्जैन आए। 
उज्जैनवासियों का एक सपना, जो साकार होना चाहता है -
          अतः अब उज्जैनवासी सम्राट विक्रमादित्य द्वारा शुरू किये गए विक्रम संवत् को देशभर में राष्ट्रीय कैलेन्डर के रूप में मनाने का सपना संजोए हुए हैं। इसलिए वे चाहते है कि नव विक्रम संवत् चैत्र प्रतिपदा 2079 से शुरू यह विक्रम सवंत को देश में शक संवत् की जगह राष्ट्रीय कैलेन्डर के रूप में लागू किया जाए। इसलिए उज्जैनवासी देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी को पाती लिखकर ये निवेदन कर रहे हैं कि अब इसी नव वर्ष 2079 से देशभर में शक संवत् की जगह विक्रम संवत् लागू किया जाए। 
22 मार्च 1957 को शक संवत् को मान्यता-
          उल्लेखनीय है कि हमारे देश में 22 मार्च 1957 को भारत के राष्ट्रीय कैलेन्डर के रूप में शक संवत् को ग्रेगोरियन कैलेन्डर के साथ स्वीकार किया था। वर्तमान में विक्रम सवंत् 2079 चल रहा है। और शक संवत्् 1944 चल रहा है। इस प्रकार शक संवत् से विक्रम संवत् 135 वर्ष पुराना है। इसी प्रकार ग्रगोरियन कैलेन्डर के रूप में जो कैलेन्डर स्वीकार किया गया है, वह वर्तमान में 2022 चल रहा है। यानी विक्रम संवत् ईस्वी सन् ग्रेगोरियन कैलेन्डर से 57 साल पुराना है। यह सर्वज्ञात सत्य है कि शक बाहरी आक्रमणकारी के रूप में भारत आए थे। फिर किस दबाव में और पता नहीं किन कारणों से देश में शक संवत् को राष्ट्रीय कैलेन्डर के रूप में मान्यता दे दी गई ? अब समय आ गया है कि 22 मार्च 1957 को की गई गलती को सुधारा जाए और देश के गौरव रत्न सम्राट विक्रमादित्य द्वारा आरम्भ किये गए विक्रम संवत को देश के राष्ट्रीय कैलेन्डर के रूप में मान्यता देकर देशभर में लागू किया जाए।
शक संवत् से 135 वर्ष पुराने विक्रम संवत् को मिले मान्यता -
             सम्राट विक्रमादित्य एक अत्यन्त लोकप्रिय, न्यायप्रिय, विद्वान, सत्यनिष्ठ, प्रजा वत्सल और अत्यन्त वीर सम्राट के रूप में अपने समय में ही प्रसिद्ध हो चुके थे। उनकी न्यायप्रियता के अनेक उदाहरण किंवदन्तियों और लोक श्रुतियों में विद्यमान है। ऐसे सम्राट विक्रमादित्य ने शक संवत् से 135 साल पहले ही विक्रम संवत् लागू कर दिया था। इसी प्रकार ग्रेगोरियन कैलेन्डर से भी 57 साल पुराना विक्रम संवत है। 
भारत में पर्व, तीज, त्यौहार विक्रम संवत् से ही मनाये जाते हैं -        
             हमारे देश भारत में विशेषकर ग्रामीण अंचलों में अभी भी मनाए जाने वाले समस्त पर्व, तीज, त्यौहार, तिथियों के अनुसार ही मनाने की परंपरा रही है। और यह समस्त तिथियाँ विक्रम संवत से ही निकलती है। देश की समस्त पवित्र नदियों में पुण्य स्नान के समस्त पर्व तिथियों के अनुसार ही मानाये जाने की भी परम्परा है। यही नहीं देश के चार स्थानों में मनाये जाने वाले कुंभ महापर्व हरिद्वार, इलाहबाद, नासिक और उज्जैन में मनाने की परंपरा भी तिथियों के अनुसार ही तय की जाती है। पर्व स्नान और शाही स्नान भी तिथियों के अनुसार मनाने की ही सनातन परंपरा रही है। इसलिए विक्रम संवत् को लागू किये जाने की आज महती आवश्यकता है। 
मुख्यमंत्री जी, प्रधानमंत्री जी को लिखे चिट्ठी -
            मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान का उज्जैन, महाकाल और शिप्रा नदी से अत्यन्त लगाव रहा है। इसलिए प्रदेश के मुखिया को चाहिए कि वे अब कोई देरी किये बिना, देश भर में शक संवत् की जगह विक्रम संवत् को राष्ट्रीय कैलेन्डर/पंचाग के रूप में लागू करने और मान्यता देने के लिए देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी को चिट्ठी लिखकर अनुरोध करें। मुख्यमंत्री अपने अनुरोध पत्र में शक संवत्, ग्रगोरियन कैलेन्डर और विक्रम संवत का तुलनात्मक महत्व प्रतिपादित करते हुए देशभर में लोगों के दिलों में बसे विक्रम संवत् को ही राष्ट्रीय कैलेन्डर के रूप में मान्यता दिलाने के लिए पुरजोर प्रयास करें। यदि मुख्यमंत्री देश के प्रधानमंत्री को इस संबंध में चिट्ठी लिखकर अनुरोध करेंगे तो बाबा महाकल की कृपा से विक्रम संवत् को राष्ट्रीय कैलेन्डर के रूप में मान्यता मिलने में अब देरी नहीं होगी !
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