छठ पूजा : आज डूबते सूर्य को अर्ध्य देगी महिलाएं
छठ पूजा कार्तिक माह के शुक्लपक्ष की षष्ठी तिथि को मनाई जा रही है। षष्ठी का सूर्योदय सुबह 6:48 बजे हुआ व सूर्यअस्त शाम 5:36 बजे होगा। षष्ठी तिथि को पूजा के लिए तालाब या नदी में स्नान कर डूबते सूर्य की पूजा होगी। अर्घ्य देते समय इस मंत्र को बोलना चाहिए। ऊँ सूर्याय नम:, ऊँ आदित्याय नम:, ऊँ नमो भास्कराय नम:। अर्घ्य समर्पयामि। छठ पूजा वाले दिन, सबसे पहले तीन बांस और पीतल की तीन टोकरियों या सूप लें। एक सूप में नारियल, गन्ना, शकरकंद, बड़ा नीबू, लाल सिन्दूर, चावल, कच्ची हल्दी, सिंघाड़ा आदि रखें। दूसरे सूप में प्रसाद के लिए मालपुआ, खीर पूरी, सूजी का हलवा और चावल के लड्डू रखें। तीसरी टोकरी या सूप में कपूर, चंदन, दीया, शहद, पान, सुपारी आदि भी रखें। हर सूप में एक दिया और अगरबत्ती जलाएं।
फिर सूर्य को अर्घ्य देने के लिए नदी या तालाब में उतरें या घर में ही एक बाल्टी में पानी भरकर रखें व डूबते सूर्य को संध्या अर्घ्य देकर इस पर्व का समापन करें। सूर्य को जल चढ़ाने के लिए तांबे के लोटे का उपयोग करना चाहिए।
सप्तमी तिथि पर किया जाता है छठ पूजा का पारण
कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को छठ पूजा का पारण किया जाता है। इस दिन व्रत का पारण सूर्योदय के समय अर्घ्य देने के बाद किया जाता है। 21 नवंबर को सूर्योदय प्रातः 6:49 बजे तथा सूर्यास्त शाम 05:25 बजे होगा।
पारण के किए सबसे उपयुक्त सुबह का समय
व्रत तोड़ने के लिए सबसे उपयुक्त समय प्रातःकाल होता है। व्रत करने वाले श्रद्धालुओं को मध्याह्न के दौरान व्रत तोड़ने से बचना चाहिए। कुछ कारणों की वजह से अगर कोई प्रातःकाल पारण करने में सक्षम नहीं है तो उसे मध्याह्न के बाद पारण करना चाहिए। प्रत्येक व्रत के अंत में पारण होता है, जो व्रत के दूसरे दिन प्रात: किया जाता है। अत: तिथि तथा नक्षत्र के अन्त में ही पारण करना चाहिए। 21 नवंबर शनिवार उषा अर्घ सूर्योदय का समय 06:48 बजे है।
रावण वध के पाप से मुक्त होने कराया यज्ञ
पौराणिक कथाओं के मुताबिक जब राम और सीता 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे तो रावण वध के पाप से मुक्त होने के लिए उन्होंने ऋषि-मुनियों के आदेश पर राजसूर्य यज्ञ करने का फैसला किया था। पूजा के लिए उन्होंने मुग्दल ऋषि को आमंत्रित किया। मुग्दल ऋषि ने मां सीता पर गंगा जल छिड़क कर उन्हें पवित्र किया और कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को सूर्यदेव की उपासना करने का आदेश दिया। उस समय सीता जी ने मुग्दल ऋषि के आश्रम में रहकर 6 दिनों तक भगवान सूर्यदेव की पूजा की थी।
यह भी है पौराणिक कथा एवं मान्यता
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार राजा प्रियंवद ने पुत्र इच्छा के कारण देवी षष्ठी का व्रत किया और उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई। कहते हैं ये पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को हुई थी और तभी से छठ पूजा होती है। इस कथा के अलावा एक कथा राम-सीता जी से भी जुड़ी हुई है।