पापांकुशा एकादशी व्रत के प्रभाव से मनुष्य हो जाता है पापों से मुक्त
मंगलवार, 27 अक्टूबर को देशभर में पापांकुशा एकादशी मनाई जा रही है। धर्म ग्रंथों में लिखा है कि महाभारत काल में भगवान श्रीकृष्ण ने ज्येष्ठ पांडूपुत्र युधिष्ठिर से कहा था कि पापांकुशा एकादशी Papankusha Ekadashi का व्रत करने से मानव पापमुक्त हो जाता है और उसको पुण्यों की प्राप्ति होती है। इस व्रत के करने मात्र से मानव को श्रीहरी के लोक की प्राप्ति होती है। इस दिन अन्न, जल, छाता, तिल, भूमि, सोना और गाय का दान करने वाले मनुष्य के पास यमराज नहीं आते हैं। पापांकुशा एकादशी Papankusha Ekadashi के व्रत को करने से मानव दीर्घायु होता है और विपुल धन-संपत्ति का मालिक होता है।
Papankusha Ekadashi Vrat Vidhi (पापांकुशा एकादशी के व्रत की विधि)
Papankusha Ekadashi के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। स्वच्छ होने के बाद आसन पर विराजित होकर व्रत का संकल्प लें। घर के पूजा स्थान पर एक कलश की स्थापना करें। कलश के ऊपर भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र की स्थापना करें। स्थापित प्रतिमा या चित्र के सामने शुद्ध घी का दीपक जलाएं, धूपबत्ती लगाएं। सुगंधित फूल, नारियल, मिष्ठान्न, ऋतुफल और तुलसी दल समर्पित करें। इसके बाद विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें। पाठ करने के बाद श्रीहरी की आरती उतारें। संभव हो तो रात्रि जागरण करें और भगवान विष्णु का भजन-कीर्तन करें।
Papankusha Ekadashi कब से कब तक
एकादशी तिथि प्रारंभ: 26 अक्तूबर 2020 सुबह 09:00 बजे
एकादशी तिथि समाप्त: 27 अक्तूबर 2020 सुबह 10:46 बजे
व्रत पारण 28 अक्तूबर 2020 : सुबह 08:44 बजे तक
Papankusha Ekadashi Vrat All You Need to Know (इन बातों का रखें ध्यान)
द्वादशी के दिन ब्राह्मणभोज का आयोजन करें और उनको वस्त्र आदि के साथ यथोचित दक्षिणा देकर विदा करें। एकादशी व्रत करने वाले को दशमी तिथि से ही सात्विक तरीके से रहना चाहिए। दशमी तिथि से व्रत का पालन करना चाहिए। दशमी तिथि को सात तरह के अनाज गेहूं, उड़द, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर की दाल का सेवन नहीं करना चाहिए। क्योंकि इन सात अनाजों की पूजा एकादशी के दिन की जाती है। Papankusha Ekadashi का उपवास करने पर सिर्फ एक समय सात्विक भोजन ग्रहण करें। चावल और भारी खाद्य पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए। पापांकुशा एकादशी के दिन रात्रि पूजा का विशेष महत्व होता है। इस दिन अपना व्यवहार संयमित रखें और क्रोध का त्याग करते हुए आचरण पर नियंत्रण रखें।
Papankusha Ekadashi Vrat Katha (पापांकुशा एकादशी की कथा)
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार विध्यांचल पर्वत पर एक अत्यंत ही क्रूर शिकारी क्रोधना निवास करता था। उसका मुख्य काम लोगों को दुख-तकलीफ देना था। उसका अंतिम समय जब आया तो यमराज ने एक दूत को क्रोधना को लेने के लिए भेजा। क्रोधना क्रूर प्रवृत्ति का होने के बावजूद मौत से खौफ खाता था। जिंदगी बचाने के लिए वह अंगारा नाम के ऋषि की शरण में गया और उनसे मदद की गुहार लगाई। ऋषि अंगारा ने शिकारी क्रोधना को मौत को खौफ से मुक्त होने के लिए पापांकुशा एकादशी के बारे में बताया और इसके व्रत को विधि-विधान से रखने के लिए कहा। क्रोधना ऋषि की आज्ञा का पालन करते हुए पापांकुशा एकादशी के व्रत को रखता है। व्रत के साथ वह श्री हरि की पूजा-अर्चना करता रहा । व्रत के प्रभाव से शिकारी क्रोधना के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और उसको मुक्ति मिल जाती है।
Papankusha Ekadashi Importance (पापांकुशा एकादशी के व्रत से होती है स्वर्ग की प्राप्ति)
भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा कि यह एकादशी पापों का नाश करती है इसलिए इसको पापांकुशा एकादशी Papankusha Ekadashi कहा जाता है। जो भक्त इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करता है वह सभी सुखों को भोगकर स्वर्ग की प्राप्ति करता है। मानव को बरसों तक कठोर तप करने से जो फल मिलता है वह श्रीहरी को इस दिन नमस्कार करने से मिल जाता है। जो मानव अपने जीवन में अज्ञानतावश अनेकों पापा करते हैं, परन्तु साथ ही भगवान विष्णु की वंदना करते हैं, वो मृत्यु के बाद नरक नहीं जाते हैं। श्रीहरी की शरणागत होने वाले को यम का भय नहीं रहता है और उसको यम की यातना भी भोगना नहीं पड़ती है।