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वक्त चल रहा है बदलाव का, हर चित्र में अपनी मर्यादा में रहते हुए बदलाव करना चाहिए-मुनि श्री मार्दव सागर जी महाराज


मुनिश्री का मंगल आगमन

उज्जैन। आचार्य विद्यासागर जी महाराज के परम शिष्य श्री 108 मार्दवसागर एवं भद्रसागर का ससंघ गुरूवार सुबह 7 बजे अभिलाषा कालोनी, देवास रोड से विहार कर लक्ष्मीनगर में भव्य आगमन हुवा। 
दिगंबर जैन समाज के सचिव डॉ सचिन कासलीवाल ने बताया कि महाराजश्री विहार के दौरान विक्रम किर्ति मंदिर में पुरातत्व विभाग में खंडित मुर्तियों में निरीक्षण कर जैन मुर्तियों की पहिचान कर फिर से पधारने की मंशा की। ठीक 7 बजे प्रथम श्री आदिनाथ दि जैन मंदिर, महावीर दि जैन मंदिर, लक्ष्मीनगर, श्री शांतिनाथ दि जैन मंदिर, लक्ष्मी नगर मंदिरों में दर्शन किए। तत्पश्चात शांति धारा और अभिषेक कराया एवं महाराजद्वय के सानिध्य में साधर्मि के साथ बैड बाजे सहित जुलुस के रुप में जैन बोर्डिग में पहूंचे। जैन समाज के विभिन्न पदाघिकारियों द्वारा महाराजश्री को श्रीफल चढाकर आशिर्वाद लिया। सर्वप्रथम आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज का चित्र अनावरण एवं दीप प्रज्वलन का कार्यक्रम हुआ जिसमें प्रमुख रुप से शांतिनाथ दिगंबर जैन मंदिर के अध्यक्ष इंदर चंद जैन, हीरालाल बिलाला, महेंद्र लुहाडिया, तेज कुमार विनायका, अशोक जैन चायवाला, अशोक जैन गुनावाले, अशोक जैन राणा, नरेंद्र बिलाला, नरेंद्र बड़जात्या के साथ संपूर्ण समाज एवं महिला मंडलों ने श्रीफल भेंट किया तथा महाराज श्री के साथ पधारे श्रावक और भक्तों का सम्मान किया। महाराजश्री ने प्रवचन में कहा कि आप बहुत सौभाग्यशाली हो कि चंद्रगुप्त मौर्य की नगरी, महावीर भगवान की तपस्थलि में सौभाग्य से श्रीजी का अभिषेक, शांतिधारा, पूजन की क्रियायें संपन्न कर पूण्यार्जन प्राप्त कर रहे हो। यह उज्जैन, उज्जैनी नगरी बहुत से संत, भगवान राम, भगवान महावीर के चरणों से पवित्र हुई है। मुनि श्री ने बताया कि  मैंने रामचरित्र चालीसा, हनुमान चालीसा, भारत चालीसा आदि कई गाथाएं कविताएं शास्त्र किताबें लिखी गई हैं। हर चित्र को बदलाव आवश्यक है बदलाव ही मानव की प्रवृत्ति है वक्त चल रहा है। बदलाव का महावीर ने भी कहा है कि बदलाव करना चाहिए। लेकिन अपनी मर्यादा में रहकर खानपान एवं पहनावे आदि सभी विषयों में बदलाव आवश्यक होता है। मैं यहां पिछली बार आया था तब ओर अब में बहुत जिनालयों का जिर्णोध्दार होकर विकास कार्य हुये है। यह मै देख रहा हूं। मन प्रसन्न हुवा। जैन धर्म में बहुत से आध्यात्मिक ग्रंथ में काव्य की भाषा में लिखे गये है। णमोकार मंत्र ओर ऐसे कई मंत्र प्राकृत संस्कृत भाषा से ही आये हुये है। हमें रात्री में भोजन नही करना चाहिये। आजकल अन्य समाज के लोग भी रात्री का भोजन नहीं करते है। चातुर्मास में तो रात्री भोजन का त्याग कर देना चाहिये। महाराज जी का चातुर्मास यहां होने से समाज में हर्ष है कि धर्मलाभ होगा। हमें रोज स्वाध्याय करना चाहिये जिससे चौबीस तिर्धंकरों की जानकारियां मिलती है। आध्यात्मिकता से भी जीवन शैली में जैन सिघ्दांतो से सही दिशा मिलती है। आज की दुनिया बहुत बदल गयी है। पहनावा, भोजन आदि में हम अपनी मुल सस्कृति से विलुप्त होते जा रहे है। अंत में हीरालाल बिलाला ने आभार व समापन किया। संचालन शैलेन्द्र जैन गायक, प्रदीप पांड्या, अशोक मंगला जैन कई समाजसेवी महिला पुरुष बच्चे आदि मंगल विहार में रहे थे। 9 से 16 जुलाई अष्टानिका महापर्व में नंदीश्वर दीप का भव्य विधान का आयोजन दोनों ही मुनि श्री स संघ के सानिध्य में श्री शांतिनाथ दिगंबर जैन मंदिर बोर्डिंग में होगा। 8ः45 से 9ः30 बजे तक कल से नियमित प्रवचन होंगे।

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