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कालिदास समारोह की तरह श्रावण महोत्सव का भी अवमूल्यन-आचार्य सत्यम्



उज्जैन। विश्व प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग श्री महाकालेश्वर, उज्जयिनी की जो दुर्गति स्वतंत्र भारत में तुगलक के वारिसों ने की है, उससे क्रूर लुटेरों अल्तमश, गजनी, गौरी, शकों, हुणों, पिंडारियों और कंजर सरदारों की भी रूहें कांप गई हैं। परमार और सिंधियाकाल में हुए ज्योतिर्लिंग महालय महाकालेश्वर के जीर्णोद्धार के पश्चात् अब शासकों-प्रशासकों के नाकारापन के कारण मंदिर का अस्तित्व पुरातत्व विशेषज्ञों के अनुसार ही सुरक्षित नहीं है। लेकिन नागपंचमी के पूर्व एक वर्ष में तीन बार एक ही सड़क बनाने वाले लोक निर्माण विभाग से मंदिर के सुरक्षित होने का प्रमाण पत्र लेकर ज्योतिर्लिंग क्षरण पर सुनवाई कर रहे सर्वोच्च न्यायालय को भ्रमित करने का प्रयास किया जा रहा है। अयोध्या के राम जन्मभूमि मंदिर को राष्ट्र और सनातन धर्म की अस्मिता से जोड ़ने वाले शासक महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर के प्रश्नांकित अस्तित्व के संबंध में मौन हैं।
उज्जयिनी के विक्रमयुगीन नवरत्न विश्वकवि कालिदास की स्मृति में आयोजित होने वाले कालिदास समारोह के पश्चात् अब श्रावण महोत्सव की भी दुर्गति हो रही है। इस वर्ष महाकालेश्वर मंदिर प्रबंध समिति द्वारा शास्त्रीय गायन, वादन और नृत्य की मधुर वर्षा के दावे के साथ आयोजित हो रहे श्रावण महोत्सव के विवरण और आमंत्रण में ही हिंदी की मात्रा और व्याकरण की 85 त्रुटियाँ मंदिर प्रबंध संचालकों और शासकों की मानसिक दरिद्रता का प्रमाण है। आमंत्रण के मुख पृष्ठ पर एनिमेशन के माध्यम से प्रकाशित चित्र से ही समारोह के स्तर का प्रमाण मिलता है, जिसमें कथक नृत्यों के साथ ही केवल ध्रुपद गायन के प्रति समर्पण दिखाया गया है। श्री महाकालेश्वर वैदिक शोध संस्थान संचालित करने का ढकोसला करने वाले मंदिर प्रशासन ने विगत् वर्षों में अपने इस बहुप्रचारित संस्थान के माध्यम से मंदिर के यश को क्षति पहुंचाई है। मंदिर की विद्वत परिषद् पिछले छः वर्षों से भंग है। नगरी के विद्वतजनों की एक और विद्वत परिषद् कार्यरत है, लेकिन निरंकुश शासकों-प्रशासकों को विद्वतजनों से परहेज है। श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर प्रबंधन कार्पोरेट कम्पनी की तरह केवल मुनाफा कमाने के लिए संचालित किया जा रहा है। इलेक्टंॉनिक माध्यमों से मंदिर का विश्व स्तरीय प्रचार-प्रसार करने वाले प्रबंधकों को विकिपीडिया पर उपलब्ध भारतीय शास्त्रीय संगीत और रागों की भी जानकारी नहीं है। भारतीय शास्त्रीय संगीत से संबंधित प्रमुख रागों अमृतवर्षिणी, भैरवी, शिवरंजनी, सिंधु भैरवी, शंकर, गौरी, धनश्री, दुर्गा, कल्याणी, केदार, ललित, मेघ, मालकोस और मल्हार सहित पुरिया धनाश्री जैसे रागों से संभवतः कुछ भी लेना देना नहीं है, जिनका गायन और वादन श्रावण महोत्सव की कीर्ति में अभिवृद्धि कर सकता है। आदिदेव महादेव सभी कलाओं के प्रणेता रहे हैं। वे नटराज के रूप में भी विख्यात हैं। उनके पवित्र मास में आयोजित समारोह में केवल कथक को चुनना शेष भारतीय नृत्यों के प्रति निरादर के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। भारतीय शास्त्रीय नृत्य की मणिपुरी, ओडिसी, भरत नाट्यम, कुचिपुड़ी, कत्थकली, राजस्थानी घूमर और गुजराती गरबा जैसी अंतर्राष्ट्रीय ख्याति की विधाओं और स्वयं महादेव के ताण्डव से आयोजन की दूरी मंदिर प्रबंध समिति और समारोह आयोजकों के मानसिक दिवालियेपन को प्रदर्शित करती है। प्रदेश के ही अधिकांश कलाकारों को आमंत्रित कर मालवी संगीत, कला और नृत्य के आराधकों की उपेक्षा मंदिर समिति के दुर्भावनापूर्ण आचरण को प्रमाणित करती है। हमने मदांध शासकों और मंदिर प्रशासकों को प्रेरित करने के लिए विगत् वर्ष मंदिर समिति के सभागार में ही महाशिवरात्रि के अवसर पर वीणा वादन का आयोजन मालव रक्षा अनुष्ठान की ओर से किया था। सनातन धर्म और पौराणिक, ऐतिहासिक ग्रंथों में वीणा वादन, जिसमें स्वयं रूद्र्र की रूद्रवीणा भी सम्मिलित है, का अत्यधिक महत्व है। रूद्र और सरस्वती वीणा का प्रतिदिन वादन श्री रामेश्वर ज्योतिर्लिंग महालय में सदियों से हो रहा है। सरस्वती वीणा के समर्पित वादक डॉ. कलाम ने बाल्यकाल में रामेश्वर महालय में ही सरस्वती वीणा वादन का प्रशिक्षण लेकर विश्व में भारतीय संस्कृति की पताका फहराई थी। उन्हीं की स्मृति को समर्पित तथा श्री महाकालेश्वर की आराधना हेतु आयोजित हमारे वीणा वादन कार्यक्रम और श्री महाकालेश्वर मंदिर प्रबंधन की ओर से अंतर्राष्ट्रीय ख्याति के शास्त्रीय कला प्रशिक्षण केन्द्र की स्थापना की मांग को अनदेखा व अनसुना कर मंदिर प्रबंध समिति ने निरंकुशता का परिचय दिया है। गाय, गंगा, गौरी और वसुंधरा के पर्यावरण के संरक्षक महाकालेश्वर जो समस्त कलाओं के प्रणेता भी रहे हैं, उनके महालय की कीर्ति की अभिवृद्धि के लिए मंदिर प्रबंधन की ओर से शिप्रा के उद्गम से चम्बल में संगम तक श्रृंगार, उज्जयिनी के जल तीर्थों का संरक्षण व संवर्धन, मालव अंचल में सवा लाख गोवंश का आदर्ष पालन और मालवा के पर्यावरण के संरक्षण हेतु समर्थ पौधशालाओं की स्थापना किया जाना आवश्यक है, जिसके लिए हम निरंतर संकल्पित होकर प्रयासरत हैं। हमारी न्यायोचित एवं उज्जयिनी के प्राचीन गौरव और वैभव की रक्षा हेतु की जा रही मांगों की उपेक्षा शासकों-प्रशासकों को भारी पड़ेगी, इसका उन्हें स्मरण होना चाहिए।

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