उपराष्ट्रपति ने जताई शोधकर्मियों की कमी पर चिंता, वे चाहें तो कर सकते हैं कमियों को दूर
संदीप कुलश्रेष्ठ
उपराष्ट्रपति श्री एम.वेंकैया नायडू ने हाल ही में दिल्ली में एक विश्वविद्यालय के कार्यक्रम का उद्घाटन करते हुए चिंता जाहिर की कि देश में अच्छे शोधकर्मियों कि काफी कमी है। और पीएचडी करने वाले छात्रों की संख्या घटती जा रही है। उन्होंने यह भी दुःख व्यक्त किया कि विश्व के शीर्ष 100 विश्वविद्यालयों मे भारत का एक भी विश्वविद्यालय नहीं है। उन्होंने सही कहा, किन्तु इनके कारणों पर उन्होंनें गौर नहीं किया। और न ही उन्होंने यह बताया कि इस कमी को दूर करने के लिए क्या करना चाहिए। वे भारत जैसे विशाल एवं शक्तिशाली देश के उपराष्ट्रपति के सम्माननीय पद पर विराजमान हैं। वे चाहें तो इनकी कमियों पर गौर कर उसे दूर करने की दिशा में ठोस प्रयास कर सकते हैं। उपराष्ट्रपति श्री एम.वेंकैया नायडू के प्रयासों को गम्भीरता से लिया जायेगा, क्योंकि देश में वे एक दीर्घ अनुभव प्राप्त गंभीर राजनेता के रूप में जाने जाते हैं, जिसका लाभ अवश्य रूप से देश की शिक्षा प्रणाली को मिलेगा।
मात्र 25000 रूपये मिलते है शोधकर्ता को -
उल्लेखनीय है कि हमारे देश के विश्वविद्यालयों मे शोध करने वाले छात्रों को मात्र 25000 रूपये महीने ही मिलते है। यहाँ 1 खास बात यह है कि स्नातक करने के बाद और बाद में स्नात्कोत्तर करने के बाद यदि छात्र नौकरी करता है तो उसे अच्छा वेतन मिलता है। जिससे वह अपने परिवार का गुजर बसर अच्छे तरह से कर सकता है। किन्तु स्नात्कोत्तर करने के बाद यदि कोई छात्र नौकरी नहीं करें और पीएचडी करें तो उसे मात्र प्रमिताह 25000 रूपये ही मिलते है। इतनी कम राशि मिलने के कारण पीएचडी करने वाले छात्रो की कमी है। यदि कोई छात्र पीएचडी करता ही है। और उसे अच्छी नौकरी मिल जाती है। तो वह अपना शोध कार्य बीच में ही छोड़ देता है। यदि उसे कम से कम 50000 रूपये प्रतिमाह पीएचडी करते हुए मिले तो वह नौकरी के पीछे नही भागेगा। और एकाग्रचित्त होकर शोधकार्य कर सकेगा। इस दिशा में उपराष्ट्रपति को सोचना चाहिए और इस संबध में केन्द्र शासन के मानव संसाधन विकास मंत्रालय को कुछ ठोस कार्य करने के लिए कहना चाहिए।
100 शीर्ष विश्वविद्यालयों में भारत का एक भी विश्वविद्यालय नहीं-
उपराष्ट्रपति ने भारत में उच्च शिक्षा के स्तर पर जो चिंता व्यक्त की है। वह सही है। यह दुःखद है कि विश्व के शीर्ष 100 विश्वविद्यालय में भारत का एक भी विश्वविद्यालय नहीं है। उपराष्ट्रपति जी को इसके कारणों में भी जाने की जरूरत है। आज भारत का एक भी विश्वविद्यालय ऐसा नहीं है, जहाँ शिक्षकों के सभी पद भरे हुए हो। यहाँ तक की देश के प्रतिष्ठित आईआईटी और आईआईएम जैसे संस्थानों में भी शिक्षकों के पद खाली पडे़ हुए है। एक सर्वे के अनुसार भारत के विश्वविद्यालयो में 25 से 60 प्रतिशत तक शिक्षकों के पद रिक्त पडे़ हुए हैं। इस पर कोई देखने वाला नहीं है। जब शिक्षक ही नहीं होंगे तो उच्च शिक्षा का स्तर कैसे सुधर पायेगा ? उपराष्ट्रपति जी को चाहिए कि वे केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय को शिक्षकों की कमी दूर करने के विषय में कारगर प्रयास करने को कहे।
संयुक्त प्रयास से होगा बदलाव -
उपराष्ट्रपति श्री नायडू ने एक सही दिशा में कार्य करने की आवश्यकता प्रतिपादित की है। हमारे देश के प्रधानमंत्री और मानव संसाधन विकास मंत्री को चाहिए की वे राज्यों के मुख्यमंत्रियों और शिक्षामंत्रियों के साथ इस दिशा में गंभीरता पूर्वक चिंतन मनन करें और इस दिशा में शिक्षाविदों की भी राय ली जाये। उनकी राय के आधार पर शिक्षा की व्यवस्था में बदलाव लाया जाये तथा शिक्षकों के सभी रिक्त पद भरने की प्राथमिकता के आधार पर 5 वर्षीय योजना बनाकर कार्य किया जाये। साथ ही शोध करने वाले छात्रों की शोधवृत्ति को इस प्रकार आकर्षित बनाया जाये की छात्र नौकरी करने की बजाय शोध की और प्रवृत्त हो। इससे ही हमारे देश की उच्च शिक्षा की स्थिति में आशानुरूप बदलाव हो सकेगा।
.................................000...............................