प्रदोष व्रत होती अमोद्य फल की प्राप्ति, शत्रुओं पर मिलती है विजय
प्रदोष व्रत त्रयोदशी तिथि को रखा जाता है और इस दिन भगवान शंकर की पूजा की जाती है. यह व्रत शत्रुओं पर विजय हासिल करने के लिए अच्छा माना गया है. प्रदोष काल वह समय कहलाता है जिस समय दिन और रात का मिलन होता है. भगवान शिव की पूजा एवं उपवास- व्रत के विशेष काल और दिन रुप में जाना जाने वाला यह प्रदोष काल बहुत ही उत्तम समय होता है. प्रदोष तिथि का बहुत महत्व है, इस समय की गई भगवान शिव की पूजा से अमोघ फल की प्राप्ति होती है.
इस व्रत को यदि वार के अनुसार किया जाए तो अत्यधिक शुभ फल प्राप्त होते हैं. वार के अनुसार का अर्थ है कि जिस वार को प्रदोष व्रत पड़ता है उसी के अनुसार कथा पढ़नी चाहिए. इससे शुभ फलों में अधिक वृद्धि होती है. अलग-अलग कामनाओं की पूर्त्ति के लिए वारों के अनुसार प्रदोष व्रत करने से लाभ मिलता है.
प्रदोष काल में की गई पूजा एवं व्रत सभी इच्छाओं की पूर्ति करने वाला माना गया है. इसी प्रकार प्रदोष काल व्रत हर माह के शुक्ल पक्ष एवं कृष्ण पक्ष के तेरहवें दिन या त्रयोदशी तिथि में रखा जाता है. कुछ विद्वानों के अनुसार द्वादशी एवं त्रयोदशी की तिथि भी प्रदोष तिथि मानी गई है.
कैसे किया जाता है ये व्रत और क्या है पूजा की पूरी विधि-
इस व्रत के दिन सुबह नहाने के बाद भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए।
पूजा में भगवान शिव-पार्वती और नंदी को पंचामृत व गंगाजल से नहलाएं और फिर बिल्व पत्र, गंध, चावल, फूल, धूप, दीप, नैवेद्य (भोग), फल, पान, सुपारी, लौंग और इलायची चढ़ाएं।
शाम को फिर से नहाकर इसी तरह शिवजी की पूजा करें। भगवान शिव को घी और शक्कर मिले जौ के सत्तू का भोग लगाएं। आठ दीपक आठ दिशाओं में जलाएं।
इसके बाद शिवजी की आरती करें।
प्रदोष व्रत में रखना चाहिए इन बातों का ध्यान
प्रदोष व्रत बिना कुछ खाए रखा जाता है। ऐसा नहीं कर सके तो एक समय फल खा सकते हैं।
प्रदोष व्रत के दिन रात में जागरण करें और शिवजी के मंत्रों का जाप करें। इस तरह व्रत व पूजा करने से व्रती (व्रत करने वाला) की हर इच्छा पूरी हो सकती है।
प्रदोष व्रत के समय दिनभर पवित्रता का ध्यान रखना चाहिए।
बूढ़े और रोगी लोग रात्रि जागरण न कर सके तो भी दोष नहीं लगता है।