सवा किलो लड्डू खाकर दोबारा दिया हिंदी का परचा।
लेखक डॉ. आनंद शर्मा रिटायर्ड सीनियर आईएएस अफ़सर हैं और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री के विशेष कर्तव्यस्थ अधिकारी हैं।
कहते हैं जीवन में दोस्त ही ऐसे हैं जिन्हें आप खुद चुनते हैं , बाक़ी के रिश्ते माँ , बाप , बहन भाई मौसा चाचा बुआ सब ईश्वर के बनाये संयोगों से बनते हैं , इसलिये दोस्त बड़े सोच समझ कर चुनने चाहिए । संयोग से मैं इस सम्बंध में बड़ा ख़ुश क़िस्मत हूँ कि मेरे दोस्तों का कुनबा हमेशा भरा पूरा और आबाद रहा है फिर चाहे वे स्कूली दुनिया के दोस्त हों या नौकरी के दौरान सम्पर्क में आए साथी अधिकारी । बहरहाल जैसा कि सब जानते हैं दोस्ती में एक दुसरे की टांग खींचने का भी बड़ा मज़ा है तो हम सब वो पुरानी बातें याद कर एक दुसरे की खिंचाई भी करते हैं , आज भी मुझे उनमे से कुछ बातें याद आ रही हैं सो आपको नज्र करता हूँ |
हमारे बैच के हरदिलअज़ीज़ मित्र जे.के.जैन ऐसे ही मित्र रहे हैं , दोस्तों की टांग खिंचाई में उनका जवाब नहीं । मज़े की बात ये है कि उनके छेड़ने से उनको भी बुरा नहीं लगता जिसे वे छेड़ रहे होते हैं । कालेज के मित्रों की याद करूँ तो मुझे याद आते हैं ओमप्रकाश सोनी , जिसे हम प्यार से पल्लू भाई कहते हैं । जी एस कालेज में पढ़ाई के दौरान डिलाइट टाकीज के पास होटल में खाना खाने के दौरान सब्जी की उसी प्लेट में अतिरिक्त सब्ज़ी डलवाना हो या टाकीज में बिना लाइन टिकिट लेनी हो , इन कामों में उनका कोई सानी नहीं था , बस एक ही कमी थी , बोलने पे उनका बस नहीं था जो जी में आया तुरंत कह देते । एक दिन हम कटनी में कहीं जा रहे थे कि बाज़ार में एक पुराना दोस्त रास्ते में सामने से आता दिख गया , जो कि पिछले कई महीनों से मिला न था | हम आपस में मिले , दुआ सलाम हुई , फिर मैंने पूछा भाई बहुत दिनों में दिख रहे हो क्या कर रहे हो आजकल ? उसने कहा “कुछ नहीं यार नगर निगम में यूँ ही टेम्परेरी जॉब कर रहा हूँ” इसके पहले कि मैं कुछ कहूँ पल्लू भाई कह बैठे “क्या यार जितने भी आलतू-फ़ालतू थे सब नगर निगम में लगे जा रहे हैं” सामने वाले से , जाहिर है लड़ाई होने ही थी | बड़ी मुश्किल से बीच बचाव किया तो पल्लू भाई बोले यार मैंने तेरे लिए नहीं कहा था ।
हम जबलपुर के जी. एस. कालेज में पढ़ते थे और कटनी से प्रतिदिन आवागमन करते थे । परीक्षा में हिंदी के पेपर में एक निबंध लेखन 40 नंबर का आता था यानि बेहद महत्वपूर्ण भाग | ये वर्ष 1978 – 79 की बात रही होगी , आपातकाल ख़त्म ही हुआ था | उस दिन पेपर में निबंध आया “नशाबंदी” पर अपने विचार लिखें | मेरा तो पेपर बढ़िया हुआ , हम बाहर निकले और एक दुसरे का पेपर कैसा गया पूछ रहे थे कि पल्लू भाई सामने से आते दिखे हमने पूछा भाई कैसा रहा परचा ? बोले “अरे मत पूछो निबंध में तो फोड़ दिया” ! सब लिख मारा कि “ऐसी ज्यादती हुई” और “वैसी जबरदस्ती की गयी” , लोगो को पकड पकड कर हस्पताल में ले जाते थे और जबरन नसबंदी करी गयी आदि आदि | मैंने कहा भाई क्या बोल रहे हो काहे पर निबंध लिख आये ? बोले नसबंदी पर | मैंने माथा ठोका और कहा भाई मेरे निबंध तो “नशाबंदी” पर लिखना था “नसबंदी” पर नहीं | दरअसल उस दिनों आपातकाल की समाप्ति के बाद खबरों की सुर्ख़ियों में आपातकाल के दौरान की गयी ज्यादतियों की खबरें खूब छपा करती थीं और जबरन नसबंदी के मुताल्लिक सुर्ख़ियाँ भी पेपर में खूब छायी रहती थीं और पल्लू भाई के दिमाग में वही हावी रहा आया , अब क्या करें ? पल्लू भाई तो बेहोश होते होते बचे और ऐसे अवसर पर जो होता है वही उन्होंने किया , तुरंत हवा में हाथ जोड़े और कहा हे बजरंग बली ये पेपर किसी तरह निरस्त हो जाए तो सवा किलो लड्डू का प्रसाद चढाऊंगा | क्या पता बजरंगबली को तरस आया या और कोई संयोग था पर उस दिन जबलपुर यूनिवर्सिटी के किसी अन्य कालेज में पेपर आउट होने की खबरें आयीं और जाँच में पुष्टि भी हो गयी , नतीजतन वो पेपर वाकई रद्द कर दिया गया । फिर क्या था हम सबने सवा किलो लड्डू खाकर दुबारा परचा दिया ।