लुटेरी कम्पनियों के शिकंजे में भारत
मध्यप्रदेश भी कार्पोरेट कम्पनी की तरह संचालित-आचार्य सत्यम्
उज्जैन। परतंत्र भारत को एक ईस्ट इंडिया कम्पनी ने दो सदियों तक लूटा और खसौटा था, हमारा स्वाधीनता संग्राम इसका साक्षी है। आज विश्व के सबसे बड़े कथित लोकतंत्र भारत और उसकी अर्थ व्यवस्था को सैंकड़ों देशी-विदेशी लुटेरी कम्पनियों ने अपने मकड़जाल में उलझा लिया है। स्वतंत्र भारत के शासकों-प्रशासकों की कम्पनीपरस्त और जन विरोधी नीतियों के कारण ही सोने की चिड़िया रहे भारत की विश्व में शर्मनाक स्थिति है।
आचार्य चाणक्य ने कहा था कि जिस देश का राजा बनिया हो, उसकी दुर्गति होना अवश्यंभावी है। वर्तमान भारत और एशिया, अफ्रीका तथा लेटिन अमेरिका के साम्राज्यवादी शासन से नव स्वाधीन कथित विकासशील देशों की यही ऐतिहासिक परिणति है। डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने संविधान सभा में निडरतापूर्वक कहा था कि वर्तमान संविधान भारतीयों को केवल राजनैतिक आजादी देगा। यदि उन्हें आर्थिक आजादी नहीं मिली तो वे इस संविधान को तहस-नहस कर देंगे। लगता है स्वतंत्र भारत के अम्बेडकरभक्त शासकों ने उनकी इस चेतावनी को नहीं सुना हो। ऐसे शासकों-प्रशासकों से नेताजी सुभाष और भगतसिंह के क्रांतिकारी प्रयासों का अनुसरण करने की उम्मीद करना ही व्यर्थ है। इतिहास अपनी गति से आगे बढ़ रहा है। लूट और शोषण के शिकार संगठित हो रहे हैं, नक्सलवाद और उग्रवाद का अस्तित्व इसका प्रमाण है। करोड़ों भारतीय श्रमजीवियों और एशिया के अंग्रेजी दासता से मुक्त पड़ौसी पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका और म्यांमार आदि देशों के गरीबों की भी कमोबेश वही स्थिति है, जो भारत की है। विकल्प समय और परिस्थितियों की आवश्यकता होता है। राष्ट्र के जीवन और इतिहास में स्वतंत्र भारत के 70-75 वर्ष भारतीय परिस्थितियों में निर्णायक नहीं हो सकते, क्योंकि ईस्ट इंडिया कम्पनी के विरूद्ध भी 100 वर्ष बाद भारतीयों ने संगठित होना प्रारंभ किया था। तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा, और बहरों को सुनाने के लिए बमों के धमाके करने वाले भगतसिंह और चंद्रशेखर आज़ाद जैसे वीरों का साथ देने वाले करोड़ों भारतीयों में से गिनती के थे ? इसीलिए उनके मार्ग और आदर्शों का अनुसरण न करने के कारण ही आज धरती पुत्रों से लेकर भारत की युवा संतानें भी अंधेरे में आत्महत्याएं कर रहीं हैं और हमें गुलाम भारत की तरह ही जाति-सम्प्रदाय और धर्म के नाम पर आज भी लड़ाया जा रहा है। हद तो यह है कि दुष्कर्मों के मामलों को भी धर्म का आवरण ओढ़ाया जा रहा है। नवजात कन्याएँ भी राम और कृष्ण के देश में सुरक्षित नहीं रही हैं। गंगा, यमुना, गोदावरी, कावेरी, शिप्रा और कृष्णा का अंतिम संस्कार करने में नाकारा भारतीयों ने कोई कसर नहीं छोड़ी है। श्रीकृष्ण गोपाल की गैया-मैया के मांस का प्रमुख निर्यातक रहा है, विश्व गुरू कथित आजाद भारत। और उनके स्थान पर सुअरनी पर विकसित कथित विदेशी गायों, जिनका दूध कैंसरकारक और इंसान को सुअर बनाने के लिए उत्तरदायी है, उनका दूध, दही और घी भारत को विश्व दुष्कर्म गुरू बनाने वाले भारतीय खा-पी रहे हैं। केन्द्र में सत्तारूढ़ शासक दल का विपक्ष भारत में लगभग नहीं है और जो है, वह कार्पोरेट कम्पनियों से दक्षिणा पाता है, जिनमें इंकलाब का नारा लगाने वाले भी हैं। इसीलिए आज राष्ट्र दिशाहारा और नेतृत्वहीन है। मध्यप्रदेश जैसे आजादी के आंदोलन की कथित पार्टी के शासकों से शासित प्रदेश भी कम्पनी संचालक शासकों द्वारा कम्पनी की तरह संचालित हैं। गायों का ठेका कार्पोरेट कम्पनियों को तो नदियों का ठेका कम्प्यूटरों को देने वाले शासकों से जन-कल्याण की क्या उम्मीद की जावे और अपनी नाकामियों और बचकानी हरकतों के कारण अपने गढ़ में हारने वाले कथित राष्ट्रीय नेता सुल्तान बनने का सपना पालने के बाद विपक्षी नेता की कुर्सी भी फिसल जाने पर कोपभवन में बैठ जाऐं, उस राजनीतिक दल का कोई भविष्य होना भी नहीं चाहिए। कांग्रेस के लिए अब अपने समापन का वक़्त बकौल बापू आ चुका है। हमारा अडिग विश्वास है कि राम, कृष्ण, गौतम, महावीर, नानक और हज़ारों क्रांतिकारी बलिदानी वीरों और वीरांगनाओं का देश समर्पण नहीं करेगा। शीघ्र ही परिवर्तनकारी निर्णायक संघर्ष की शुरूआत होगी। इस महायज्ञ में अपनी आहूति देने के लिए हम तत्पर हैं। शीघ्र ही उज्जयिनी से लेकर प्रदेश और देश की राजधानी तक सत्याग्रहों के माध्यम से हम राष्ट्रीय जन-जागरण, गाय-गंगा-गौरी और वसुंधरा के पर्यावरण की रक्षा के मुद्दों के साथ ही प्रत्येक भारतीय के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य और रोज़गार के संवैधानिक अधिकार की प्राप्ति के लिए करेंगे।