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आज है खास स्‍नान... जानें क्या है इसका महत्‍व


पौष पूर्णिमा को बनारस में दशाश्वमेध घाट व प्रयाग में संगम पर स्नान करना बहुत ही शुभ और पवित्र माना जाता है। इस दिन से भक्त प्रयाग में कल्पवास प्रारंभ कर माघ माह की पूर्णिमा तक स्नान करते हैं। इस दिन स्नान करने के लिए जो प्रयाग या बनारस नहीं जा सकते वे अपने आसपास मौजूद किसी भी पवित्र नदी या सरोवर में स्नान कर भगवान विष्णु का ध्यान कर सकते हैं। पौष पूर्णिमा को पवित्र नदियों में स्नान और सूर्य देव को अर्घ्य देने की परंपरा है। खास बात ये है कि इस दिन सूर्य और चंद्रमा का अनोखा संगम होता है, क्योंकि ये माह  सूर्य देव का है जबकि पूर्णिमा चंद्रमा की तिथि होती है। इसीलिए माना जाता है कि इस दिन सूर्य और चंद्रमा दोनों की पूजा करके मनोकामनाएं पूर्ण हो सकती हैं। मोक्ष की कामना रखने वाले भक्त पौष माह की इस पूर्णिमा को बहुत शुभ मानते हैं। इसी दिन से माघ महीने आैर उसके स्नान की शुरुआत भी होती है। इस दिन स्नान के साथ ही दान करने का भी महत्व है।

 स्नान  और  दान का आरंभ: पौष पूर्णिमा से ही स्नान और दान का सिलसिला शुरू हो जाता है। वैसे तो हर पूर्णिमा को स्नान के बाद दान का महत्व होता है, परंतु ऐसा माना जाता है कि इस पूर्णिमा पर ऐसा करने वाले की सभी मनोकामनायें पूरी होती हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दिन दान करने और गरीबों को भोजन कराने से भगवान का विशेष आशीर्वाद मिलता है। इस दिन पवित्र नदी के किनारे दीपदान करने का भी अत्याधिक महत्व होता है। इन दिनों तो प्रयागराज में अर्द्घ कुंभ मेले का आयोजन हो रहा है, ऐसे में इन दिनों पौष पूर्णिमा का विशेष स्नान होगा। जो भी इस दिन स्नान करेगा उसे उत्तम फल मिलेगा ऐसी मान्यता है। 

कल्पवास का आरंभ: पौष पूर्णिमा से ही प्रयाग में संगम के तट पर एक महीने के कल्पवास का भी आरंभ हो जाता है। कल्पवास का मतलब है संगम के तट पर रहते हुए वेदाध्ययन और ध्यान करना। कल्पवास आरंभ पौष माह के 11वें दिन यानि एकादशी से माघ माह के 12वें दिन तक चलता है। इस दौरान पौष पूर्णिमा के साथ आरंभ करने वाले श्रद्धालु एक महीने तक संगम के तट पर बस जाते हैं और भजन और ध्यान करते हैं। वैसे कुछ लोग मकर संक्रांति से भी कल्पवास शुरू कर देते हैं। ऐसी मान्यता है कि कल्पवास मनुष्य के लिए आध्यात्मिक विकास का माध्यम है और संगम पर पूरे माघ माह निवास करने से पुण्य फल प्राप्त होता है।

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