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आतंकवादियों और बलात्कारियों को मौत की सजा : फाँसी में विलंब पर हो रोक !


डॉ. चन्दर सोनाने

                  हाल ही में 18 फरवरी को गुजरात की विशेष अदालत के जज श्री ए आर पटेल ने अहमदाबाद में 2008 में हुए सीरियल धमाकों के प्रकरण में 49 दोषियों में से 38 को मृत्यु दंड की सजा सुनाई ! इसके साथ ही 11 दोषियों को अंतिम सांस तक जेल में ही रहने की सजा सुनाई ! अपने देश में पहली बार इतने सारे दोषियों को मौत की एक साथ सजा सुनाई गई है । इसके पहले 1991 में पूर्व प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी की हत्या के मामले में तमिलनाडु की टाडा कोर्ट ने 1998 में 26 दोषियों को मृत्यु दंड की सजा सुनाई थी ! 
                   आतंकवादियों को मौत की सजा सुनकर हर एक देशवासियों को सहज ही खुशी होती है । ऐसी ही खुशी तब भी होती है , जब किसी जघन्य बलात्कारी को मौत की सजा सुनाई जाती है ! किंतु वास्तव में होता क्या है ? क्या सभी दोषी आतंकवादियों और बलात्कारियों को मौत की सजा सुनाने के बाद ही उन सब को फाँसी पर लटका दिया जाता है ? हम सब जानते हैं कि ऐसा आज तक नहीं हुआ ! कानून की अंधी गलियों का दुरुपयोग कर सजा प्राप्त दोषी भी सालों साल मामले को लटकाए रखते हैं और दोषी जेल में आराम से जीवित रहते हैं ! इसके हम  सब के पास ढेरों उदाहरण हैं ! यहाँ केवल दो उदाहरण आपके सामने प्रस्तुत हैं !
                   अत्यंत ही चर्चित और जघन्य प्रकरण है , निर्भया केस ! देश की राजधानी दिल्ली में 16 दिसंबर 2012 की रात को कुछ लोगों ने निर्भया के साथ वीभत्स बलात्कार किया , जिसे काफी प्रयास के बाद भी बचाया नहीं जा सका ! इस प्रकरण में देश भर में आमजन द्वारा  आंदोलन किया गया ! इसी कारण सरकार ने विशेष त्वरित कोर्ट गठित की । इस कोर्ट ने सच में आमजन की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए घटना के मात्र 9 माह में ही 14 सितंबर 2013 को चार अपराधियों को फांसी की सजा सुना दी ! किंतु इन्हें सजा सुनाने के बाद भी फाँसी पर लटकाया जा सका करीब 7 साल बाद 20 मार्च 2020 को तिहाड़ जेल में ! है ना मजेदार और शर्मनाक ! इसी प्रकार का एक और चर्चित केस है भुल्लर केस ! साल 1993 में दिल्ली ब्लास्ट का दोषी देवेंद्र पाल सिंह भुल्लर ! इस भुल्लर की दया याचिका राष्ट्रपति जी द्वारा खारिज कर दी गई थी ! इसके बाद भी करीब 8 साल तक कानून की गलियों से यह दोषी आतंकवादी फाँसी से बचता रहा ! और अंत में हुआ क्या ? सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति की दया याचिका में 8 साल की देरी होने पर इसी दोषी आतंकवादी भुल्लर की मृत्यु दंड की सजा को उम्र कैद में बदल दिया ! यह देख और सुन कर एक सामान्य नागरिक को बहुत गुस्सा आता है ! पर वह करें क्या ?
                  नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो इस संबंध में बताता है कि दिसंबर 2021 तक देश की जेलों में 557 ऐसे कैदी हैं , जिन्हें कोर्ट द्वारा मृत्यु दंड की सजा सुना देने के बावजूद उन्हें फाँसी पर लटकाया नहीं जा सका है ! और इस देरी का सबसे बड़ा कारण दोषी की सजा माफी की बहुत ही लंबी प्रक्रिया है ! होता यह है कि जब भी निचली अदालत द्वारा किसी दोषी को मौत की सजा दी जाती है तो उसे उच्च न्यायालय से इसकी पुष्टि करानी पड़ती है ! कई बार उच्च न्यायालय किसी दोषी की सजा को उम्र कैद में भी बदल देता है ! किन्तु जब उच्च न्यायालय से पुष्टि हो जाती है , उन प्रकरणों में भी  तुरन्त सजा इसलिए नहीं मिल पाती है , क्योंकि दोषी सर्वोच्च न्यायालय में अपील कर देता है ! वहाँ से राहत नहीं मिलने पर पुनर्विचार और क्यूरेटिव याचिका विकल्प के रूप में वकील बता देते हैं ! यदि उसे यहाँ से भी राहत नहीं मिलती है तो वह राष्ट्रपति के पास दया याचिका दायर कर देता है ! वहाँ से दया याचिका के निपटारे की कोई भी समय सीमा नहीं होने के कारण दोषी फाँसी से बचते हुए आराम से जेल में रहता है ! और दया याचिका में जब अंतहीन समय लगता है तो भुल्लर केस की तरह वह कानून की गलियों से निकलते हुए फाँसी से साफ बच जाता है तथा सुप्रीम कोर्ट से मौत की सजा को उम्र कैद में भी बदलवा लेता है ! और यदि दया याचिका खारिज कर भी दी जाती है और राष्ट्रपति जी मौत की सजा को कायम रखते भी हैं तो होता क्या है ? जैसे जघन्य और अत्यंत चर्चित निर्भया कांड में दोषी फिर से कानून का मखौल उड़ाते हुए लगातार सालों 7 साल तक फाँसी के फन्दे से बचता रहा ही है !
                 अब बहुत हो गया ! अब तो संविधान में ही संशोधन कर दिया जाए , ताकि आतंकवाद और बलात्कार में दोषी पाए जाने पर मौत की सजा प्राप्त दोषी को तुरंत फाँसी पर लटका दिया जा सके ! जैसे निर्भया केस में केंद्र सरकार ने त्वरित अदालत गठित की थी , ठीक वैसे ही अदालतें देश के प्रत्येक राज्य के सभी जिला मुख्यालयों पर गठित की जाए ! यहाँ अधिकतम एक साल में निर्णय दिया जाना सुनिश्चित किया जाए ! इस अदालत में अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश स्तर का जज नियुक्त हो ! इसकी अपील केवल उच्च न्यायालय में ही हो ! वहाँ भी इन्हीं मामलों के निराकरण के लिए एक त्वरित अदालत हो , जो अधिकतम 6 माह में अपना फैसला सुनाए ! इसकी अपील सर्वोच्च न्यायालय में हो तो वहाँ अधिकतम 3 माह में अपना आदेश सुनाने की बाध्यता हो ! और अंत में राष्ट्रपति के पास ही दया याचिका दायर करने का एकमात्र विकल्प हो ! यहाँ भी केवल एक माह में ही याचिका का निराकरण किए जाने की बाध्यता  हो ! राष्ट्रपति की दया याचिका के निराकरण के बाद कहीं पर भी , सर्वोच्च न्यायालय में भी अपील का कोई प्रावधान नहीं होना चाहिए ! यह भी संविधान में तय कर दिया जाना चाहिए ! यदि ऐसा ही कुछ होगा , तभी आतंकवाद और बलात्कार जैसे अपराधों पर नियंत्रण हो सकेगा ! और दोषी को बिना देरी के सजा मिलने से सही मायने में न्याय भी हो सकेगा ! जब तक ऐसा नहीं होगा , तब तक निर्भया कांड और भुल्लर केस के अपराधी ऐसे ही सजा से बचते रहेंगे ! बचते ही रहेंगे !!!
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