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चुनावी मुद्दों के बीच पिसता आम आदमी


                                            संदीप कुलश्रेष्ठ
                                      देश के पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं। इनमें मध्यप्रदेश भी एक है। उम्मीदवारां ने नामांकन पत्र भर दिये हैं और आम आदमी से वोट की जुहार लगा रहे हैं। विभिन्न राजनैतिक दल अपने-अपने घोषणा पत्र भी जारी कर रहे हैं। इन घोषणा पत्रों में कहीं भी आम आदमी दिखाई नही देता है। आज हर काम में भ्रष्टाचार व्याप्त है। दिनो दिन मंहगाई बढ़ रही है। बेरोजगार रोजगार के लिए भटक रहे हैं। किसी भी प्रदेश में स्वास्थ्य, शिक्षा और कुपोषण की स्थिति के आधार पर उस राज्य का विकास सहज ही देखा जा सकता है। हर व्यक्ति से स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार जुडे हैं। किन्तु चुनावी मुद्दों के बीच ये मुददे कहीं प्रमुखता से नजर नहीं आ रहे हैं। चुनावी मु्ददां के बीच आम आदमी पिसता जा रहा है। किन्तु किसी भी राजनैतिक दल को इसकी चिन्ता नहीं है। राजनैतिक दल और व्यक्ति ऐन केन प्रकारेण वोट कबाड़ने में लगे हुए है। 
                                    राजनैतिक दलों ने बहुत चालाकी से एक नया नजरिया चुन लिया है। वह उस व्यक्ति को अपने पार्टी का टिकट देता है जो साम दाम दंड भेद से, कैसे भी हो, चुनाव जीत सकता है। उसकी सारी बुराईयाँ और अपराध माफ कर दिये जाते है। आज राजनीति के नैतिक मूल्यां में जबरजस्त गिरावट आई है। इस देश और प्रदेश के विकास में जातिवाद सबसे बड़ा मुद्दा है, किन्तु सभी राजनैतिक दल हर चुनाव और इस चुनाव में भी जाति को खत्म करने की बजाय उसे बनाये रखना चाहते हैं। जातिगत समीकरण के आधार पर ही व्यक्ति को खड़ा किया जाता है । ये राजनैतिक दल, जाति को खत्म करने के बजाय हर चुनाव में उसे और पोषित करते है। 
अच्छी छवि वाले व्यक्ति चुनाव हार जाते हैं -
                                     सामान्यतः यह कहा जाता है कि अच्छी छवि वाले लोग राजनीति में नहीं मिलते है। मिलते भी है और वे अपने बलबूते पर चुनाव में खडे भी होते है ,तो जनता उन्हें नहीं चुनकर किसी अपराधी को चुनना ज्यादा पसंद करती है। यह दुःखद एवं आष्चर्यजनक है। देष में श्री टी एन शेषन और एम एन बुच इसके उदाहरण है। सब जानते थे वे एक ईमानदार, मेहनती और कल्पनाशील व्यक्ति हैं। उनमें कल्पना को चरितार्थ करने की अद्भूत शक्ति है, किन्तु वे जब निर्दलीय खड़े हुए तो हार गये। इसें क्या कहा जाये ? आज हालात ये है कि जो किसी कारण बिजली के बिल नही भर पाते है उनके घर का सामान नीलाम हो जाता है। और जो जानबूझकर बिल नहीं भरते हैं उनके बिल माफ कर दिये जाते हैं। 
50 लाख किसानो पर 60 हजार करोड़ का कर्ज -
                                         मध्यप्रदेश में किसानां के हालात सुधारने के अनेक दावे किये जाते हैं। किन्तु उनकी हालत बद से बदतर होती जारही है। प्रदेश के 50 लाख किसानां पर 60 हजार करोड़ रूपये का कर्ज है । मध्यप्रदेश सरकार ने चुनाव के पूर्व हर एक व्यक्ति को साधने के लिए हजारां करोड़ रूपये की घोषणा कर दी है, किन्तु उसने किसानो के ऋण माफ नही किये है। मध्यप्रदेश में अनेक किसानों ने कर्ज के कारण आत्म हत्या कर ली है । किसानों की इस स्थिति पर लगभग सभी राजनैतिक दल खामोश हैं। 
हर दिन 92 बच्चों की मौत -
                                        मध्यप्रदेश में कुपोषण की स्थिति अत्यन्त ही चिंताजनक है। महिला एवं बाल विकास के ही आंकड़ां के अनुसार मध्यप्रदेश में जनवरी 2016 से जनवरी 2018 के बीच दो साल के दौरान 57 हजार बच्चों ने कुपोषण के चलते दम तोड़ दिया। प्रदेश में कुपोषण से हर रोज 92 बच्चों की मौत हो जाती है। यह स्थिति अत्यन्त चिंताजनक है। किन्तु चुनावी मुद्दो के बीच यह मुद्दा नदारद है। 
स्वास्थ्य की स्थिति चिंताजनक -
                                         देश की 69 प्रतिशत आबादी गांवो में रहती है। जबकि 20 प्रतिशत डॉक्टर ही ग्रामीण क्षेत्रां में सेवा दे रहे हैं। इससे सहज ही अंदाज लगाया जा सकता है कि देश में स्वास्थ्य की हालत क्या होगी । हमारे देश में कुल 5624 कम्युनिटी हेल्थ सेंटर है। इनमें स्वीकृत पद 11910 है किन्तु इसमें से 8106 खाली पडे़ है। जबकि जरूरत 22496 की है। प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रो में डॉक्टरो की स्वीकृत संख्या 34068 है किन्तु तैनात केवल 26464 ही है। 8774 पद खाली पडे है। यही नही कम्युनिटी हेल्थ सेंटर में फिजिशियन की संख्या 2832 है किन्तु इसमें से केवल 925 ही तैनात है। कुल 1989 पद रिक्त पडे है। कम्युकनिटी हेल्थ सेंटर में स्पेशलिस्ट डॉक्टरो की संख्या 11262 है किन्तु केवल 4192 ही तैनात है अधिकांश 7359 पर रिक्त पडे है। पीएचसी और सीएचसी में नर्सिंग स्टाफ के 78530 पद स्वीकृत है। किन्तु 69022 ही तैनात है। 12265 पद रिक्त पडे है। ऐसी स्थिति में प्रदेश की स्वास्थ्य की स्थिति की सहज ही कल्पना की जा सकती है । किन्तु चुनावी मुद्दों में आम आदमी के लिए महत्वपूर्ण स्वास्थ्य कहीं नजर नही आता है। 
लोगों को ही आना पडे़गा आगे -
                                        विधान सभा चुनाव की चकल्लस के बीच आम आदमी के मुद्दे कहीं नजर नहीं आ रहे हैं। वर्तमान में सभी दलो की चुनावी राजनीति मुद्दां को भटकाती है। आम आदमी इन चुनावी मुद्दां के बीच पिसता जा रहा है। ऐसी स्थिति में आम आदमी को ही आगे आना होगा। चुनावी मौसम है। कई राजनैतिक दल के उम्मीदवार वोट की अभिलाषा लिये आमआदमी के पास ही आयेंगे । इसलिए उसी आम आदमी को चाहिए किवे इन उम्मीदवारों को चेतायें और अपनी समस्या बतायें ,प्रमुख मुद्दे समझायें, ताकि राजनैतिक दलों और उम्मीदवारो को समझ आये और वे वास्तविक मुद्दे को समझकर उसके लिए काम करने का प्रण ले सके। आम मतदाता को यह भी चाहिए की वह अच्छी छवि वाले व्यक्ति को ही चुनें,ताकि वह उनकी वास्तविक समस्या को समझें और उसे दूर करने का प्रयास करें। इसके साथ ही सभी मतदाताओं को अपने मत के अधिकार का महत्व समझना चाहिए और सभी को अच्छे व्यक्ति को चुनने के लिए आगे आना चाहिए। अभी हालात ये है कि लगभग 60 से 70 प्रतिशत ही मतदान हो पाता है । इसमें भी 30 से 35 प्रतिशत मत प्राप्त करके लोग सत्ता में आ जाते है। इस हालत को भी बदलने की जरूरत है। 
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