एक मानवीय कमजोरी है मनचाहा भोजन।
रविवारीय गपशप ———————
*लेखक डॉ.आनंद शर्मा रिटायर्ड सीनियर आईएएस अफ़सर हैं और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री के विशेष कर्तव्यस्थ अधिकारी हैं।*
कहावतें और लोकोक्तियाँ अनेक वर्षों के अनुभव के आधार पर गढ़ी जाती हैं , इसलिए वे अक्सर खरी उतरती हैं , जैसे "भूखे भजन न होहिं गोपाला" को ही ले लें | भोजन एक ऐसी ही मानवीय कमजोरी है कि जब तक मनचाहा भोजन न हो काम में मन ही नहीं लगता | बहुत पहले गौतम भी बोधिसत्व को तभी प्राप्त हुए , जब देर तक भूखे रह के तप के बाद सुजाता की खीर उन्होंने खायी थी |
हम लोग जब आई.ए.एस. में पदोन्नत हुए तो इंडक्शन ट्रेनिंग में मैसूर गए । सब कुछ अच्छा होने पर भी भोजन की एकरसता और दक्षिण- भारतीय पद्धति से पके भोजन से हम सब बड़े परेशान हो गये । सुबह डोसा , शाम डोसा , और दोपहर को इडली । मजबूरी में म.प्र. के सारे अधिकारी नीरज दुबे के नेतृत्व और जनक जैन की प्रेरणा में हर शाम उत्तर भारतीय भोजन प्रदाय करने वाले होटल की खोज में निकल पड़ते । जब इस छह सप्ताह की ट्रेनिंग के आखिरी सप्ताह में परिवार को आने की इजाजत दी गयी तो महिला मंडल के आते ही सबने एक स्वर में उनसे विनती की कि कृपया होस्टल के किचन में जा कर अपनी तरह का खाना रसोइयों को सिखा दीजिये |
ऐसा ही एक और मज़ेदार प्रसंग है | परिवहन विभाग का प्रदेश से एक अध्ययन दल बैंकाक गया | दल में विभाग के मंत्री के साथ प्रमुख सचिव मलय रॉय , आयुक्त श्री एन. के. त्रिपाठी भी थे | मंत्री जी बेहद सादगी पसंद लेकिन अपने उसूलों पर दृढ़ और ईमानदार तबियत के थे । बैंकाक में पहुँच के सभी लोग होटल में रुक गए । दूसरे दिन सुबह दोनों अफसरों को मंत्री जी ने बुलाया और कहा “मुझे तो यहाँ जम नहीं रहा है , ऐसा करिये मेरा आज का ही वापसी का टिकिट करवा दीजिये मैं दिल्ली निकल जाता हूँ , आप लोग अपना तय कार्यक्रम करके वापस आइयेगा" । अफसर बड़े असमंजस में आ गए कि क्या करें ? मंत्री बड़े संजीदा मूड में थे बात करने की कोई गुंजाईश नही दिख रही थी , और मंत्री जी लौट जाएँ तो काहे का दौरा और काहे का तय कार्यक्रम ? क्या करें कुछ सूझ नहीं पड़ रहा था , अचानक मंत्री जी के साथ गयीं उनकी पत्नी ने त्रिपाठी जी को एक तरफ बुला कर धीमे से बताया कि कल से इन्होंने कुछ खाया ही नहीं है | अनुभवी आयुक्त ने मंत्री जी से कहा कि , ठीक है मैं वापसी की टिकटों का इन्तिजाम करता हूँ और जाकर सबसे पहले ये पता किया कि भारतीय पद्धति का जैन फ़ूड कहाँ मिलेगा , फिर आकर मंत्री जी से कहा कि जब तक टिकिट आती हैं चलिए लंच कर लें । सभी लोगों को टेक्सी से लेकर सीधे पता की गयी होटल में पहुंचे जहाँ विशुद्ध शाकाहारी जैन पद्धति का भोजन उपलब्ध था । सबने छक कर खाया और वापस होटल आ गए | मंत्री जी अपने कमरे में आराम करने चले गए । शाम को दोनों अफसर मंत्री जी के कमरे में पंहुचे तो देखा कि हमेशा कुरता-पायज़ामा पहनने वाले मंत्री जी पेंट-शर्ट पहन कर बैठे हैं । मंत्री जी ने उन्हें देखा तो मुस्कुरा कर बोले चलिए शहर घूम आएँ | त्रिपाठी जी ने सौम्यता से पूछा और सर वापसी का क्या करना है ? मंत्री जी कहने लगे , हम तो तय कार्यक्रम से ही वापस चलेंगे बस ये शर्त है कि खाना खाने रोज़ उसी होटल में चला करेंगे जहाँ आज दोपहर गए थे |
...000...