जल पुरूष राजेन्द्र सिंह की मदद से करें शिप्रा नदी को पुनर्जीवित
डॉ. चन्दर सोनाने
देश भर में जल पुरूष के रूप में प्रसिद्ध राजेन्द्र सिंह हाल ही में अमिताभ बच्चन के प्रसिद्ध कार्यक्रम कौन बनेगा करोड़पति में कर्मवीर के रूप में उपस्थित हुए। उन्होंने चर्चा के दौरान बताया कि लगभग एक हजार गांवो में लोगों को पानी संग्रहण करना सिखाया है। यही नहीं करीब दस मृतप्राय हो चुकी नदियों को भी उन्होंने गांव वालों की मदद से पुनर्जीवन प्रदान किया। मुख्य रूप से राजस्थान और महाराष्ट्र की इन नदियों को उन्होंने प्रवाहमान बनाया। ये नदियां लगभग सूख चुकी थी। जनसहयोग से उन्हांने इतिहास रच दिया।
उज्जैन की इस पवित्र नदी के पुनउर्द्धार के लिए अब जरूरत है जलपुरूष को उज्जैन आमंत्रित करने की, ताकि वह शिप्रा नदी को पुनर्जीवित करने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे सकें। लाखों लोगों की आस्था की यह पवित्र नदी अब बारह महीने नहीं बहती है। पिछले 2016 के सिंहस्थ में सरकार के समक्ष यह यक्ष प्रश्न उत्पन्न हुआ कि सिंहस्थ में आने वाले लाखों श्रद्धालुओं को आस्था की डुबकी कहाँ और कैसे लगायेगें ? उसका एक रास्ता निकाला गया। नर्मदा- शिप्रा लिंक योजना के माध्यम से शिप्रा नदी में नर्मदा का पानी मिलाया, तब कहीं जाकर श्रद्धालुओं ने सिंहस्थ में स्थान का पुण्य प्राप्त किया। किन्तु इन श्रद्धालुओं के द्वारा कहने को तो शिप्रा के पवित्र जल में स्नान किया गया। किन्तु यह पानी वास्तव में नर्मदा का था। एक तरह से यह कहा जा सकता है कि श्रद्धालुओं की आस्था के साथ खिलवाड़ किया गया है। या यह भी कहा जा सकता है कि सरकार कि मजबूरी थी। शिप्रा में जल ही नहीं था तो श्रद्धालुओं को कैसे स्नान कराया जाता ? सरकार के सामने यह जटिल प्रश्न था। इसका तात्कालिक समाधान यह निकाला गया कि शिप्रा नदी में नर्मदा का जल छोड़ा जाये और सिंहस्थ मना लिया जाये। और यही हुआ भी।
यह खुशी और सौभाग्य की बात है कि हमारे बीच देशभर में जलसंचयन कि दिशा में इतिहास रच देने वाले जल पुरूष के रूप में राजेन्द्र सिंह जी मौजूद हैं। वे और उनकी पूरी टीम, जहाँ जरूरत होती है, वहीं जलसंग्रहण के लिए पहुँच जाते हैं। यही नहीं लगभग मृत हो चुकी नदियों को जनयहयोग से संजीवनी पिलाकर उसे न केवल पुनर्जीवित कर देते है, बल्कि उसे बारह महीने बहने वाली नदी के रूप में भी रूपान्तरित कर देते हैं। आगामी सिंहस्थ शिप्रा के तट पर 2028 में आयोजित हाने वाला है। पर्याप्त समय है। राज्य सरकार को उज्जैन की इस शिप्रा नदी की दुर्दशा को दूर करने के लिए विषेषज्ञ चिकित्सक के रूप में हमारे बीच मौजूद जलपुरूष राजेन्द्रसिंह को आमंत्रित करना चाहिए। राज्य सरकार ही नहीं बल्कि उज्जैन के सभी राजनैतिक दलों के जनप्रतिनिधियां को भी इस सत्कर्म के लिए एकजुट होकर आगे आना चाहिए। उन्हें इन्दौर के समान अपने राजनैतिक मतभेद भुलाकर उज्जैन और षिप्रा के हित में जलपुरूष राजेन्द्र सिंह को उज्जैन लाने के लिए हर संभव प्रयत्न करना चाहिए।
शिप्रा नदी का उद्गम स्थल मध्यप्रदेश की महू छावनी से लगभग 17 कि. मी. दूर जानापाव की पहाड़ियों से माना गया है। यह स्थान भगवान विष्णु के अवतार भगवान परशुराम के जन्म स्थान के रूप में भी विख्यात है। अपने उद्गम स्थल से यह नदी इन्दौर जिला, देवास जिला, उज्जैन जिला होते हुए रतलाम जिले में होती हुई चंबल नदी में मिलती है। कुल 195 किमी लंबी बहने वाली इस नदी का सर्वाधिक हिस्सा 93 कि.मी. उज्जैन शहर और उज्जैन जिले में बहता है। मोक्षदायिनी इस शिप्रा नदी का काफी पौराणिक महत्व है। ब्रहम पुराण में भी शिप्रा नदी का उल्लेख मिलता है। एक किंवदंती के अनुसार शिप्रा नदी भगवान विष्णु के रक्त से उत्पन्न हुई थी। संस्कृत के महाकवि कालिदास ने अपने प्रसिद्ध काव्यग्रन्थ मेघदूत में भी शिप्रा नदी का उल्लेख किया है। स्कन्द पुराण में भी इस नदी की महिमा लिखी गई। मान्यता है कि प्राचीन समय में इसके तेज बहाव के कारण ही इसका नाम शिप्रा पड़ा। किन्तु आज यह नदी अपने नाम के प्रतिकूल हो गई है। केवल बारिश के दिनों में ही यह नदी बहती है। बारिश के बाद इसका प्रवाह मंद हो जाता है। अनेक जगहां पर यह नदी सूख जाती है। अब इसको पुनः प्रवाहमान बनाने की आवश्यकता है।
हर बारह वर्षमें एक बार उज्जैन में आस्था और विश्वास का महापर्व सिंहस्थ का आयोजन होता है। राज्य सरकार ने गत सिंहस्थ में करीब 400 करोड़ रूपये श्रद्धालुओं की सुख-सुविधा तथा सिंहस्थ मेले के आयोजन पर खर्च की गई है। इस सिंहस्थ पर्व पर देश भर के 13 अखाडों के साधु संत भी हजारों की तादाद में यहाँ शिप्रा नदी में आस्था की डुबकी लगाने आते हैं। इन साधु संतों की पेशवाई और स्नान को देखने के लिए लाखों लोग 12 साल तक इंतजार करते हैं। करीब 100 करोड़ रूपये की लागत से प्रदूषित खान नदी के गंदे पानी के शिप्रा में मिलने से रोकने के लिए एक बायपास योजना भी बनाई गई जो बारिश के दिन मे कोई काम नहीं करती है। आये दिन खान नदी का गंदा पानी त्रिवेणी पर शिप्रा में मिलकर शिप्रा के जल को प्रदूषित करता रहता है। बाहर से आने वाले श्रद्धालु इस बात से अन्जान है कि शिप्रा के पवित्र जल में डुबकी लगाने के लिए वे आते है और प्रदूषित तथा गंदे जल में स्नान कर वापस दुखी मन से लौटते हैं। अब इस स्थिति को बदलने की जरूरत है। खान नदी में मिलने वाले उद्योगो के प्रदूषित पानी को सख्ती के साथ रोकने की जरूरत है। यही नहीं खान नदी को भी प्रदूषित होने से बचाने की आवश्यकता है। इसके लिए भी विशेष प्रयास करने की जरूरत है।
मे़ाक्षदायिनी शिप्रा नदी के तट पर आयोजित होने वाले सिंहस्थ महापर्व ही नहीं बल्कि वर्ष भर आने वाले अनेक तीज त्यौहारों पर भी हजारों श्रद्धालु विशेषकर ग्रामीणजन इस पवित्र नदी में पुण्य की डुबकी लगाने आते हैं। अब यहाँ आये लोग शिप्रा के जल में ही स्नान का पुण्य प्राप्त करें, इसके लिए जरूरी है कि इस नदी को बारह माह बहने वाली नदी के रूप में परिवर्तित करने की। और आज हमारे बीच मौजूद जल पुरूष राजेन्द्र सिंह को आमंत्रित करने की, कि वे आयें और इस पवित्र नदी को एक बार फिर प्रवाहमान बनायें।
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