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संतों के ड्रेसकोड पर प्रश्न उठाना अनाधिकार चेष्टा



संतों की वेशभूषा का निर्धारण धर्माचार्य करते हैं अन्य कोई नहीं- डॉ. अवधेशपुरी महाराज
उज्जैन। पूर्व केन्द्रीय मंत्री उमा भारती के महाकाल गर्भगृह के प्रवेश के समय उनकी वेशभूषा पर टिप्पणी करना सनातन संत परंपरा की मर्यादा के प्रतिकूल अनाधिकार चेष्टा है। सामान्य व्यक्तियों के नियम संतों पर नहीं थोपे जा सकते, क्योंकि संत सामाजिक नियमों एवं बंधनों से मुक्त होने के उपरांत ही संत श्रेणी में प्रवेश करता है तथा वहां उसके धर्म एवं संप्रदाय के अनुरूप वेशभूषा का निर्धारण होता है। संत मंदिरों के नियमानुसार चलकर बहुरूपिया का कृत्य नहीं कर सकते। पूर्व केन्द्रीय मंत्री उमा भारती द्वारा साड़ी पहनने की बात स्वीकार करना उनकी व्यक्तिगत सोच हो सकती है किंतु संत परंपरा में कोई भी साध्वी अथवा संत अपनी वेशभूषा से सैध्दांतिक आधार पर समझौता नहीं कर सकते। यदि एक सन्यासी जब लांग वाली धोती पहनेगा तो उसके सन्यास का क्या होगा। प्रत्येक संत अचले के नीचे लंगोटी धारण करते हैं धोती की परंपरा उन सामान्य लोगों के लिए है जो लंगोटी नहीं पहनते जिससे कि लांग लगी धोती भी लंगोटी का काम कर सके। कोई नागा सन्यासी क्या मंदिर में दर्शन करने के लिए धोती धारण कर सकता है, कदापि नहीं। अतः इस प्रकार की निराधिकार एवं निरर्थक अनाधिकार बहस करने का कोई औचित्य नहीं। 

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