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मलवां का शानदार पेड़ा


लेखक डॉ आनंद शर्मा रिटायर्ड सीनियर आईएएस अफ़सर हैं और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री के विशेष कर्तव्यस्थ अधिकारी हैं।

रविवारीय गपशप
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              हाल ही में पाँच राज्यों के विधानसभा चुनावों के परिणाम घोषित हुए हैं और बनी हुई सरकारों पर अबजनता की उम्मीदों पर खरा उतरने की क़वायद शुरू होगी । हमारे देश में लोकतंत्र के ऐसे उत्सवों में जनमानस से लेकरमीडिया तक पूरी तरह सराबोर हो जाते हैं और अधिकारी गण इसके साथ ही चैन की साँस लेते हैं कि चलो ज़िम्मेदारी पूरीहुई । नौकरी में हमें हर तरह के चुनाव देखने को मिले , कभी चुनाव कराने वाले अधिकारी और कभी आयोग के प्रतिनिधिके बतौर प्रेक्षक की भूमिका में । प्रेक्षक की ज़िम्मेदारी के साथ देश भर के अलग अलग हिस्सों में यात्रा और उसकीसंस्कृति के विभिन्न रूपों से परिचय का मौक़ा भी मिलता है ।

               कुछ वर्ष पूर्व विधान परिषद के चुनावों में मुझे उत्तर प्रदेश के कानपुर और फ़तेहपुर ज़िलों के अंतर्गत होने वाले चुनावों का प्रेक्षक नियुक्त किया गया था । कानपुर तो ऐतिहासिक और पौराणिक दृष्टि से मशहूर है ही पर फ़तेहपुर कीभी अपनी एक अलग विशेषता है । फतेहपुर जिले का एक ब्लॉक मुख्यालय मलवाँ है , जो कानपूर - इलाहबाद राजमार्ग पर स्थित है । इस नगर में सड़क के दोनों ओर पेड़े ही पेड़े की दुकानें हैं , गणेश पेड़ा , महेश पेड़ा , सोहन पेड़ा , मोहन पेड़ा और न जाने किस किस नाम से | मैंने नोटिस किया कि राजमार्ग से गुजरने वाले अनेक वाहन रोक कर लोग पेड़ा खरीदते हैं| फ़तेहपुर ज़िले के चुनावी क्षेत्रों के भ्रमण के दौरान मलवाँ से आना जाना होता था सो पेड़े की दुकानों पर इतनी सारी भीड़भाड़ देखकर कुछ उत्सुकता जगी तो मैंने अपने लायजन अधिकारी श्री पाल से कहा कि किसी अच्छी दुकान में रोकिये , देखते हैं पेड़े में क्या विशेषता है ? श्री पाल स्थानीय  अधिकारी थे कहने लगे “अरे सर मैं आपको यहाँ की सबसे मशहूरदुकान में ले चलता हूँ “, और कुछ देर में हमारी कार मोहन पेड़े की दुकान के आगे जा रुकी । दुकान क्या ये तो किसी बड़ेशहर के मशहूर उत्पाद के शोरूम की तरह का पेड़ा बिक्री केंद्र था | 50 गुणित 100 फीट के इस शो रूम नुमा दुकान मेंकेवल पेड़े ही मिल रहे थे , और भारी भीड़ थी । बैठने की जगह कहीं थी नहीं , अलबत्ता आपका मन वहीँ पेड़े खाने कोललचा जाये तो किनारे लाईन से ठन्डे पानी के फ़िल्टर युक्त नल के पास ही कुछ ग्रेनाइट की बेंच अवश्य लगीं थीं   , जिसमें बैठ कर कुछ पेड़ा प्रेमी इसका रसास्वादन भी कर रहे थे । संयोगवश दुकान के मालिक श्री गणेश लाल गुप्ता दुकान पर ही थे । मैंने लायजन अधिकारी से अनुरोध किया तो उन्होंने मेरी मुलाक़ात गुप्ता जी से कराई । प्रारंभिक परिचय के बाद गुप्ता जी ने जो विवरण बताया वो बड़ा दिलचस्प था । कहने लगे “ये दुकान आज से 56 बरस पहले हमने ही गाँवमें सबसे पहले शुरू की थी । हमारे घर में दाल और आटे की मिलें थीं , पर नौकरों ने सब चट कर डाला , मैं आठ साल काबालक था , नौकर समझते की ये बच्चा है , पर मैंने सब धीमे धीमे जाना , पिता जी बड़े सीधे पड़ते थे उनको जब तक नौकरों की कारगुजारियां पता चलीं , तब तक बहुत देर हो चुकी थी । सब कुछ बिक गया तब भी पांच सौ रूपये का घाटाथा । बस तभी से ये पेड़े बनाए और सड़क किनारे किराए की दुकान में बेचे । दुकान चल निकलती तो मकान मालिकदुकान ख़ाली करा खुद पेड़े बेचने लगता और दुकान का नाम भी मोहन पेड़े पर रख लेता , और इस तरह , मेरी देखा देखी आज पूरा शहर पेड़ा बेच रहा है , पर असल तो असल है । आज भी लोग मेरी दुकान ढूँढ कर आते हैं , जैसे आप आ गये । छोटी सी दुकान से इतने बड़े शो रूम का सफ़र मैंने तय किया पर पेड़े की क्वालिटी वही है “। मैंने कहा भाई गुप्ता जी इतनी बड़ी दुकान में आप केवल पेड़ा ही बेचते हो ? तो कुछ शरमा के कहा "नहीं अब चाय भी बेचते हैं" | गणेश गुप्ता जी के साथ मैंने फोटो खिंचाई , एक पाव पेड़ा 110 रुपयों का लिया और जब बाहर आकर मैं अपनी गाड़ी मैं बैठा तो मेरे साथचल रहे सुरक्षा अधिकारी श्री महावीर ने मेरी जानकारी बढ़ाने के लिए कहा  "अरे साहब बड़ा घमंडी है ये सेठ" चाहे कोई भी दुकान में आये अफसर या नेता , कहता है लाईन में लग के लें , बिना नंबर किसी को पेड़ा नहीं देता , इस वजह से कईबार परेशान भी हुआ है पर अपनी जिद नहीं छोड़ता । मुझे लगा वापस मुड़ इस दृढ प्रतिज्ञ वणिक को पुनः प्रणाम करूँ , पर फिर लगा ये यू. पी. वाले सरकारी अमले के लोग न जाने क्या सोचें सो गाड़ी में बैठ अपने गन्तव्य को चल दिया । हाँ लेकिन पेड़ा था एकदम शानदार , मुँह में डालते ही जैसे घुल जाय । मलवां के पेड़ों जैसा पेड़ा फिर मैंने कहीं नहीं खाया ।

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