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शिप्रा शुद्धिकरण और सप्त सागरों को बचाने साधु संत आए आगे !


 डॉ. चन्दर सोनाने

                  और जब शासन और प्रशासन के कानों में जूं नहीं रेंगी तो साधु - संत आगे आए तथा एक बार फिर उज्जैन में मोक्षदायिनी शिप्रा नदी के शुद्धिकरण एवं पौराणिक सप्त सागरों को बचाने के लिए धरने पर बैठ गए ! ये साधु - संत 21 जनवरी से रोज दोपहर 12 बजे से दोपहर 3 बजे तक सप्त सागरों में से एक गोवर्धन सागर के किनारे अपना अनिश्चितकालीन धरना दे रहे हैं !
                  आप सोच रहे होंगे , इस मामले में साधु - संत कैसे पड़ गए ? तो इसकी भी एक कहानी है । गत 4 दिसंबर 2021 को शनिश्चरी अमावस्या का पर्व था । इस पर्व पर  हजारों श्रद्धालु उज्जैन की पतित पावन शिप्रा नदी के त्रिवेणी संगम पर अपनी आस्था की डुबकी लगाने दूर - दूर से यहाँ आते हैं । इसी त्रिवेणी संगम पर खान नदी का दूषित और प्रदूषित पानी शिप्रा नदी के पानी को गंदा नहीं कर दें , इसके लिए पिछले अनेक सालों से जिला प्रशासन मिट्टी का कच्चा बांध बना देती है ! इस बार मावठा गिर गया और शनिश्चरी अमावस्या के ही दिन प्रातः काल मिट्टी का बांध टूट गया ! और फिर खान नदी का अत्यंत गंदा , दूषित और प्रदूषित पानी सीधा शिप्रा नदी में मिल गया ! और श्रद्धालुओं को मन मारकर इसी पानी में स्नान करने के लिए मजबूर होना पड़ा ! यह देखकर उज्जयिनी नगरी के साधु संतों का आक्रोश फूट पड़ा ! वे पहले उन सभी स्थानों पर गए , जहाँ पर शिप्रा नदी में खान नदी और अनेक नालों का गंदा पानी मिल रहा था । इसके साथ ही वे उन सभी स्थानों पर भी गए , जहाँ उद्योगों का प्रदूषित पानी शिप्रा और खान नदी को प्रदूषित कर रहा था । और फिर शिप्रा मैय्या की इस दुर्दशा को देखकर शिप्रा नदी के शुद्धिकरण के लिए उज्जैन में शिप्रा नदी के तट पर ही धरने पर बैठ गए ! चूंकि मध्यप्रदेश में भाजपा की सरकार है और उनके राज्य में ही साधु संत उनके ही खिलाफ धरने पर बैठे ! यह कैसे हो सकता है ? सो मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान के निर्देश पर तुरन्त उच्च शिक्षा मंत्री डॉ मोहन यादव , पूर्व मंत्री श्री पारस जैन , सांसद श्री अनिल फिरोजिया आदि साधु संतों के पास पहुँचे और उन्हें शीघ्र कार्रवाई करने का बोल कर , समझा कर , जैसे - तैसे उनका धरना प्रदर्शन बंद करवा दिया !
                 इसके बाद मुख्यमंत्री ने शिप्रा नदी के शुद्धिकरण के स्थायी उपाय करने के लिए सुझाव देने के लिए चार कैबिनेट मंत्रियों की उच्च स्तरीय समिति गठित की ! इस समिति में उज्जैन जिले के प्रभारी मंत्री एवं वित्त मंत्री श्री जगदीश देवड़ा , नगरीय प्रशासन विकास मंत्री श्री भूपेन्द्र सिंह , जल संसाधन मंत्री श्री तुलसी सिलावट और उच्च शिक्षा मंत्री डॉ मोहन यादव को रखा गया । मुख्यमंत्री के ही निर्देश पर उच्च अधिकारियों के साथ समिति का उज्जैन दौरा तय हुआ ! किन्तु इस समिति के दो मंत्रियों ने उज्जैन आना ही जरूरी नहीं समझा और वे आए ही नहीं ! उन्होंने इस बेकार के काम में कोई रुचि ही नहीं ली ! इन दो गैर जिम्मेदार मंत्रियों में एक उज्जैन जिले के ही प्रभारी मंत्री श्री जगदीश देवडा और दूसरे श्री भूपेन्द्र सिंह थे ! उज्जैन के ही डॉ मोहन यादव और पास के जिले इंदौर के श्री तुलसी सिलावट उज्जैन आये और उन्होंने विभिन्न स्थानों को भी देखा , जहाँ शिप्रा प्रदूषित हो रही थी । वे साधु संतों से भी मिले । और शिप्रा नदी के पानी में खान नदी का दूषित पानी आगे से नहीं मिले , इसके लिए सभी स्थायी समाधान करने का आश्वासन दिया । इसी दिन प्रेस से चर्चा करते हुए सिहस्थ 2016 के लिए 90 करोड़ रुपए की खान डायवर्शन योजना को बेकार और असफल मानते हुए उसकी जाँच करने की भी घोषणा जल संसाधन मंत्री श्री तुलसी सिलावट जी ने कर दी । हालांकि करीब एक माह हो गया अभी तक , जाँच तो दूर की बात , अभी तक जाँच के आदेश ही जारी नहीं हुए है !
                  आइए , हम आपको थोड़ा तीन साल पीछे ले चलते हैं ! वर्ष 2019 की शनिश्चरी अमावस्या का पर्व ! इस दिन भी परंपरा के अनुसार हजारों श्रद्धालु स्नान के लिए शिप्रा नदी के त्रिवेणी संगम पहुँचे ! किन्तु वहाँ स्नान के लिए पानी ही नहीं था ! तब जाकर जिला प्रशासन ने तुरत - फुरत पानी की पाइप लाइन डालकर लोगों को फव्वारा स्नान करवाया । सरकार की खूब फजियत हुई ! उस वक्त कमलनाथ जी ताजे - ताजे मुख्यमंत्री बने थे । उन्होंने तत्काल कलेक्टर और संभाग आयुक्त को हटा दिया । इसके साथ ही इस घटना की जाँच करने और आगे से ऐसा नहीं हो , इसके लिए अपने मुख्य सचिव श्री एस आर मोहंती को उज्जैन भेजा । उन्होंने उज्जैन आकर सब देखा और खान नदी पर आगे से कच्चे बांध बनाने पर रोक लगाकर तुरंत ही पक्का बांध बनाने के निर्देश  दिए ! निर्देश दिए तीन साल हो गए ! अभी तक पक्का बांध तो नहीं बना , किन्तु हाँ , साल 2021 में भी रोक के बावजूद कच्चा बांध जरूर बनाया गया और वह भी पानी में बह गया ! और वर्ष 2022 में 15 जनवरी को मकर संक्रांति पर्व पर लोगों के स्नान के लिए फिर कच्चा बांध बनाया गया और वह भी 18 जनवरी को बह गया ! एक बार कच्चा बांध बनाने में करीब 10 लाख रु लगते हैं ! और 10 लाख रु हर बार पानी में बह जाते हैं ! अनेक सालों से यही हो रहा है ! है ना भ्रष्टाचार और बेहतरीन इंजीनियरिंग का कमाल !
                  अब वापस आते हैं मूल बात पर । अनेक सालों से यह सब देखकर साधु संतों का धैर्य जवाब दे गया ! उनका सरकार और प्रशासन पर से विश्वास ही उठ गया और वे फिर से बैठ गए स्थायी समाधान होने तक धरने पर ! जैसा कि होता है जिला प्रशासन के अधिकारी साधु संतों को समझाने पहुँचे और उन्हें निराश होना पड़ा । अब देखते हैं , आगे क्या होता है ? वैसे होगा वही , जो अभी तक होता आया है ! आगे 1 फरवरी को मौनी अमावस्या और 1 मार्च को महाशिवरात्रि के पर्व आ ही रहे हैं !!!
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