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तीन राज्यों में भाजपा की हार, है मोदी की हार


                            डॉ. चन्दर सोनाने

                    देश के तीन राज्य मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा की हार हुई है। और तीनों राज्यों में कांग्रेस ने अपना परचम फहराया है। इन तीनों राज्यों में कांग्रेस की जीत ने कई सवाल खड़े किये हैं, किन्तु इससे भी बड़ा सवाल भाजपा की हार का है। वास्तव में देखा जाये तो इन तीन राज्यों में भाजपा की हार, मोदी की हार है।

               वर्ष 2013 में श्री नरेन्द्र मोदी भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार घोषित हुए थे। वर्ष 2013 में ही हुए विधानसभा चुनाव में मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ और राजस्थान में मोदी लहर में भाजपा की सरकार बनी। किन्तु अब इन्हीं तीन राज्यों में पाँच साल बाद हुए चुनाव में मोदी के प्रति जनता की नाराजगी के चलते ही भाजपा की हार हुई है । नोट बंदी और जीएसटी तो मुख्य कारण थे ही। साथ ही जनता प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के लगातार झूठ बोलने से भी नाराज थी।कहीं ऐसा न हो कि 2013 से शुरू हुई मोदी लहर अब 2018 से उल्टी बहने लगे।

                   देश में अभी तक जितने भी प्रधानमंत्री हुए, उन सबने प्रधानमंत्री के पद की प्रतिष्ठा को हमेशा ध्यान में रखा। किन्तु पिछले साढे़ चार साल के दौरान प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी अपने सार्वजनिक कार्यक्रमों में दिये गये भाषणो में अपने भाषण का स्तर दिनों -दिन गिराते चले गये। उनका और भाजपा अध्यक्ष श्री अमित शाह का अहंकार उन्हें ले डूबा। इन दोनों ने अपने विरोधियों के प्रति जिस भाषा शैली का उपयोग सार्वजनिक कार्यक्रमों में किया, वह जनता को पसंद नही आई। भारत में प्रजातंत्र है। और प्रजातंत्र में एक सशक्त प्रतिपक्ष का होना आवश्यक है। किन्तु प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी और श्री अमित शाह ने हमेशा अपने राजनैतिक विरोधियों के प्रति जिन शब्दों का उपयोग किया, वह मतदाताओं को रास नहीं आया और वे धीरे -धीरे उनकी नजरों से गिरते चले गये।

                    शहरों के साथ गांवो में भी अब टी वी की सहज पंहुच हो गई है। हर छोटी बड़ी खबर सीधे लोगों के घरों में तुरन्त पहुंच जाती है। ग्रामीण मतदाता भले ही कम पढे़ लिखे हों, किन्तु उनमें अपने मत के अधिकार के प्रति जागरूकता दिनों दिन बढ़ी है। वे अब नेताओं के भाषणों से सहज प्रभावित नहीं होते हैं। बल्कि सोच समझकर अपने मताधिकार का उपयोग करते है । इन तीन राज्यों में हुए चुनावों ने यह बात एक बार फिर सिद्ध कर दिखाई है।

                     इन तीन राज्यों की मतगणना के दिन मंगलवार की शाम को कांग्रेस की जीत को देखते हुए कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री राहुल गांधी ने जो प्रेस वार्ता ली, उसमें उनकी परिपक्वता स्पष्ट दिखाई देती है। उन्होंने स्पष्ट कहा कि उन्होंने 2014 के चुनावों में हुई हार से बहुत सीखा है। मोदी जी से भी उन्होनें यह सीखा कि क्या नहीं करना चाहिए। उन्होनें प्रेस वार्ता में एक बात स्पष्ट की कि उनकी योजना भाजपामुक्त देश से नहीं है। जैसा कि श्री नरेन्द्र मोदी और श्री अमित शाह कहते है कांग्रेस मुक्त देश। किन्तु श्री राहुल गांधी का यह कहना कि वे भाजपा मुक्त देश नहीं सोचते हैं। यह उनकी परिपक्वता ही दिखाता है। इन तीन राज्यों में कांग्रेस की जीत ने कांग्रेस को बड़ा सहारा और संजीवनी दी है। यह उन्हें आगामी लोकसभा चुनाव में काम आयेगा।

                       हांलाकि विधानसभा के चुनाव क्षेत्रीय आधार पर लड़े जाते रहे हैं। इन चुनावों में उम्मीदवार का जनता से जीवन्त सम्पर्क बहुत काम आता है। स्थानीय समस्याएँ भी चुनाव परिणाम को प्रभावित करती है। प्रदेश के मुखिया द्वारा किये गये कार्यो का भी प्रभाव मतदाताओं पर पड़ता है। किन्तु यह चुनाव इस मामले में थोड़ा अलग रहा। इन विधानसभा चुनावों के स्थानीय मुद्दे से ज्यादा मुद्दे प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की नीति,रीति,भाषण और कार्य की रही। उनके चुनावी जुमले बड़े प्रसिद्ध रहे हैं। इससे उन्हें तो हमेशा लाभ प्राप्त ही हुआ है। किन्तु इन विधानसभा चुनावों में पहली बार हुआ है कि श्री नरेन्द्र मोदी के कारण ही भापजा चुनाव में हारी है।

                         मध्यप्रदेश,छत्तीसगढ और राजस्थान में भाजपा की हार और कांग्रेस की जीत से अगले वर्ष होने जा रहे लोकसभा चुनाव ने अनेक प्रश्न खडे़ कर दिये है। अब जागरूक मतदाता कहने लगे हैं कि इसी तरह श्री नरेद्र मोदी चलते रहे तो अगले लोकसभा चुनाव में भाजपा की हार निश्चित है। इन तीन राज्यों के चुनाव भाजपा के लिए सबक है। अब जनता पहले की तुलना में बहुत समझदार हो गई है। वह यह समझ गई है कि क्यों चुनाव के समय ही भाजपा को राम मंदिर की याद आती है। भाजपा के लिए यह वक्त गहन समीक्षा का वक्त है

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