महाकालेश्वर महालय और महाराजवाड़ा के अस्तित्व की रक्षा होगी
सर्वोच्च न्यायालय तक न्यायिक संघर्ष होगा -आचार्य सत्यम्
उज्जैन। मध्यप्रदेष के मुख्यमंत्री कमलनाथ पर केन्द्रीय पर्यावरण मंत्री रहते सर्वोच्च न्यायालय ने हिमाचल प्रदेश में पौराणिक महानदी व्यास का अस्तित्व अपने निजी रिसोर्ट के निर्माण के लिए संकट में डालने के लिए भारी आर्थिक दण्ड आरोपित किया था। भारत के ज्योतिर्लिंगों में प्रमुख महाकालेश्वर महालय और प्राचीन ऐतिहासिक स्मारक महाराजवाड़ा का अस्तित्व तुगलकी निर्माणों जो मध्यप्रदेश शासन तथा भारत शासन के पुरातत्व अधिनियमों के अंतर्गत दण्डनीय अपराध हैं, के माध्यम से संकट में डालने का निर्णय आखिर इस विश्व प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग महालय को कार्पोरेट कम्पनी की तरह संचालित करने की कमलनाथ सरकार की मंशा का ही प्रतिफल है। जब नगरीय प्रशासन मंत्री ने लोकसभा चुनाव पूर्व महाराजवाड़ा और महाकालेश्वर मंदिर को सुरंग के माध्यम से जोड़ने की योजना का लोकार्पण किया था तभी तत्काल हमने सार्वजनिक वक्तव्य और न्याय प्राप्ति का सूचना पत्र आयुक्त एवं कलेक्टर उज्जैन के माध्यम से मध्यप्रदेश शासन को इस तुगलकी योजना का क्रियान्वयन पुरातत्व अधिनियमों के अंतर्गत दण्डनीय अपराध होने से इसे तत्काल निरस्त करने की मांग की थी। संबंधित अधिकारियों और मध्यप्रदेश शासन ने आज तक उसका कोई जवाब देना आवश्यक नहीं समझा, क्योंकि उनके पास जवाब है ही नहीं। उज्जयिनी की धार्मिक, पौराणिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत के इन दोनों अत्यन्त महत्वपूर्ण स्मारकों का अस्तित्व समाप्त करने की योजना के उद्घाटनकर्ता नगरीय प्रशासन मंत्री के पिता पूर्व मुख्यमंत्री के कार्यकाल में ही वर्ष 1997 की महाकाल मंदिर दुर्घटना जांच आयोग की न्यायमूर्ति आर.के. वर्मा की जांच रिपोर्ट और उसके साथ ही संलग्न पुरातत्व विशेषज्ञ डाॅ. नारायण व्यास की रिपोर्ट, जिसमें पुरातत्व अधिनियमों को महाकालेश्वर मंदिर में प्रभावशील करने की
अनुशंसा के साथ मंदिर परिसर तथा अधिनियमों के अंतर्गत 300 फीट की सीमा में कोई भी नव-निर्माण न करने के वैधानिक परामर्श सम्मिलित हैं, के विपरीत मंदिर में निरंतर तोड़फोड़ और नव-निर्माण कर ब्रिटिश शासन के समय से प्रभावशील पुरातत्व अधिनियमों का जनाजा निकाला जाता रहा है। और अब कमलनाथ सरकार ने 300 करोड़ रूपयों की मंदिर विकास की तुगलकी योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए अपने तीन मंत्रियों की समिति बना दी है, जिसमें उज्जैन नगर और जिले का कोई विधायक अथवा सांसद भी सम्मिलित करना आवश्यक नहीं समझा गया। स्वयं मुख्यमंत्री ने भूमिगत मार्ग से दोनों प्राचीन स्मारकों को जोड़ने की योजना की घोषणा कर दी है। हमने भी इस निरंकुश सरकार से निर्णायक संघर्ष के लिए सत्याग्रह का मार्ग त्याग कर न्यायपालिका से न्याय प्राप्ति का मार्ग अपना लिया है। चूंकि स्वयं मुख्यमंत्री और उनके तीन काबीना मंत्री इस अवैध एवं आपराधिक योजना को क्रियान्वित करने जा रहे हैं, इसलिए इन सभी को सूचना-पत्र प्रेषित कर योजना को तत्काल निरस्त कर श्री महाकालेश्वर महालय और महाराजवाड़ा को मध्यप्रदेश प्राचीन अवशेष एवं स्थल अधिनियम के अंतर्गत, जिसमें 50 वर्ष पूर्व का भी कोई पुरातात्विक महत्व का स्मारक संरक्षित स्मारक घोषित किया जा सकता है, दोनों स्मारकों को तत्काल संरक्षित स्मारक घोषित करने तथा महाकालेश्वर महालय को त्रम्बकेश्वर महालय के समान केन्द्रीय पुरातत्व विभाग को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधीनस्थ संरक्षित स्मारक घोषित करने की अनुशंसा तत्काल करने की मांग की जावेगी, न्याय प्राप्त न होने पर न्याय पालिका के समक्ष न्यायार्थ याचिका प्रस्तुत की जावेगी। शिप्रा सहित मालवा की अन्य नदियों के संरक्षण हेतु भी राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण के समक्ष याचिकाएँ मध्यप्रदेश शासन की निरंकुषता के विरूद्ध प्रस्तुत की जावेंगी। किसी भी कीमत पर उज्जयिनी की प्राचीन विरासत और मालवा के पर्यावरण की रक्षा की जावेगी।