गुरूवार के दिन प्रदोष व्रत होता है खास, व्रत करने से शिव देते सुखी दाम्पत्य का आर्शीवाद
गुरुवार, 3 जनवरी को पौष मास के कृष्णपक्ष की त्रयोदशी तिथि है। इसे प्रदोष कहा जाता है। प्रदोष का व्रत भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है। इस दिन भगवान शिव की पूजा और दिनभर व्रत रखने से मनोकामना पूरी होती है। प्रदोष का ये व्रत करने से दाम्पत्य जीवन में प्रेम बना रहता है। इस व्रत के प्रभाव से जाने अनजाने में किए गए पाप खत्म हो जाते हैं। गुरु को प्रदोष होने से इसे गुरु प्रदोष कहा जाता है। इससे बृहस्पति ग्रह शुभ प्रभाव तो देता ही है साथ ही इससे पितरों का आशीर्वाद मिलता है। अक्सर यह प्रदोष शत्रु एवं खतरों के विनाश के लिए किया जाता है। इस तरह गुरुवार को पड़ने वाला प्रदोष व्रत बहुत खास है।
कैसे किया जाता है ये व्रत और क्या है पूजा की पूरी विधि-
इस व्रत के दिन सुबह नहाने के बाद भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए।
पूजा में भगवान शिव-पार्वती और नंदी को पंचामृत व गंगाजल से नहलाएं और फिर बिल्व पत्र, गंध, चावल, फूल, धूप, दीप, नैवेद्य (भोग), फल, पान, सुपारी, लौंग और इलायची चढ़ाएं।
शाम को फिर से नहाकर इसी तरह शिवजी की पूजा करें। भगवान शिव को घी और शक्कर मिले जौ के सत्तू का भोग लगाएं। आठ दीपक आठ दिशाओं में जलाएं।
इसके बाद शिवजी की आरती करें।
प्रदोष व्रत में रखना चाहिए इन बातों का ध्यान
प्रदोष व्रत बिना कुछ खाए रखा जाता है। ऐसा नहीं कर सके तो एक समय फल खा सकते हैं।
प्रदोष व्रत के दिन रात में जागरण करें और शिवजी के मंत्रों का जाप करें। इस तरह व्रत व पूजा करने से व्रती (व्रत करने वाला) की हर इच्छा पूरी हो सकती है।
प्रदोष व्रत के समय दिनभर पवित्रता का ध्यान रखना चाहिए।
बूढ़े और रोगी लोग रात्रि जागरण न कर सके तो भी दोष नहीं लगता है।