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महाकालेश्वर मंदिर की गरिमा को प्रशासन कर रहा कलंकित, मंदिर की अव्यवस्थाओं को छुपाने हेतु मीडिया पर लगाया प्रतिबंध


                               संदीप कुलश्रेष्ठ

                       उज्जैन का विश्व प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग श्री महाकालेश्वर मंदिर एक बार फिर प्रशासनिक अव्यवस्था का अखाड़ा बन गया है। गत बुधवार को बाबा महाकाल के दर्शन के लिए आये सेना के एक जवान ब्रजेन्द्र राठौर के साथ मंदिर के नन्दी गृह में वहाँ के सुरक्षाकर्मी,  पुलिस और कर्मचारियों के द्वारा जमकर मारपीट की गई। वहाँ मौजूद मीडिया द्वारा इसका वीडियो बनाया और वायरल हो गया। तो मंदिर प्रशासन के कान खडे हुए। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में समाचार आ जाने से तथा अगले दिन प्रिन्ट मीडिया में आने के डर से महाकाल प्रशासन द्वारा आईपीसी की धारा 188 के द्वारा मंदिर में मीडिया के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया गया। आये दिन मंदिर की अव्यवस्था के कारण देश भर से आने वाले श्रद्धालुओं की आस्था को चोट पंहुच रही है।

सेना के श्रद्धालु जवान के साथ की गई मारपीट -

                     उल्लेखनीय है कि बुधवार को सुबह भोग आरती के बाद गर्भगृह में प्रवेश की बात पर सेना के एक जवान श्री ब्रजेन्द्र राठोर को न केवल धक्का मारकर बाहर किया गया बल्कि वहाँ मौजूद सुरक्षाकर्मी योगेश जाधव ने उसे चांटा मार दिया। ये देख दूसरे सुरक्षाकर्मी और वहाँ मौजूद पुलिस और मंदिर के अन्य कर्मचारियों ने भी सुरक्षाकर्मी का साथ देते हुए न केवल सेना के जवान ब्रजेन्द्र राठौर के साथ जमकर मारपीट कर दी बल्कि उसके साथ आये परिवारजनों के साथ भी उन्होंने मारपीट की और पकड़कर पुलिस थाने ले गये। श्रद्धालु के साथ हुई इस मारपीट की घटना को मीडिया के द्वारा कवरेज कर लिया गया  और वह वायरल हो गया। उसमें स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा था कि सेना के जवान को बुरी तरह से मारा पीटा जा रहा है। इस वीडियो में सुरक्षाकर्मी की गलती स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही है।

                श्रद्धालुओं के साथ महाकाल मंदिर समिति के कर्मचारियों और सुरक्षाकर्मियों द्वारा अच्छा व्यवहार किया जाना चाहिए यह उनकी ड्यूटी  है जिसमे  सेना के जवान का तो विशेष ध्यान रखना चाहिए। मंदिर प्रशासन से जुड़ा हर आदमी जानता है कि दिन&भर किस तरह से और कैसे- कैसे लोगो को मंदिर समिति के लोग दर्शन के लिए उपकृत करतें है। ऐसे में मंदिर समिति में कोई तो एक समझदार ऐसा होता जो सेना के जवान को सम्मानित ढंग से दर्शन कराता।

मारपीट के बाद लगाई गई धारा 188 -

                      सोशल मीडिया पर उक्त हंगामा तेजी से वायरल होने पर मंदिर की अव्यवस्था उजागर होने पर कलेक्टर एवं महाकालेश्वर मंदिर प्रबंध समिति के अध्यक्ष श्री मनीष सिंह के आदेश पर संयुक्त कलेक्टर एवं मंदिर के प्रशासक श्री अभिषेक दुबे द्वारा आईपीसी की धारा 188 के तहत मंदिर में फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी प्रतिबंधित करने के आदेश दे दिये गये। इसमें खास बात यह है कि ये आदेश एक दिन पहले की तारिख अर्थात 13 नवंबर की तारिख में निकाला गया । जबकि मंदिर में श्रद्धालु से हुई मारपीट की यह घटना 14 नवंबर को हुई। उक्त घटना के कारण ही यह आदेश निकाला गया। किन्तु आदेश में जान-बूझकर एक दिन पिछली तारिख डाली गई, जिससे यह बताया जा सके कि इस आदेश का उक्त घटना से कोई लेना देना नहीं है, जबकि 14 नवंबर को हुई घटना के कारण ही यह आदेश जारी किया गया। यह विचारणीय प्रश्न है कि आखिर मंदिर प्रशासन को मीडिया से ऐसा क्या खतरा हो गया था कि धारा 188 लगाना पड़ी।

देंखे, क्या है धारा 188 -

                    आईये, आपको बताते हैकि इस धारा 188 में क्या लिखा है ? सबसे पहला वाक्य है -“श्री महाकालेश्वर मंदिर में आगन्तुक श्रद्धालुओं की सुरक्षा को दृष्टिगत रखते हुए श्रद्धालुओं को सुगमता से दर्शन कराये जाने हेतु गर्भगृह में वीडियोग्राफी / फोटोग्राफी किया जाना पूर्णतः प्रतिबंधित किया जाता है।“ आदेश के इस वाक्य से स्पष्ट है कि मंदिर आने वाले श्रद्धालुओं की सुरक्षा को मीडिया से खतरा है। अब यह महाकाल प्रशासन को कौन समझाये कि मीडिया से श्रद्धालुओं को किस प्रकार खतरा हो सकता है। इस आदेश का दूसरा वाक्य है “समस्त वीडियोग्रा्फर / फोटोग्राफर / मीडियाकर्मी बाबा महाकाल के दर्शन हेतु पधारने वाले विशिष्ट / अतिविशिष्ट अतिथि के आगमन के दौरान अधोहस्ताक्षरकर्ता की अनुमति पश्चात प्रथम बेरिकेट्स से वीडियोग्राफी/ फोटोग्राफी कर सकेंगे।“इस दूसरे वाक्य में यह स्पष्ट कर दिया गया है कि बिना अनुमति कोई मीडियाकर्मी अपना कार्य नहीं कर सकेगा। वह अनुमति भी प्रथम बेरिकेट्स के लिए ही होगी। यदि विशिष्ट अतिथि का आगमन होता है तो उसके कवरेज हेतु पहले प्रशासन से अनुमति अनिवार्य की गई है। जबकि विधानसभा चुनाव का समय चल रहा है और आये दिन विशिष्ट अतिथि मंदिर में भगवान का आर्शीवाद प्राप्त करने आ रहे हैं। इस आदेश का तीसरा और अंतिम वाक्य है - “उक्त आदेश का अक्षरशः पालन किया जाना अनिवार्य होगा। आदेश का उल्लंघन करने पर धारा 188 आईपीसी के तहत एफआईआर थाना महाकाल में करवाई जावेगी। “अर्थात यदि कोई भी मीडियाकर्मी इस आदेश का उल्लंघन करता है तो उसके विरूद्ध वैधानिक कार्यवाही की जायेगी। चूंकि यह आदेश 13 नवंबर को जारी होना बताया गया है। मंदिर में श्रद्धालु के साथ हुई मारपीट की घटना 14 नवंबर की है। इसलिए इस आदेश के तहत 14 नवंबर को मंदिर में मौजूद मीडियाकर्मी को इस आदेश के लपेट में भी लिया जा सकता है। मंदिर प्रशासन का उक्त आदेश मीडिया में तुगलकी फरमान ही कहा जा रहा है।

धारा 188 के उल्लंघन पर एक से छः माह तक कारावास का प्रावधान -

                           धारा 188 के अर्न्तगत कारावास और आर्थिक दंड दोनों का प्रावधान किया गया है। इसके अर्न्तगत यदि ऐसी अवज्ञा विधिपूर्वक नियुक्त व्यक्तियों को बाधा,क्षोभ या क्षति करें तो एक माह का सादा कारावास या 200 रूपये आर्थिक दंड या दोनो सजा हो सकती है। किन्तु यदि ऐसी अवज्ञा मानव जीवन स्वास्थ्य या सुरक्षा को संकट में लाये तो इसमें छः माह के कारावास की सजा या एक हजार रूपये आर्थिक दंड या दोनो सजा हो सकती है। यह एक जमानती और संज्ञेय अपराध है जो मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय है। इसमें महत्वपूर्ण यह भी है कि यह अपराध समझौता करने योग्य नहीं है। आखिर ऐसी क्या आवश्यकता पड़ गई कि मीडियाकर्मियो के लिए यह धारा लगाना जरूरी समझा गया। उक्त आदेश से मीडिया में गहरा असंतोष है और वह इस आदेश को तुरंत निरस्त करने की मांग कर रहा है।

पिछले छः माह में हुई अनेक घटनाएँ-

                        उक्त घटना पहली बार हुई है , ऐसा नही है। पहले भी मंदिर के अन्दर और बाहर इस प्रकार की घटनाएँ हो चुकी है। गत जून माह में मंदिर के बाहर दुकानदारों में मारपीट हुई थी। जुलाई माह में मंदिर के अंदर श्रद्धालु और गार्ड्स के बीच मारपीट की घटना हो चुकी है। अगस्त माह में महाकाल मंदिर के बाहर श्रद्धालु को विवाद के बाद चाकू मारे जाने से एक मौत हो चुकी है। अगस्त माह में ही दो श्रद्धालुओं को चाकू मारे जाने की घटना हो गई है। ऐसी घटना के बाद मंदिर प्रशासक को मंदिर की व्यवस्था में सुधार करने की बजाय मंदिर की अव्यवस्था को उजागर होने से रोकने के लिए एक आसान तरीका निकाला गया है। वह यह कि मंदिर में मीडिया का प्रवेश ही प्रतिबंधित कर दिया जाये, जिससे की मंदिर की कोई भी अव्यवस्था की कोई बात बाहर ही न जा पाये।

अब कैसे होगा महाकालेश्वर मंदिर का विश्वव्यापी प्रचार-प्रसार-

                          जब मंदिर प्रशासन को लगता है कि कवरेज किया जाना है तब वह मीडिया का उपयोग करता है चाहे शैव महोत्सव हो श्रावण महोत्सव हो महाशिवरात्रि हो। ऐसे में मंदिर प्रशासक द्वारा धारा 188 के अर्न्तगत निकाला गया आदेश निःसंदेह मीडिया के लिए अपमानजनक है। यह आदेश जारी कर प्रजातंत्र के चौथे स्तभं की स्वतत्रंता पर प्रहार भी किया गया है। इस आदेश के विरूद्ध मीडिया को आगे आना होगा। और उसे इस आदेश के विरूद्ध व्यापक अभियान छेड़ना होगा। मंदिर प्रशासन के लिए यह धारा लगाना स्वयं पर तमाचा है। और यही उसकी अक्षमता दिखाता है कि उसे मीडिया के लिए धारा 188 लगाना पड़ी। देश में इससे भी अधिक संवेदनशील स्थान है जहां मीडिया को आने जाने पर कोई रोक-टोक नही है। एक और तो शासन और प्रशासन दोनो चाहता है कि इस महाकालेश्वर मंदिर का विश्वव्यापी प्रचार प्रसार हो दूसरी और प्रशासक द्वारा धारा 188 का प्रयोग कैसे अपने उद्देश्य में सफल हो सकेगा। इसके लिए तो उसे मंदिर में मीडिया के प्रवेश के लिए सुगम व्यवस्था करनी चाहिए ताकि वह बिना रोक-टोक के अपना कार्य कर सके। मंदिर में उसे श्रद्धालुओं के लिए पारदर्शी व्यवस्था बनानी होगी जिससे इस तरह की अव्यवस्था का शिकार होकर उसका अपमान न हो। आम श्रद्धालुओं को महसूस हो कि यह मंदिर उसके लिए है। मंदिर समिति सिर्फ वीआईपी व्यवस्थाओं के लिए नहीं है।

 पूर्णकालिक प्रशासक की जरूरत -

                                महाकाल मंदिर की विश्वव्यापी प्रसिद्धि और दुनियाभर से श्रद्धालुओ के आगमन और व्यवस्थाओ को लेकर पूर्व मे भी पूर्णकालिक प्रशासक की मांग उठती रही है। कुछ प्रयोग किये भी गये परन्तु वह सेवा निवृत्ति वाले होने की वजह से प्रशासन की नजर में ठीक नही रहे होंगे। ऐसे में सेवारत रहते ही किसी को पूर्णकालिक प्रशासक बनाया जाना चाहिए। वर्तमान में मंदिर के प्रशासक के पद पर उज्जैन विकास प्राधिकरण के मुख्यकार्यपालन अधिकारी श्री अभिषेक दुबे को तैनात किया गया है। गत करीब तीन साल में श्री दुबे छठे प्रशासक है। यहां पहले भी बहुत अच्छे प्रशासक रह चुके है जिन्होने बहुत अच्छा कार्य किया उनके कार्यकाल को आज तक याद किया जाता है। पूर्णकालिक प्रशासक नहीं होने के कारण श्री दुबे अपना अधिकांश समय प्राधिकरण में ही बिताते है। और अतिरिक्त कार्यभार के कारण मंदिर की व्यवस्थाएं किस तरह से अव्यवस्थाओं मे बदल रही है यह साफ दिखाई दे रही है। अगर यहां समय देने वाला प्रशासक हो तो ऐसी घटना ही न हो। धारा 188 का आदेश जारी करने से सहज ही सिद्ध होता है कि वे मंदिर के प्रशासक के रूप में किस तरह से सिद्ध हुए है इससे बडी शर्मनाक बात क्या होगी कि लोकतंत्र में ऐसे प्रशासक रहते मीडिया पर प्रतिबंध लगाया जाये। आज यहाँ आवश्यक है कि इस विश्व प्रसिद्ध ज्योर्तिलिंग मंदिर में पूर्णकालिक प्रशासक नियुक्त किया जाये, ताकि मंदिर कि गरिमा  के साथ कोई खिलवाड़ नही कर सके और कोई प्रशासनिक अधिकारियों के अलग - अलग प्रयोग करने की प्रयोगशाला न बनें।

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