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इस गॉव में रहने वाले 50 घरों में बचे है केवल 8 पुरूष



राजस्थान के सिरोही जिले के पिंडवाड़ा तहसील में एक गांव की हकीकत जानकर आप चौंक जाएंगे। इस गांव में अब केवल आठ पुरूष है बाकि सब महिलाओं की आबादी है। इस गांव का नाम है राणमीधरा गांव है। इस गांव की ये हालत एक बीमारी के कारण हुई है। इस गांव में युवाओं की 30 साल की उम्र में मौत हो जाती है। पिछले तीन सालों में गांव के 143 लोगों की सिलिकोसिस से मौत हुई है और 1500 से ज्यादा लोग इस बीमारी से पीड़ित हैं। इस बीमारी के चलते गांव में युवा पुरूषों की संख्या केवल आठ रह गई है।

इस बीमारी की वजह उनका रोजगार ही है। यहां के लोग पत्थर घड़ाई का काम करते है, जिसकी वजह से उन्हें बहुत ही कम उम्र में बीमारी हो जाती है। तीस साल की उम्र तक पहुंचते पहुंचते मौत हो जाती है। यह गांव दो ग्राम पंचायत कोजरा व नांदिया के सीमा पर है जिसकी वजह से इसकी सुध लेने वाला कोई नहीं है। गांव के युवा रोजगार ना होने और अशिक्षित होने के कारण पत्थर तराशने का काम करते हैं। इससे निकलने वाले कण इन कारीगरों के फेंफड़ों में जमा हो जाते है और इससे इन लोगों को फेंफड़ों से संबंधित कई परेशानियां होने लगती हैं, जो लंबे समय तक रहने के कारण सिलिकोसिस में बदल जाती है.

जानिए क्या है सिलिकोसिस 
सिलिका कणों और टूटे पत्थरों की धूल की वजह से सिलिकोसिस होती है। धूल सांस के साथ फेफड़ों तक जाती है और धीरे-धीरे यह बीमारी अपने पांव जमाती है। यह खासकर पत्थर के खनन, रेत-बालू के खनन, पत्थर तोड़ने के क्रेशर, कांच-उद्योग, मिट्टी के बर्तन बनाने के उद्योग, पत्थर को काटने और रगड़ने जैसे उद्योगों के मजदूरों में पाई जाती है। इसके साथ ही स्लेट-पेंसिल बनाने वाले उद्योगों में काम करने वाले मजदूरों को भी सिलिकोसिस अपनी गिरफ्त में लेती है। जहां इस तरह के काम बड़े पैमाने पर होते हैं वहां काम करने वाले मजदूरों के अलावा आसपास के रहिवासियों के भी सिलिकोसिस से प्रभावित होने का खतरा होता है।

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