अभिव्यक्ति का माध्यम आप को जहां मुखर करता है, वहीं समाज से जोड़ने में भी सहायक
उज्जैन पुस्तक मेले में ‘लेखक से मिलिए’ कार्यक्रम में बोले पूर्व कुलपति डाॅ. मोहन गुप्त
उज्जैन। हमारे यहाँ लेखन में करुण और हास्य में भी आनंद आता है। अभिरुचि का कोई विकल्प नहीं। अभिव्यक्ति का माध्यम आप को जहां मुखर करता है वहीं समाज से जोड़ने में भी सहायक होता है। इस कलाप में जो आनंद आता है, उसमें चित्त शक्ति का ही आस्वाद होता है। भाषा पूरी परंपरा की ही संवाहक है, अनुवाद के माध्यम से भी मैंने कोशिश की है कि मूल रचना की गुणवत्ता बनी रहे। यही अनुवाद का मूल धर्म भी है।
उक्त बात उज्जैन पुस्तक मेले में सोमवार को ’लेखक से मिलिए’ कार्यक्रम में डॉ मोहन गुप्त वरिष्ठ साहित्यकार, पूर्व आयुक्त, उपन्यासकार व पूर्व कुलपति पाणिनि संस्कृत विश्वविद्यालय ने कही। वार्ताकार वरिष्ठ पत्रकार अशोक वक्त रहे। मोहन गुप्त ने कहा कि भाव को सम्प्रेषित करने के लिए बहुत कुछ गतिविधियों की आवश्यकता होती है जिसे हम अध्ययन और मनोयोग से उस सुख को पाया जा सकता है। कई बार बोरियत महसूस होती है लेकिन मैं इसे श्रेष्ठ गतिविधि जानता हूँ कि अनभिज्ञ लोगों के लिए पठनीय सामग्री उपलब्ध कराने में सहायक रहा हूँ। कह सकता हूँ कि आज जो भी हूँ वह पुस्तकों की अभिरुचि के कारण ही है। इस मौके पर मोहन गुप्त ने अपने लेखकीय व प्रसाशन के अनेक अनुभवः श्रोताओं से साँझा किये। इसके पश्चात श्रोताओं ने उनसे सवाल-जवाब भी किये, जिसका खुले मन से उन्होंने जवाब भी दिया। अंत में इस आयोजन के लिए मोहन गुप्त जी ने राष्ट्रीय पुस्तक,न्यास भारत का आभार व्यक्त किया। सभागार में पत्रकार, बुद्धिजीवी वर्ग से भी सम्बंधित अनेक विभूति मौजूद थीं। उल्लेखनीय साहित्यकारों में पिलकेन्द्र अरोड़ा, देवेंद्र जोशी, अशोक भाटी, शैलेन्द्र कुमार शर्मा, मानस रंजन महापात्र, पंकज पलाश सहित अनेक गण्यमान्य जन नजर आएं। कार्यक्रम का सफल संचालन राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत के हिंदी सम्पादक डॉ ललित किशोर मंडोरा ने किया। न्यास की ओर से आमन्त्रित अतिथि को पुस्तकें भेंट करने का गौरव प्राप्त किया मयंक सुरोलिया, सहायक निदेशक न्यास ने।
आज कविता का आयोजन
पुस्तक मेले में आज 3 सितंबर को कविता का आयोजन होगा जिसमें नीलोत्पल, राजेश सक्सेना, डाॅ. देवेन्द्र जोशी, डाॅ. संदीप नाडकणी, राजेश रावल मुखातिब होंगे। सूत्रधार श्रीराम दवे होंगे।