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दान और पुण्य का महत्व कब समझेंगे शासक और महाकालेश्वर मंदिर प्रबंधक -आचार्य सत्यम्



उज्जैन। स्वतंत्र भारत के जो शासक दान और पुण्य का महत्व न समझें, उनसे किसी भी कल्याणकारी कार्य की अपेक्षा नहीं की जा सकती। श्री महाकालेश्वर मंदिर में सदियों से राजा और रंक समेत करोड़ों श्रद्धालु अरबों की सम्पत्ति लोक कल्याणार्थ दान करते रहे हैं। मध्यभारत तथा मध्यप्रदेश के शासकों के नियंत्रण में रहा है ज्योतिर्लिंग मंदिरों का भी प्रशासन। श्रावण मास, शिवरात्रि और सिंहस्थ के अवसरों पर करोड़ों के दान का हिसाब-किताब मंदिर प्रशासक मुनाफाखोर व्यापारी की तरह सार्वजनिक करते रहते हैं। भूतभावन के दर्शन मात्र पर भी विशेष दर्शन व्यवस्था के नाम पर रामभक्त और राष्ट्रभक्त धर्म ध्वजाधारी शासकों ने भी विशेष दर्शन की आड़ में करोड़ों रूपये जज़िया के रूप में लूटा है। तिरूपति देवस्थानम् प्रबंधन श्रद्धालुओं को एक लड्डू प्रसाद स्वरूप देता रहा है, लेकिन ज्योतिर्लिंग के नाम पर प्रतिवर्ष करोड़ों की हेराफेरी और महादेव के प्रति आस्था की लूट करने के बाद भी निर्लज्ज, विधर्मी मंदिर प्रशासन और शासक असंख्य सच्चे भक्तों को प्रसाद स्वरूप एक दाना भी देने के लिए सोचने में असमर्थ हैं, जबकि वे लड्डु प्रसाद की दुकान चला रहे हैं।
सनातन धर्म और सभी धर्मों के आदर्शों के अनुरूप दान और पुण्य का महत्व निर्धारित है। लेकिन ऐसा लगता है कि सभी धर्मस्थलों का शासकीय नियंत्रण का प्रबंधन भ्रष्टाचार में आकंठ डूबा हुआ है, जो वर्तमान सत्ताधारियों का मूल चरित्र है। यद्यपि स्वतंत्र भारत और मध्यप्रदेश के जितने भी शासकों-प्रशासकों ने धार्मिक, दान और वक्फ की सम्पत्तियों को लूटा और लुटवाया है, उनकी दुर्गति हुई है। फिर भी शासक-प्रशासक डायन की तरह एक घर (धर्म का) भी छोड़ने को तैयार नहीं है। श्री महाकालेश्वर मंदिर अधिनियम 1982 के अंतर्गत वर्ष 1984 से मंदिर प्रबंधन मध्यप्रदेश शासन के नियंत्रण में है। मंदिर के अस्तित्व और ज्योतिर्लिंग क्षरण के बारे में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा की जा रही चिंता इसका प्रमाण है कि शासकों-प्रशासकों को मंदिर और ज्योतिर्लिंग के अस्तित्व से भी कुछ लेना देना नहीं है। जिस तरह महाकालेश्वर के रूद्रसागर और कोटि तीर्थ तथा उज्जयिनी के सप्तसागरों और मोक्षदायिनी शिप्रा की दुर्गति हुई है, उनके नाम पर अरबों रूपया जन-धन का लूटने वाले यही शासक और प्रशासक हैं। इसी श्रावण मास में यदि महाकालेश्वर मंदिर की विद्वत् परिषद् का गठन, मंदिर प्रबंध समिति के माध्यम से मालवांचल में सवा लाख गोवंश के आदर्श पालन, मोक्षदायिनी शिप्रा, सप्तसागरों का  संरक्षण और संवर्धन, प्रदेश की ज्योतिर्लिंग नगरियों में उज्जयिनी और औंकारेश्वर के मालव और निमाड अंचल के पर्यावरण संरक्षण हेतु दोनों ज्योतिर्लिंग मंदिर प्रबंधनों की ओर से करोड़ों पारम्परिक
वृक्षों और लताओं के पौधों के निर्माण हेतु समर्थ एवं आदर्श पौधशालाओं की स्थापना, इसी श्रावण मास से प्रत्येक दर्शनार्थी को लड्डु प्रसाद, पारिजात, बिल्व, सीता अशोक और पीपल के पौधों में से प्रत्येक श्रद्धालु को वर्षा ऋतु में नियमित एक पौधा भेंट स्वरूप प्रदान करने, अंतर्राष्ट्रीय ख्याति के गो-विज्ञान एवं पर्यावरण प्रशिक्षण संस्थान तथा ललित कलाओं के प्रशिक्षण केन्द्र की स्थापना, श्रावण एवं शिवरात्रि महोत्सवों को अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त करवाने हेतु उन्हें जनाभिमुक्त बनाने का निर्णय। महाकालेश्वर के श्रृंगार एवं सवारियों के आयोजन को सामंतवाद की परछाई से मुक्त कर सुंदर, कलात्मक एवं मनोहारी स्वरूप प्रदान करने हेतु व्यापक विचार मंथन एवं निर्णय यदि तत्काल नहीं लिए गए तो आगामी शाही सवारी और श्रावण महोत्सव के समापन के पूर्व हम जन-जागृति हेतु एक दिवसीय उपवास तथा उसके उपरांत प्रदेश और देश की राजधानी में सत्याग्रह करने हेतु मालव रक्षा अनुष्ठान के सिंहस्थ संकल्प के अनुरूप बाध्य होंगे।

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