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अहोई अष्‍टमी : संतान की लम्‍बी आयु के लिए महिलाएं करती है व्रत


संतान की लंबी आयु और परिवार की सुख-समृद्धि के लिए महिलाएं कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी को अहोई अष्टमी का व्रत रखती हैं। यह दिन देवी अहोई को समर्पित होती है। 8 नवंबर को यह व्रत रखा जाएगा। पंडित अरुण कुमार शास्त्री ने बताया कि अहोई अष्टमी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सभी कामों ने निवृत्त होकर स्नान करें और निर्जला व्रत रखने का संकल्प लें। शाम के समय श्रृद्धा के साथ दीवार पर अहोई की पुतली रंग भरकर बनाती हैं। उसी पुतली के पास सेई व सेई के बच्चे भी बनाती हैं। आजकल बाजार में तस्वीर मिल जाती है। माता की पूजा शुरू होती है।

अहोई अष्टमी व्रत का शुभ मुहूर्त
तिथि प्रारंभ- 8 नवंबर को सुबह 7 बजकर 29 मिनट।
तिथि समाप्त- 9 नवंबर को सुबह 6 बजकर 50 मिनट तक।
पूजा मुहूर्त- शाम 5 बजकर 27 मिनट से शाम 6 बजकर 47 मिनट तक।
तारों को देखने का समय- शाम 5 बजकर 56 मिनट।
चंद्रोदय का समय- रात 11 बजकर 56 मिनट ।
इसके लिए सबसे पहले एक स्थान को अच्छी तरह साफ करके उसका चौक पूर लें। फिर एक लोटे में जल भर कलश की तरह एक जगह स्थापित कर दें। इसके ऊपर करवा रखें। ध्यान रखें कि यह करवा कोई दूसरा नहीं बल्कि करवा चौथ में इस्तेमाल किया गया होना चाहिए। इसके साथ ही दीपावली के दिन इस करवे के पानी का छिड़काव पूरे घर पर करना चाहिए।

संतान की सुख की मन में भावना लेकर हाथ में चावल लेकर अहोई अष्टमी के व्रत की कथा श्रृद्धाभाव से सुनें। कथा समाप्त होने के बाद इस चावल को अपने पल्लू में बांध लें। शाम के समय अहोई अष्टमी की तस्वीर की पूजा करें और मां को लाल रंग फूल के साथ 8 पुआ, 14 पूड़ियां और खीर का भोग लगाएं। अब लोटे के पानी और चावलों से तारों को अर्ध्य दें। अब इसके बाद बायना निकालें। जिसमें 14 पूड़ियां और काजू होते हैं। इसे आप अपने से बड़ी किसी महिला को सम्मान के साथ दे दें। अब घर में सभी बड़ों के चरण स्पर्श करने के साथ प्रसाद बांटे और आप भी अपना व्रत खोल लें।

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