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हे मृत्युंजय, हे महाकाल, त्राहिमाम्-त्राहिमाम् -आचार्य सत्यम्



उज्जैन। हे नीलकंठ, हे प्रलयंकर, आज न केवल आपकी देवभूमि भारत की एक अरब से अधिक जनसंख्या शुद्ध पेयजल से वंचित है, बल्कि भू-मंडल पर बढ़ते विष के कारण पृथ्वी लोक पर अरबों मानव और मूक-प्राणी भी अकाल मृत्यु के मुंह में है। आपने समुद्र मंथन के समय हलाहल पिया था और विश्व को विषमुक्त किया था। आज जब पीड़ित मानवता और प्राणीमात्र आपसे अपने मंगल की प्रार्थना कर रहे हैं, तब भी आप अपना करूणा निधान स्वरूप प्रकट नहीं कर रहे हैं। यदि प्राणियों में आपकी दृष्टि में पापाचार बढ़ गया है तो प्रलयंकर स्वरूप में भी आप क्यों नहीं आ रहे हैं?
मृत्युलोक के प्रमुख ज्योतिर्लिंग की नगरी उज्जयिनी के वासी भी निरंतर जल के साथ विष पीने को बाध्य हैं। हे गंगाधर, हे विषपायी, न केवल भगवती गंगा अपितु मालवा की गंगा आपकी प्रिय शिप्रा भी विष से भरकर अपने अस्तित्व के संकट से जूझ रही है। आपने कैलाशवासी के रूप में वसुंधरा और प्रकृति के श्रृंगार के साथ ही गाय-गंगा और गौरी की सदैव रक्षा की है। फिर क्या कारण है कि आज आपके कैलाश (मानसरोवर) सहित सम्पूर्ण हिमगिरि पिघल रहा है। बढ़ते विष और तापमान से प्राणीमात्र का जीवन संकटमय होता जा रहा है। गाय और गौरी के साथ नदियों एवं जलस्रोतों का अस्तित्व भी संकट में है, न केवल भारत माता अपितु वसुंधरा का निरंतर प्राकृतिक चीर-हरण हो रहा है और आप मौन हैं।
त्राहिमाम्-त्राहिमाम्, हम अपने लिए नहीं, बल्कि सम्पूर्ण मानवता, प्राणीमात्र और वसुंधरा के अस्तित्व के लिए कह रहे हैं। पिछली आधी सदी से हम अपनी मातृभूमि और मानवता के हित में न्याय के लिए सतत् संघर्षरत् हैं, लेकिन अपने लक्ष्यों की पूर्ति करने में असमर्थ हो रहे हैं। इधर आपके भारत के द्वादष ज्योतिर्लिंगों पर आपके कलियुगी भक्तों के साथ ही निर्दोष, कमजोर, मजबूर और मासूम भक्तों की भीड़ लगातार आपके आशीर्वाद की आकांक्षा में बढ़ रही है। हमने आपके केवल रामेश्वरम्, घृष्णेश्वर, त्र्यम्बकेश्वर, ओंकारेश्वर तथा महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंगों के दर्शन किए हैं। युवावस्था में दो वर्षों तक निरंतर आपके महाकालेश्वर महालय में आपको आपका प्रिय ताण्डव स्रोत भी भस्मारती के अवसर पर सुनाया। आपने हमें न्याय के लिए संघर्ष का मार्ग दिखाया, जिस पर जीवन के 70वें वर्ष में भी हम चल रहे हैं, लेकिन लगता है कि लक्ष्य अभी भी बहुत दूर है। अहिल्या नगरी में बारह ज्योतिर्लिंग मंदिर के निर्माण के बाद अब उज्जयिनी में भी चारधाम के बाद आपके तीसरे मंदिर का निर्माण बारह ज्योतिर्लिंग मंदिर के रूप में होने जा रहा है। जिस महाकालेश्वर महालय में सम्राट विक्रमादित्य सहस्त्र कमलों से आपका अभिषेक करते थे, उसके और ज्योतिर्लिंग के अस्तित्व के संकट पर सर्वोच्च न्यायालय भी चिंतित है। शायद प्राचीन महालय के स्थान पर आपके नए आवासों का निर्माण इसीलिए होने जा रहा है कि आपके प्रति जनमानस की आस्था का दोहन निरंतर कलिकाल में भी जारी रहे। शिव पुराण एवं स्कन्द पुराण सहित सनातन धर्म के ग्रंथों और इतिहास के अल्प ज्ञान के आधार पर हमने माना था कि जब 21 वर्ष पूर्व आपके कलियुगी भक्तों और मंदिर प्रबंधकों ने आपके कई भक्तों की बलि आपके ही उज्जयिनी के ज्योतिर्लिंग महालय में ली, तब से आप महालय और उज्जयिनी छोड़ गए हैं, तभी आपकी सदियों से प्रिय रही नगरी की दुर्गति हो रही है। हे महादेव, आपने अपने भक्त दशानन लंकेश के दिव्य स्वर्ण महल के स्थान पर कैलाश पर रहना स्वीकार किया था और लंकेश को सीताजी के अपहरण के दण्ड स्वरूप दशम् रूद्रावतार के माध्यम से स्वर्ण लंका भस्म करवा दी थी। आप दीन-दुःखियों के आराध्य हैं। यदि आप भारत के किसी भी ज्योतिर्लिंग में अब वास नहीं कर रहे हैं तो उन्हें आपके स्वरूप और आदर्षों के विपरीत सोने चांदी से मढ़ने तथा आपकी प्रिय सरिताओं सहित सभी जल तीर्थों का अस्तित्व समाप्त कर आपके नंदीवंश-गोवंश के साथ ही नारी के संरक्षक स्वरूप के विपरीत आचरण कर आपके प्रति आपके भक्तों की आस्था का दोहन जारी क्यों है? आपने सतयुग, त्रेता और द्वापर में कई असुरों को दण्डित किया, फिर कलियुगी असुर सुरक्षित क्यों हैं? हम अपने जीवन के अंतिम वर्षों में भी गाय-गंगा-गौरी और वसुंधरा के पर्यावरण के संरक्षण के संकल्प के साथ जीना और मरना चाहते हैं। यदि आप विश्व में भी विद्यमान हों तो कृपा करें मानवता और प्राणीमात्र की रक्षा करें, उन्हें आत्मरक्षार्थ प्रेरित करें और आपके प्रति आस्था के आधार पर आपके सच्चे भक्तों के साथ हो रहा छल और उनकी आस्था की लूट तत्काल बंद करवाने की भी कृपा करें।

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