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निजी अस्पतालों में हो रहे सीजेरियन प्रसव पर सख्ती से रोक लगाने की जरूरत


                           डॉ. चन्दर सोनाने

                               भारतीय प्रबंधन संस्थान अहमदाबाद के फेकल्टी सदस्य अमरीश डोंगरे और छात्र मितुल सुराना ने अपने एक अध्ययन में यह बात सिद्ध की है कि निजी अस्पतालों में ज्यादातर ऑपरेशन सिर्फ पैसे के लिए किये जा रहे हैं। इन निजी अस्पतालों में बिना जरूरत ही पैसे कमाने के लिए डॉक्टर सीजेरियन प्रसव करा रहे हैं। इस अध्ययन के आंकडे राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण वर्ष 2015-16 के चौथे चरण पर आधारित है। इस सर्वे में यह पाया गया है कि भारत के निजी अस्पतालों में 40.9 प्रतिशत प्रसव ऑपरेशन द्वारा हुए, जबकि सरकारी अस्पतालों मे यह 11.9 प्रतिशत ही है।

                                उक्त सर्वे के अनुसार सरकारी अस्पतालों की तुलना में निजी अस्पतालों में आपरेशन द्वारा प्रसव लगभग चार गुना है। यह स्थिति खतरनाक है। बिना जरूरत के ऑपरेशन कर देना,वह भी मात्र पैसे कमाने के लिए, कदापि उचित और मानवीय नहीं कहा जा सकता। सर्वे में यह भी कहा गया है कि बिना जरूरत सीजेरियन प्रसव से नवजात को स्तनपान कराने में देरी हुई, बच्चे का वजन कम हुआ और उसे सांस लेने में भी तकलीफ हुई है।

                                 आइये, अब देखते है पैसों का खेल। सीजेरियन में औसत खर्च सामान्य प्रसव से दो गुना से भी अधिक होता है। उक्त अध्ययन के अनुसार निजी अस्पतालों में सामान्य प्रसव पर औसत खर्च 10,814 रूपये होता है, जबकि ऑपरेशन से यही खर्च बढ़कर 23,978 रूपये होता है। अर्थात् निजी अस्पतालों में अधिक वित्तीय लाभ लेने के लालच के कारण बिना जरूरत सीजेरियन आपरेशन कर दिये जाते हैं।

                               उक्त अध्ययन में यह भी कहा गया है कि ऑपरेशन से प्रसव की संख्या कम करने के लिए सरकार को सरकारी अस्पतालों में आधुनिक सुविधायें जैसे चिकित्सक, उपकरण, कर्मचारी आदि को चौकस करना होगा। अस्पतालों के समय, सेवा प्रदाताओं की गैर मौजूदगी और बर्ताव के लिहाज से भी सरकारी अस्पतालों की सुविधाओं को मजबूत करना होगा। केन्द्र और राज्य सरकार को चाहिए कि वे इस अध्ययन को गंभीरता से लें और बिना वजह सीजेरियन प्रसव पर रोक लगाने के लिए सख्त कार्यवाही करें।

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