अमित शाह का बयान : न्यायपालिका में सीधा हस्तक्षेप
डॉ. चन्दर सोनाने
भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अमित शाह ने हालही में केरल के कुन्नूर में आयोजित एक सार्वजनिक सभा में खुलकर कहा कि न्यायालयों को निर्णय देते समय जनभावनाओं और धार्मिक आस्थाआें का ध्यान रखना चाहिए। श्री अमित शाह का यह बयान सीधे-सीधे न्यायपालिका में हस्तक्षेप माना जा रहा है । इसकी विपक्ष ने तो तीखी आलोचना की ही है, देश की न्याय व्यवस्था पर विश्वास करने वाले व्यक्तियां भी यह नागवार गुजरा है।
देश के संविधान ने देश को चलाने के लिए तीन आधार स्तम्भ न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका को व्यापक अधिकार देते हुए उनकी सीमाएं भी बताई है। संविधान ने इन तीनों के कार्य भी विस्तार से बताएँ हैं। हमारे देश की अभी तक की यह गौरवशाली परम्परा रही है कि तीनों स्तम्भ स्वतंत्र रूप से कार्य कर रहे हैं । और जब-जब कोई एक स्तम्भ दूसरे में अनावश्यक हस्तक्षेप करता है तो उसकी चारों ओर आलोचना होती है। हर एक राजनैतिक व्यक्ति को यह ध्यान रखना चाहिए कि वह विधायिका का प्रतिनिधित्व कर रहा है और उसे न्यायपालिका और कार्यपालिका में सीधा हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।
हाल ही में सबरीमाला मंदिर में 10 से 50 वर्ष तक की महिलाओं के प्रवेश पर अथवा उसके प्रतिबंध पर व्यापक प्रदर्शन और बयान जारी हो रहे हैं। उल्लेखनीय है कि सबरीमाला मंदिर केरल राज्य के पेरियार बाघ अभ्यारण्य में पहाड़ियां की सुरम्य श्रृंखला में 1574 फीट ऊंचे शिखर पर बना हुआ है। यह मंदिर भगवान अय्यपा स्वामी का है। यह मंदिर हिन्दुआें के शैव, वैष्णव, शाक्त और श्रमण परम्परा का संगम भी है। यहाँ हर वर्ष करीब तीन करोड़ श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं। यह मंदिर बहुत प्राचीन बताया जाता हैं। इसका जीर्णोद्धार सन 1950 में हुआ है। इस मंदिर में हर साल माह नवंबर से जनवरी तक लाखों श्रद्धालु भगवान अय्यपा के दर्शन के लिए आते है। यहाँ यह माना जाता है कि भगवान अय्यपा ब्रहम्चारी है । इसलिए रजस्वला महिलाओं का प्रवेश इस मंदिर में वर्जित है। कहा जाता है कि सन 1991 में केरल उच्चन्यायालय के एक फैसले के पहले तक महिलाएँ यहाँ दर्शन के लिए आती थी। लेकिन उच्चन्यायालय द्वारा पुरानी परम्परा को सही ठहराने के बाद मंदिर के संचालक त्रावनकोर देवस्वम बोर्ड ने 10 वर्ष से 50 वर्ष तक की महिलाओं का प्रवेश पूरी तरह वर्जित कर दिया। इस कारण ये मामला सुप्रीम कोर्ट गया। और सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय के फैसले को रद्द कर संविधान में लैंगिक समानता के आधार पर सभी आयुओं की महिलाओं के प्रवेश की अनुमति दे दी ।
स्ुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद केरल में सत्तारूड़ लेफ्ट सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार कार्यवाही करने के इन्तजाम किये। इससे भाजपा में बैठे वरिष्ठ नेताआें को एक नई आस बंध गई । केरल राज्य में राजनैतिक लाभ लेने के लिए उसने परम्परा का निर्वाह करने का मुद्दा उठाया और महिलाओं के पक्ष में लिये गये इस निर्णय को बदलने के लिए महिलाओं को ही सामने खड़ा कर दिया। इससे सबरीमाला क्षेत्र में तनाव की स्थिति निर्मित हो गई । भाजपा द्वारा प्रेरित इस तीव्र आन्दोलन के कारण 10 से 50 वर्ष तक एक भी महिलाओं को प्रवेश नहीं करने दिया जा रहा है। यह स्थिति वर्तमान में बनी हुई है।
अब यहाँ सवाल ये उत्पन्न होता है कि भाजपा के श्री अमित शाह के द्वारा यह कहना कि न्यायपालिका को ऐसे ही फैसले देना चाहिए जिनका पालन कराया जा सके , क्या उचित कहा जा सकता है ? यह सीधा-सीधा न्यायपालिका के कार्य में हस्तक्षेप ही तो है। श्री अमित शाह सबरीमाला मंदिर के बहाने न्यायपालिका को ऐसी नसीहत दें जिससे की वह उनके अनुसार चले कदापि उचित नहीं कहा जा सकता। श्री अमितशाह सबरीमाला मंदिर के बहाने अपने राजनैतिक महत्वकांक्षाआें की पूर्ति करना चाहते हैं तथा केरल में अपनी पेठ बनाना चाहते है। श्री अमित शाह अपने राजनैतिक उद्देश्य की पूर्ति के लिए राजनीति करना चाहते है, इससे किसी को कोई एतराज नहीं, किन्तु विधायिका द्वारा न्यायालय में हस्तक्षेप कदापि स्वीकार नहीं किया जायेगा। यह एक स्वतंत्र प्रजातांत्रिक देश में कदापि उचित नहीं कहा जा सकता। एक तरह से यह संविधान में ही हस्तक्षेप माना जा रहा है।
....................................0000.......................