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राम जन्मभूमि मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू


नई दिल्ली। अयोध्या में राम जन्मभूमि विवाद मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू हो गई है। पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ केस की सुनवाई कर रही है। राम जन्मभूमि को तीन बराबर हिस्सों में बांटने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली अपीलों पर सुनवाई की रूपरेखा तय होगी। इसके संकेत पिछली सुनवाई में चीफ जस्टिस ने दिए थे।
प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस अब्दुल नजीर की पीठ मामले पर सुनवाई कर रहे हैं। इससे पहले कोर्ट अयोध्या राम जन्मभूमि मालिकाना हक मुकदमें से संबंधित अपीलों पर 29 जनवरी को सुनवाई करने वाला था लेकिन जस्टिस एसए बोबडे के उपलब्ध न होने के कारण सुनवाई टल गयी थी। इसके बाद 20 फरवरी को सुनवाई की नई तिथि 26 फरवरी तय हुई थी।
सुब्रमण्यम स्वामी ने सोमवार को प्रधान न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई और संजीव खन्ना की पीठ के समक्ष अपनी रिट याचिका का जिक्र करते हुए गुहार लगाई थी कि उनकी याचिका पर भी मुख्य मामले के साथ ही मंगलवार को सुनवाई की जाए। पीठ ने स्वामी से कहा कि वह मंगलवार को सुनवाई के दौरान कोर्ट में मौजूद रहें। स्वामी ने याचिका में कहा है कि जमीन पर अधिकार से बड़ा मौलिक अधिकार पूजा अर्चना का है। उन्हें अबाधित पूजा अर्चना का अधिकार मिलना चाहिए।
अयोध्या भूमि अधिग्रहण कानून 1993 को चुनौती देने वाली याचिका भी सुनवाई के लिए कोर्ट के सामने लगी है। हालांकि विवादित भूमि को छोड़ कर अधिगृहित जमीन का अतिरिक्त भाग भूस्वामियों को वापस लौटाने की अनुमति मांगने वाली केंद्र सरकार की अर्जी फिलहाल सुनवाई सूची में शामिल नहीं है। इसका कारण शायद यह है कि वह अर्जी अयोध्या राम जन्मभूमि पर मालिकाना हक के मुख्य मुकदमें में दाखिल नहीं की गई थी बल्कि पहले से निस्तारित हो चुके असलम भूरे मामले में दाखिल की गई है, जो कि एक अलग केस है।
इस बीच शिशिर चतुर्वेदी सहित सात लोगों ने स्वयं को रामभक्त और सनातन धर्म अनुयायी बताते हुए सुप्रीम कोर्ट में नई रिट याचिका दाखिल कर 1993 के अयोध्या भूमि अधिग्र्रहण कानून को चुनौती दी है। याचिका में कहा गया है कि संसद को राज्य की जमीन के अधिग्र्रहण के बारे में कानून पास करने का अधिकार नहीं है। यह कानून हिन्दुओं को अनुच्छेद 25 में प्राप्त धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन करता है।
मांग की गई है कि कोर्ट केंद्र व उत्तर प्रदेश सरकार को आदेश दे कि वह अधिगृहित जमीन पर स्थित मंदिरों विशेषकर राम जन्मभूमि न्यास, मानस भवन, संकट मोचन मंदिर, राम जन्मस्थान मंदिर, जानकी महल और कथा मंडप में स्थिति मंदिरों में पूजा दर्शन व रीतिरिवाज करने से न रोके। गत 15 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को भी मुख्य मामले के साथ सुनवाई पर लगाने का आदेश दिया था।
हालांकि बताते चलें कि सुप्रीम कोर्ट इस्माइल फारुकी केस में 1994 में अयोध्या भूमि अधिग्रहण को सही ठहरा चुका है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 30 सितंबर, 2010 को विवादित जमीन को तीन बराबर हिस्सों में रामलला, निर्मोही अखाड़ा और मुस्लिम पक्षकारों में बांटने का आदेश दिया था।
रामलला सहित सभी पक्षकारों ने फैसले के खिलाफ कुल 13 अपीलें दाखिल की हैं। सुप्रीम कोर्ट के आदेश से फिलहाल मामले में यथास्थिति कायम है। इस बीच मस्जिद को नमाज के लिए इस्लाम का अभिन्न हिस्सा न मानने वाले फैसले की पुनर्समीक्षा की मुस्लिम पक्षों की मांग कोर्ट ने ठुकरा दी थी। गत वर्ष 27 सितंबर के उस फैसले में कोर्ट ने कहा था कि मुख्य मामले की सुनवाई में पहले ही काफी देर हो चुकी है और मामले को अक्टूबर के अंतिम सप्ताह में सुनवाई के लिए लगाया जाए। उसके बाद जस्टिस दीपक मिश्रा सेवानिवृत हो गए। तब से कई तारीखें लग चुकी हैं लेकिन नियमित सुनवाई अभी भी शुरू नहीं पाई है।

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