बेरोजगारी से 9 और कर्ज से परेशान 15 लोगों ने की रोज आत्महत्या !
डॉ. चन्दर सोनाने
हाल ही में संसद में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री श्री नित्यानंद राय ने राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के हवाले से गत तीन वर्षों में बेरोजगारी और कर्ज से परेशान होने के कारण आत्महत्या करने वालों के आँकड़े प्रस्तुत किए । उन्होंने राज्य सभा के सदस्य श्री सुखरामसिंह यादव , सुश्री छाया वर्मा और श्री विश्वम्भर निषाद के सवालों के जवाब में बताया कि वर्ष 2018 से 2020 के बीच देश में बेरोजगारी से परेशान होकर 9,140 ने आत्महत्या कर अपनी जान दे दी ! इसी प्रकार कर्ज से दबे होने और दिवालिया हो जाने कारण 16,091 लोगों ने अपनी जान दे दी ! यानी औसत रोज 9 लोगों ने बेरोजगारी और 15 लोगों ने कर्ज में दबे होने कारण आत्महत्या कर ली !
संसद में उक्त जानकारी प्रस्तुत करने के बाद भी आश्चर्य और दुख की बात यह है कि किसी भी राजनैतिक दल ने इन दुखद परिस्थितियों के कारणों को बदलने और आगे से ऐसी स्थितियाँ बनने ही नहीं पाए , इसके लिए कोई भी विशेष चर्चा नहीं की ! और ना ही किसी ने मोदी सरकार के राज्य मंत्री से यह पूछा कि सरकार ऐसी स्थिति को रोकने के लिए क्या करने जा रही है ? और ना ही राज्य मंत्री ने इस बारे में कोई जानकारी दी । उन्होंने संसद में प्रश्न पूछे जाने के बाद मात्र आँकड़े प्रस्तुत कर अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन कर लिया ! संसद में यह जानकारी भी नहीं दी गई कि अपनी जान देने वाले लोग कौन थे ? किसान थे ? या मजदूर ? या फिर कोई और ? संवेदनहीन और निर्लिप्त होकर मौतों के आँकड़े ऐसे कैसे प्रस्तुत किये जा सकते हैं ? ये मात्र आँकड़ें नहीं है ! पर दुखद तो यही है ! ऐसा ही हुआ !
देश में ऐसे हालत क्यों बन गए कि लोग बेरोजगारी या लिए गए कर्ज को नहीं चुकाने की बेबसी के कारण अपने परिवार को मझधार में छोड़कर मौत को गले लगाने के लिए मजबूर हो जाए ! इसकी पड़ताल बहुत जरूरी है ! हाल ही में केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय से प्राप्त जानकारी के आधार पर बनाई गई एक और खबर आई । वह यह कि हमारे देश के ग्रामीण इलाकों में केंद्र सरकार की रोजगार की सबसे बड़ी योजना मनरेगा है । इसमें पंजीयन कराकर काम मांगने पर साल के 365 दिन में से कम से कम 100 दिन रोजगार देने का नियम है । इस अत्यंत महत्वपूर्ण योजना में देश में इस वर्ष 2021-22 में जनवरी 2022 तक 11.6 करोड़ लोगों ने काम माँगा । किन्तु इनमें से 1.89 करोड़ लोगों का काम ही नहीं मिला ! जिन्हें काम नहीं मिला , उनका प्रतिशत 16.3 है ! पिछले चार सालों में यह सर्वाधिक है ! इसी प्रकार वर्ष 2020-21 में 13.3 करोड़ लोगों ने काम मांगा और इसमें से 2.14 करोड़ लोगों को काम नहीं मिला ! यह 16.0 प्रतिशत है ! वर्ष 2019-2020 में 9.3 करोड़ लोगों ने काम मांगा , किन्तु इसमें से 1.45 करोड़ लोगों को काम ही नहीं मिला ! यह 15.6 प्रतिशत है । इसी प्रकार वर्ष 2018-2019 में 9.1 करोड़ लोगों ने जब काम मांगा तो इसमें से 1.34 करोड़ लोगों को काम नहीं मिला ! काम काम नहीं मिलने वालों का यह 14.8 प्रतिशत है !
मनरेगा में पिछले साल मांगने पर भी काम नहीं मिलने के मामले में सबसे खराब हालत प्रधानमंत्री जी के गृह राज्य गुजरात की है ! इस राज्य में 25.45 लाख लोगों ने काम मांगा , किन्तु इसमें से 8.84 लाख लोगों को काम नहीं मिलने से निराश होना पड़ा ! यह काम मिलने वालों की तुलना में काम नहीं मिलने वाले लोगों का देश में सबसे अधिक 34.7 प्रतिशत है ! इसके बाद बिहार है ! इस राज्य में 52.35 लाख लोगों ने जब काम मांगा तो 13.41 लाख लोगों को काम ही नहीं मिला ! इनका प्रतिशत 25.6 है ! तीसरे स्थान पर मध्यप्रदेश है । इस राज्य के 1.14 करोड़ लोगों ने काम मांगा तो इसमें से 25.78 लाख लोगों को काम ही नहीं मिला ! यह काम मिलने वालों की तुलना में नहीं मिलने वालों का 22.7 प्रतिशत है ! हरियाणा राज्य के 6.52 लाख लोगों ने जब काम मांगा तो इनमें से 1.34 लाख लोगों को निराश होना पड़ा ! काम नहीं मिलने वालों का प्रतिशत 20.7 है ! और इनकी मजदूरी को भी देख लीजिए ! काम मिलने पर इन्हें रोज केवल 193 रु से लेकर 315 रु ही मिलते हैं ! यह भी काम नहीं मिलने पर इन्हें नसीब नहीं होते हैं !
और सबसे मजेदार बात यह है कि वर्ष 2021-22 में मोदी सरकार ने मनरेगा में गाँव के लोगों को रोजगार देने के लिए 98 हजार करोड़ रु आवंटित किए हैं , किंतु आगामी साल वर्ष 2022 - 23 में यह राशि बढ़ाने की बजाए और घटा दी गई है ! और वह भी 25 हजार करोड़ रु कम ! यानी अगले साल के लिए मनरेगा में केवल 73 हजार करोड़ रु ही दिए गए हैं ! यह कमी पिछले वर्ष की तुलना में 25 प्रतिशत से भी ज्यादा है ! इसे आप क्या कहेंगे ? काम नहीं मिलेगा तो आदमी अपने परिवार के खाने पीने के लिए पैसा कहाँ से लाएगा ? मजबूर होकर वह कर्जा लेता है । और साहूकार का कर्जा नहीं चुकाने तथा उसकी प्रताड़ना के कारण ना चाहते हुए भी वह मजबूर होकर मौत को गले लगा लेता है ! उसे यही आसान लगता है ! मजदूर और किसानों की आत्महत्या का यही सबसे बड़ा कारण भी है ! और गाँव हो या शहर जब एक आम आदमी को काम नहीं मिलता है तो वह बेरोजगारी से परेशान होकर आसान रास्ता आत्महत्या की राह चल पड़ता हैं ! छोटे मोटे काम धंधा करने वाले जब अपना कर्जा नहीं चुका पाते हैं या दिवालिया हो जाते हैं तो वे भी मजबूर होकर मौत को गले लगा लेते हैं ! यह गलत है ! आत्महत्या को कोई भी किसी भी तरह से सही नहीं ठहरा सकता ! किंतु अभी हो तो यही रहा है ! और कोई भी कुछ भी नहीं कर रहा है !
हाल ही में एक और खबर आई है । देश में गोल्ड लोन लेने वाले करीब एक लाख लोगों को कर्ज नहीं चुका पाने के कारण एक साथ 16 फरवरी को उनका गिरवी रखा गया सोना एनबीएफ़सी और बैंक नीलाम करने जा रहे हैं ! इस पूरे महीने की बात करें तो यह लोन लेने वाले तथा चुका नहीं पाने वालों की संख्या दो लाख तक पहुँचने की संभावना है ! यह सब को पता है कि आपात स्थिति में लोग अपने परिवार की महिलाओं के सोने के गहने गिरवी रख कर लोन लेते हैं ! अब क्या होगा ? इन करीब दो लाख लोगों के परिवारों में से अधिकतर लोगों के घर रोज झगड़े और विवाद होंगे तथा उनके जीवन में हताशा एवं निराशा व्याप्त हो जाएगी ! इनमें से कुछ मानसिक तनाव सहन नहीं कर पाने के कारण आत्महत्या करने के लिए भी सोच सकते हैं ! किन्तु ऐसा कदापि नहीं होना चाहिए !
अब आगे किसी का भी परिवार नहीं उजड़े , इसके लिए हमारे प्रधानमंत्री जी को चाहिए कि वे देश के बड़े - बड़े उद्योगपतियों से ध्यान हटाकर उक्त परिस्थितियों से निपटने के लिए अल्पकालिक और दीर्घकालिक उपाय सोचें और उसका शीघ्र जमीन पर ठोस क्रियान्वयन किया जाना सुनिश्चित करें ! इसके साथ ही केंद्र और राज्यों में सभी विभागों में सालों से रिक्त पड़े सभी पदों को भरने के लिए विशेष अभियान चलाए , ताकि इसी वर्ष के अंत तक देश के लाखों बेरोजगारों को रोजगार मुहैया किया जा सके ! इसके अतिरिक्त छोटे - मोटे काम - धंधा करने वालों को आसानी से बैंकों से लोन मिल सके , ताकि वे भी अपना और अपने परिवारों का आसानी से जीवन यापन कर सकें ! और वे कभी भी अपने परिवार को बेसहारा छोड़कर आत्महत्या करने के बारे में सोच ही नहीं सकें ! यदि ऐसा ही कुछ प्रधानमंत्री जी करेंगे , तो देश के लाखों परिवार उन्हें दुआ देंगे !!!
----------०००-------