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प्रदूषित शिप्रा : आख्रिर कब तक श्रद्धालुओं की भावनाओं से खिलवाड़ होता रहेगा ?


  डॉ. चन्दर सोनाने

               हर साल की तरह इस बार फिर वही हुआ , जिसका सबको अंदेशा था ! उज्जैन के सभी जागरूक नागरिकों , पत्रकारों , श्रद्धालुओं को पता था कि इस बार भी यही होगा ! बस पता नहीं था तो उज्जैन जिला प्रशासन और जल संसाधन विभाग के अधिकारियों को पता नहीं था ! शनिश्चरी अमावस्या को पतित पावन क्षिप्रा नदी में स्नान करने के लिए हर वर्ष की तरह इस साल भी हजारों श्रद्धालु स्नान करने आए , किन्तु उन्हें इंदौर से आने वाली अत्यंत प्रदूषित खान नदी के गंदे , मटमैले और दूषित पानी में स्नान करने ले लिए मजबूर होना पड़ा !
               आइए , आपको उज्जैन नगरी में हर साल होने वाले इस नाटक के बारे में विस्तार से बताएँ ! यह सबको पता है कि देश में चार स्थानों हरिद्वार , इलाहाबाद , नासिक और उज्जैन में कुम्भ महापर्व आयोजित होता हैं । इन पुण्य स्थानों में से एक स्थान मध्यप्रदेश का उज्जैन भी है । यहाँ हर बारह साल में एक बार मोक्षदायिनी शिप्रा नदी के तट पर सिंहस्थ मेला लगता है । किंतु जिस स्थान पर स्नान की शुरुआत होती है वह है , शिप्रा नदी का त्रिवेणी संगम ! इसके आगे के प्रमुख स्नान घाट हैं गऊघाट , भूखीमाता , रामघाट , मंगलनाथ और सिद्धवट । इन प्रमुख शिप्रा घाटों पर श्रद्धालु आस्था और विश्वास की डुबकी लगाते हैं । किन्तु इसी प्रमुख त्रिवेणी संगम घाट पर शिप्रा नदी और इंदौर से आने वाली अत्यंत प्रदूषित खान नदी का संगम स्थल भी है ! हर साल शनिश्चरी अमावस्या का पर्व हो या साल भर आने वाले अन्य पर्व - त्यौहार , जब हजारों श्रद्धालु अपनी आस्था और विश्वास की डुबकी लगाने शिप्रा तट आते हैं , किन्तु साल भर खान नदी का प्रदूषित पानी शिप्रा नदी में त्रिवेणी संगम पर मिलता ही रहता है ।
                इसलिए  मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने वर्ष 2016 के सिंहस्थ महापर्व के लिए पतित पावन शिप्रा नदी के पानी में ही श्रद्धालु स्नान कर सके , इसके लिए बहुत पहले ही प्रशासन और संबंधित अधिकारियों से उपाय पूछे कि वे ऐसी योजना बनाएँ , जिससे खान नदी का दूषित पानी शिप्रा नदी में मिल ही नहीं सके और श्रद्धालु शिप्रा नदी के पवित्र जल में ही सिंहस्थ महापर्व तथा साल भर आने वाले पर्वों पर स्नान कर सके । मुख्यमंत्री का प्रयास सराहनीय था , किन्तु जिला प्रशासन और जल संसाधन विभाग ने उस समय 90 करोड़ रुपये की लागत की एक ऐसी योजना मुख्यमंत्री के सामने प्रस्तुत कर दी , जो आगे जाकर क्रियान्वयन हो जाने के बाद पूरी तरह असफल सिद्ध हो गई ! उस योजना में राघौ पिपलिया से कालियादेह महल तक 19 किलोमीटर लंबी भूमिगत पाइप लाइन डाली गई । इस पाइप लाइन से खान नदी का प्रदूषित पानी जैसा है , वैसा ही राघौ पिपलिया से बायपास होकर कालियादेह महल के आगे फिर से शिप्रा नदी में ही डाल दिया जाता है ! इस स्थान के आगे के सभी स्थानों पर शिप्रा नदी में विभिन्न पर्व और त्यौहारों पर भी श्रद्धालु स्नान करते हैं , उन सब को भगवान भरोसे छोड़ दिया गया !
               अब एक और मजेदार बात ! जल संसाधन विभाग ने जो योजना बनाई , उसके अनुसार तो खान नदी का सारा प्रदूषित पानी बाईपास होकर चले जाना चाहिए था ! किंतु हमेशा ऐसा होता नहीं है ! हाल ही में शनिश्चरी अमावस्या 4 दिसंबर को आई । इसके पहले मावठा गिरा । हर साल मावठा गिरता ही है ! खान नदी का दूषित पानी शिप्रा नदी में नहीं मिले , इसके लिए त्रिवेणी संगम के पहले खान नदी पर लगभग हर साल करीब 15 लाख रु से मिट्टी का कच्चा बांध बनाया जाता है ! किंतु जैसा लगभग हर साल होता है , मावठे की तेज बारिश से शनिश्चरी अमावस्या को प्रातः काल में ही बांध टूट कर बह गया ! और खान नदी का पूरा प्रदूषित पानी सीधे त्रिवेणी संगम में शिप्रा नदी में मिल गया ! इस स्थान के आगे के सभी शिप्रा घाटों पर हजारों श्रद्धालुओं को इसी दूषित , गंदे और मटमैले पानी में ही स्नान के लिए बाध्य होना पड़ा ! इसे आप क्या कहेंगे ? सीधे - सीधे श्रद्धालुओं की भावनाओं के साथ खिलवाड़ नहीं तो यह क्या है ? हाँलाकि त्रिवेणी घाट पर पाइप लाइन से पानी लाकर फव्वारे से स्नान की व्यवस्था जिला प्रशासन ने कर दी थी । किन्तु इसके आगे के घाटों पर कोई व्यवस्था नहीं की गई ! और नर्मदा - शिप्रा लिंक योजना से शनिश्चरी अमावस्या के लिए ही शिप्रा नदी में लाया गया सारा पानी बेकार गया , क्योंकि कच्चा बांध टूटने से खान नदी के प्रदूषित पानी ने उसे भी दूषित कर दिया !
              अब आपको तीन साल पहले ले चलते हैं ! उस समय 6 जनवरी 2019 को शनिश्चरी अमावस्या आई थी । प्रशासन ने श्रद्धालुओं के स्नान की कोई व्यवस्था नहीं की थी । श्रद्धालुओं को दूषित जल में ही स्नान करने पर मजबूर होना पड़ा था ! मीडिया में इसकी बहुत आलोचना भी हुई थी । उस समय  कुछ दिन ही हुए थे जब श्री कमलनाथ ने मुख्यमंत्री का पदभार संभाला था।  तो उन्होंने तत्काल तत्कालीन संभागायुक्त श्री एम बी ओझा और कलेक्टर श्री मनीष सिंह को हटाकर बहुत वाह - वाह लूटी थी ! मुख्यमंत्री ने अपने तेज तर्राट मुख्य सचिव श्री एस आर मोहंती को इस घटना की जाँच करने के लिए  उज्जैन भेजा भी था । उन्होंने जाँच कर जल संसाधन विभाग के अधिकारियों के विरुद्ध भी कार्रवाई की तथा त्रिवेणी संगम के पहले खान नदी पर कच्चा बाँध बनाने की जगह पक्का बाँध बनाने की सिफारिश की थी ! वह सिफारिश आज भी बस्ते में ही बंधी हुई है ! आज तक पक्का बाँध बना नहीं ! और लगभग हर साल इसी प्रकार कच्चा बाँध ही बनाया जाता है ! और उसका वही हाल होता है , जो हाल ही में हुआ ! और शायद आगे भी ऐसा ही होता रहेगा ! यदि मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान 90 करोड़ रु की बेकार बायपास योजना बनाने वालों की जाँच करवाकर दोषियों को सजा देने का ऐलान कर इस समस्या का स्थायी समाधान तलाश कर लें , तो ही श्रद्धालुओं की भावनाओं  से हो रहा खिलवाड़ रुक सकेगा ! नहीं तो ऐसा ही चलता रहेगा !!!
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