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उज्जैन के प्रथम दि जैन मुनि वीतरागता में विलीन



उज्जैन का नाम पूरे भारत वर्ष में रोशन किया था सुधेष सागर महाराज ने
उज्जैन। दिगंबर जैन साधु की परंपरा में भगवान महावीर की तपोभूमि, अवँतिका नगरी, उज्जैन को भी वर्तमान युग में एक निर्ग्रन्थ मुनि देने का सौभाग्य प्राप्त है। जिनका नाम है पपू आचार्य 108 श्री सुधेष सागर जी महाराज। यूं तो आपका पैतृक स्थान सुसनेर है, पर आपने उज्जैन मे ही अपना निवास लक्ष्मी नगर कालोनी मे बना लिया था और सपरिवार सुसनेर से यहाँ आ कर स्थानीय हीरा मिल्स मे नौकरी करने लग गये। इन मुनिश्री का साँसारिक नाम “शाँतिलाल जी लुहाडिया“ है जो सुसनेर निवासी भवानीलाल लुहाडिया के सुपुत्र हैं। व्यवहारिक जीवन मे आपके छोटे भाई श्री शिखरचंद जी लुहाडिया और तीन पुत्र जो उज्जैन मे ही रहते हैं, तथा एक बेटी हैं जो झालरापाटन मे रहती हैं।
स्वनामधन्य शाँतिलाल लुहाडिया बचपन से ही शाँत स्वभावी एवं कट्टर नियम और व्रतों को अँतरँग से धारण किया हुआ था। जिनागम में आपका अटूट विश्वास और श्रद्धा होने से आपने अपनी युवावस्था मे ही वीतरागता की ओर कदम बढा लिये । और अपनी समस्त साँसारिक जिम्मेदारियों का निर्वहन कर के अँततः पपू आचार्य 108 श्री सुविधि सागर जी महाराज से मुनि दीक्षा ले ली। आपके मुनि दीक्षा लेने के कुछ समय बाद ही इनकी धर्मपत्नी ने भी वैराग्य को धारण कर आर्यिका दीक्षा ले ली। आप दक्षिण से विहार करते हुए महाराष्ट्र के पुणे आये, लेकिन यहां अपना स्वास्थ्य ठीक नहीं जान कर बडे ही निर्विकल्प भाव से सल्लेखना को धारण किया ओर आज यह दिव्य आत्मा विलीन हो गई। पूरा पुणे दि जैन समाज ने आपकी वैयाव्रत्ति और सेवा सुश्रुषा मे बेहतर तरीके से की। हम सभी अरिहंत परमेष्ठी से प्रार्थना करते हैं कि आपका मोक्षमार्ग प्रशस्त हो । 
सम्यकदर्शन ग्यान चारित्राणि मोक्षमार्गः
नमोस्तु नमोस्तु नमोस्तु
अधिक जानकारी के लिए सुशील लुहाडिया से भी संपर्क किया जा सकता है 

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