ऐसे स्कूलों के विरूद्ध होनी चाहिए सख्त कार्यवाही
डॉ. चन्दर सोनाने
उत्तराखंड के देहरादून से एक बेहद दुःखद और शर्मनाक खबर सामने आई है। यहाँ की एक दुष्कर्म पीड़ित छात्रा को स्कूलों मे प्रवेश देने से स्कूलों के प्रबंधको द्वारा मना कर दिया गया है। ऐसे स्कूलों के विरूद्ध सख्त कार्यवाही करने की आवश्यकता है।
उल्लेखनीय है कि उत्तराखंड के देहरादून में पिछले 14 अगस्त को साहसपुर के एक बोर्डिंग स्कूल में 4 छात्रों द्वारा कक्षा दसवी की एक छात्रा से सामूहिक दुष्कर्म का मामला सामने आया था। दुष्कर्म पीड़ित छात्रा के माता पिता ने अपनी पुत्री को देहरादून के अन्य स्कूलों मे दाखिले के लिए अनेक प्रयास किये तो उन्हें हर स्कूल से निराशा ही मिली। सभी स्कूलों ने उनकी बेटी को दाखिला देने से इन्कार कर दिया। स्कूलों का यह कहना था कि छात्रा स्कूल का माहौल खराब करेगी। इसलिए उसे दाखिला नहीं दिया जा सकता। यह एक अत्यन्त ही दुःखद मामला है। इसमें शिक्षा विभाग के साथ ही पुलिस को भी सम्बंधित स्कूलों के विरूद्ध कार्यवाही करना चाहिए। यही नही राज्य सरकार को भी चाहिए कि वह इस मामले की उच्च स्तरीय जांच करायें और संम्बिंधत स्कूलों के विरूद्ध कार्यवाही करें, ताकि भविष्य में कभी भी इस प्रकार के दुःखद प्रकरण की पुनरावृत्ति नहीं होने पाये।
यह दुःखद है कि देश में पिछले 5 साल में दुष्कर्म के 61 प्रतिशत बढ़ोत्तरी हुई । यह किसी भी देश के लिए शर्मनाक है। इससे भी ज्यादा दुख इस बात का है कि पिछले 5 सालों में नाबालिगो सें जुडे़ मामलों में 133 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। हमारे देश में रोजाना 46 प्रतिशत नाबालिग दुष्कर्म की शिकार हो रही है। नाबालिगों के प्रति हो रहे दुष्कर्म देश के पाँच राज्यों मध्यप्रदेश ,महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश, ओड़िशा और छत्तीसगढ़ में सर्वाधिक प्रकरण इस मामले मे दर्ज किये गये है। मध्यप्रदेश इस मामले में सिरमोर है। नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो के आंकडे बताते है कि वर्ष 2016 में नाबालिगों के लिए मध्यप्रदेश सबसे ज्यादा असुरक्षित राज्य रहा है। मध्यप्रदेश में सर्वाधिक 2479 दुष्कर्म के मामले दर्ज किये गये। महाराष्ट्र में 2310, उत्तरप्रदेश में 2115, ओड़िशा में 1258 तथा छत्तीसगढ़ में 984 प्रकरण दर्ज किये गये। ये आंकडे शर्मनाक है।
इसी वर्ष अप्रैल माह में केन्द्रीय केबिनेट ने 12 साल तक कि बच्चियों से दुष्कर्म के मामले में दोषियों को फांसी की सजा देने वाले अध्यादेश को मंजूरी दी है। केन्द्र शासन ने अत्यन्त सराहनीय निर्णय लिया है। किन्तु केन्द्र सरकार को दुष्कर्म के मामले में उम्र का बन्धन नही रखना था। दुष्कर्म के सभी प्रकरणो में दोषियों को फांसी की सजा दी जानी चाहिए। हांलाकि केन्द्र शासन द्वारा लिए गए उक्त फैसले के बाद न्यायालय द्वारा दोषियों को सजा देने के मामले में उल्लेखनीय तेजी आई है। यह एक शुभ संकेत है। यही नहीं कम से कम समय में सजा देने के प्रकरण मध्यप्रदेश सहित अन्य राज्यों से भी आ रहे है। यह हमें भरोसा दिलाते हैं कि न्यायालय इस दिशा में सजग है और वह अब और बेहतरी के साथ अपने दायित्व का निर्वहन कर रही है। न्यायालय द्वारा शीघ्र निर्णय दिये जा सकें, इसके लिए जरूरी है कि पुलिस विभाग द्वारा भी ऐसे प्रकरणों में मानवीयता और संवेदनशीलता के साथ तेजी से कार्य करें, ताकि ऐसे राक्षसों का दमन किया जा सके।
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