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दुर्घटना में घायलों को तुरन्त अस्पताल पहुंचायें, नहीं होगी कोई पुलिस पूछताछ


                                  डॉ. चन्दर सोनाने

                          सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर दो साल पहले देश में गुड सेमेरिटन लॉ बनाया गया । यह नियम कहता है कि अगर कोई व्यक्ति सड़क दुर्घटना में घायल व्यक्ति की मदद करता है और उसे अस्पताल पहुँचाता है तो उसकी मर्जी के बिना न तो उसे पुलिस द्वारा रोका जा सकता है और नही पुलिस द्वारा पूछताछ की जा सकती है। इसका जितना प्रचार-प्रसार होना चाहिए, उतना नहीं हुआ है। इस कारण अभी भी लोग पुलिस के डर से घायलों की मदद नहीं करते हैं। इस कारण कई बार समय पर घायलों को मदद नहीं मिलने पर उनकी मृत्यु तक हो जाती है। गत दस वर्षो में हमारे देश में करीब 13 लाख लोगों की सड़क दुर्घटना में मौत हुई है। केवल 1 वर्ष गत 2017 में ही लगभग 1 लाख 47 हजार लोगों की सड़क हादसों में जान चली गई है।

                         सेव लाइफ फाउन्डेशन की ही जनहित याचिका पर दो साल पहले सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर देश में केन्द्र शासन द्वारा कानून बनाया गया था। इसी सेव लाइफ फाडन्डेशन ने हाल ही में देश के 11 शहरों दिल्ली, जयपुर, कानपुर, वाराणसी, लुघियाना, बेंगलुरू, हैदराबाद, चेन्नई, मुम्बई, इन्दौर और कोलकाता में सर्वे किया। इस सर्वे में चौंकाने वाली जानकारी मिली है । देश के सरकारी और निजी अस्पताल गुड सेमेरिटन लॉ को लेकर सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन ही नहीं कर रहे है। एक भी अस्पताल ने इस नियम से संबंधित चार्टर अपने अस्पतालों में नहीं लगाया है। गुड सेमेरिटन लॉ यह कहता है कि सड़क हादसों में घायल हुए किसी भी व्यक्ति की मदद करने वालों को कानूनी चक्करों में पड़ने से बचाया जाना चाहिए। किन्तु ऐसा नहीं हो रहा है। इस कारण अभी सिर्फ 29 प्रतिशत लोग ही घायलों की मदद के लिए आगे आते है और उसे फौरन अस्पताल पहुंचाते हैं। 28 प्रतिशत लोग एम्बुलेंस का इन्तजार करते है। यही नहीं पुलिस को सड़क हादसे की सूचना देना भी सिर्फ 12 प्रतिशत लोग ही जरूरी समझते है। इस बहुत अच्छे कानून का पालन इसलिए नहीं हो पा रहा क्योंकि 84 प्रतिशत लोगों को तो अधिकारों का ही पता नहीं है। इसी वजह से वे घायलों की मदद करने से कतराते है।

                          सर्वे में और भी महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त हुई है। सर्वे से यह भी पता चला है कि पुलिसकर्मी भी आदेशों का पालन नहीं कर रहे हैं। 64 प्रतिशत पुलिसकर्मी घायलों को अस्पताल पंहुचाने वालों से अभी भी पूछताछ करते है। 59 प्रतिशत मामलों में पुलिस और 22 प्रतिशत मामलो में अस्पताल वाले घायल की मदद करने वाले व्यक्तियों को रोक लेते हैं। सर्वे से यह भी पता चला है कि 69 प्रतिशत अस्पतालों में गुड सेमेरिटन कमैटी ही नहीं बनाई गई है। यही नहीं 96 प्रतिशत अस्पताल प्रबंधन और डॉक्टरों ने माना है कि अभी भी घायल को अस्पताल पंहुचाने वालों से उसकी व्यक्तिगत जानकारी मांगते हैं। 87 प्रतिशत मेडिकल ऑफिसर और 74 प्रतिशत पुलिस अधिकारियों ने यह माना है कि उन्हें पता ही नहीं है कि गुड सेमेरिटन कानून को कैसे लागू कराया जा सकता है। इस सर्वे में करीब 3600 लोगों से जानकारी प्राप्त की गई। यह नियम देश में अभी तक सिर्फ कर्नाटक राज्य में ही ठीक ढंग से लागू हो पाया है। अन्य किसी राज्य में यह कानून लागू नहीं हो पाया है। यह अत्यन्त ही दुःख की बात है।

                          देश में किस प्रकार अच्छे नियम की धज्जियाँ उड़ाई जाती है। इसका यह एक ज्वलंत उदाहरण कहा जा सकता है। केन्द्र सरकार और राज्य सरकार कई बार सुप्रीम कोर्ट के दबाव में आकर नियम तो बना देती, किन्तु उसके वास्तविक क्रियान्वयन के प्रति कोई रूचि नहीं लेती है। और न ही इसका व्यापक प्रचार -प्रसार करती है। इस कारण अच्छे नियमों ओैर कानूनों का लाभ व्यक्ति नहीं ले पाता है। केन्द्र और राज्य सरकारों को चाहिए कि वे इस गुड सेमेरिटन लॉ के बारे में महत्वपूर्ण बातें प्रत्येक अस्पतालों में और पुलिस थानों में प्रदर्शित करना अनिवार्य करें। इसके साथ ही प्रिन्ट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के साथ ही सोशल मीडिया के माध्यम से इसका व्यापक प्रचार -प्रसार करें। यही नहीं उन्हें यह भी चाहिए कि प्रत्येक शहरों और ग्रामीण अंचलो में होर्डिंग लगाकर भी आम लोगों को इसकी जानकारी दें, ताकि आमजन को इस महत्वपूर्ण नियम की जानकारी प्राप्त हो सकें। और वे निडर होकर दुर्घटना में घायल लोगों की मदद कर सकें।

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