अब उज्जैन का नाम उज्जयिनी करने की जरूरत
संदीप कुलश्रेष्ठ
उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हाल ही में ऐतिहासिक काम कर दिखाया है। उन्होंने उत्तरप्रदेश की कुंभ नगरी इलाहाबाद का नाम बदलकर प्रयागराज कर दिया है। इस तरह उन्हांने लाखों धर्मालु और श्रद्धालुआें की भावना को ध्यान में रखकर ये निर्णय लिया है ।अब इसी तरह मध्यप्रदेश की कुंभ नगरी उज्जैन की बारी है। यहाँ के लाखों श्रद्धालुओं की आस्था के अनुरूप उज्जैन का नाम अब उज्जयिनी करने की आवश्यकता है। मध्यप्रदेश के मुखिया श्री शिवराज सिंह चौहान का उज्जैन के प्रति विशेष आदर और सम्मान रहा है। किन्तु प्रदेश में विधानसभा चुनाव की घोषणा हो जाने के कारण वे अभी कुछ नहीं कर सकते हैं। किन्तु वह इतना तो कर सकते हैं कि वे भाजपा के घोषणा पत्र में तथा श्री कमलनाथ और श्री ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस के घोषणापत्र में यह जरूर शामिल कर सकते हैं कि यदि उनकी सरकार आई तो उज्जैन का नाम उज्जयिनी किया जायेगा।
उज्जयिनी एक धार्मिक और पौराणिक नगरी हैं। यह नगरी अपने अनादि, पुरातनता, धार्मिक , वैदिक और पौराणिक महत्व के कारण भारत ही नहीं विश्व की सर्वाधिक पुरातन नगरियों में एक गिनी जाती है। इस नगरी के अतिविशिष्ट नगरी होने के संकेत तथा प्रतीक चिह्न विभिन्न ग्रंथों , शोधपत्रों तथा पुरातत्वीय प्रमाणों में मिलते हैं। रामायण और महाभारत काल में भी इस नगरी के अतिविशिष्ट होने के संकेत उपलब्ध हैं। सामान्य रूप में प्राप्त पुरातात्विक प्रमाणों के अनुसार ईसा पूर्व 6वीं से 7वीं शताब्दी में भी इस पुरातन नगरी उज्जयिनी के प्रमाण मिलते हैं।
उज्जयिनी का इतिहास हमारी देश की सांस्कृतिक धरोहर है। प्रत्येक कल्प में उज्जयिनी के नाम बदलकर रखे गये थे। श्वेतवराह कल्प में इसका नाम उज्जयिनी मिलता है, जो इसकी प्राचीनता का प्रतीक है। यही नहीं सूत्र ग्रन्थों और पुराणों में उज्जयिनी के जो वर्णन मिलते हैं, उसके आधार पर यह नगर पांच हजार वर्ष पूर्व से विद्यमान है। भागवद् के स्कन्ध में भगवान श्रीकृष्ण और बलराम दोनों भाईयों का विद्या अर्जन हेतु इस नगरी में गुरूदेव सांदीपनि ऋषि के आश्रम में आने की कथा कही गई है। इससे स्पष्ट प्रमाण मिलते हैं कि यह नगरी पांच हजार वर्ष पूर्व से है।
इस उज्जयिनी नगरी के अनेक नामों का उल्लेख पुराणो में मिलता है। इस नगर के विभिन्न नाम और उसका महत्व इस प्रकार है -
उज्जयिनी -
उज्जयिनी नगरी जिस जनपद में थी ,उसका नाम अवन्ति था। जातक साहित्य में इसका उल्लेख मिलता है कि अवन्ति के राजा चण्ड प्रद्योत उज्जयिनी में निवास करता था। इस बात की पुष्टि अन्य ग्रन्थां और संस्कृत साहित्य से भी होती है। स्कन्ध पुराण के 28 वें अध्याय में इस बात का उल्लेख मिलता है कि इस नगर के अधिष्ठाता देव महादेव ने त्रिपुरी के शक्तिशाली राक्षस अंधकासुर को पराजित कर विजय प्राप्त की थी। इसीलिए स्मृति स्वरूप इस नगर का नाम उज्जयिनी रखा गया।
अवन्तिका -
उज्जयिनी अवन्ति जनपद की महत्वपूर्ण नगरी थी ,जो कालान्तर में राजधानी बन गई। इस कारण अवन्तिका अवन्तिपुरी के नाम से विख्यात हो गई। मृच्छकटिकम् , दशकुमारचरितम् आदि में अवन्तिका और अवन्तिपुरी का उल्लेख मिलता है। स्कन्ध पुराण में यह उल्लेख मिलता है कि इस नगरी का नाम अवन्तिका इसलिए रखा गया क्यांकि यह नगरी प्रतिकल्प की समाप्ति पर देवताओ के पवित्र स्थल, औषधियों और प्राणियां की रक्षा करती है।
कनकश्रृंगा -
नारदीय और स्कन्धपुराण में यह नगरी कनकश्रृंगा के नाम से प्रसिद्ध है। इस नाम के सम्बन्ध में यह कहा जाता है कि उज्जयिनी के समीप कनकगिरि है। बालभट्ट ने कादम्बिरी में उज्जयिनी वर्णन के समय संभवतः इसी कारण इसे कनकश्र्ृंगा कहा है।
कुशस्थली -
कुशस्थल उज्जैन का एक अन्य नाम है। इस नाम का उल्लेख नारदीय और स्कन्ध पुराण में मिलता है। स्कन्ध पुराण में यह उल्लेख मिलता है कि यहाँ ब्रहमा ने तर्पण किया था। कहा जाता है कि ब्रहमा ने कुश घास के तृण यहाँ फेंके थे इसीलिए इसका नाम कुशस्थली या हेम श्रृंगा पड़ा।
पद्मावती -
जैन कवि सोमदेव ने अपने काव्य यशस्तिलकचम्पू में उज्जयिनी के अधिपति का वर्णन पद्मावती नगरी के राजा के रूप में किया है। पद्मावती नाम धन सम्पदा को दर्शाता है। स्कन्ध पुराण में लक्ष्मी के निवास के कारण ही इस नगरी को पद्मावती कहा गया है। कालिदास ने भी इस नगरी की मणिमाणिक्यों की प्रशंसा की है। उज्जयिनी पद्मराग मणियों के कारण प्रसिद्ध थी, इसीलिए इसका नाम पद्मावती हो गया।
कुमुद्वती -
नदी ,सरोवरों, उद्यानों से परिपूर्ण उज्जयिनी नगरी में हमेशा कुमुदिनी और कमल खिलते थे। इसीलिए इस नगरी को स्कन्धपुराण में कुमुद्वती कहा गया है। कुमुदिनी के उल्लेख में बाणभट्ट ने कादम्बरी में सुन्दर उद्यानां और जलाशयां का उल्लेख किया है, जिनमें कमल खिले रहते थे। इसीलिए इस नगरी को कुमुद्वती भी कहा जाता है।
अमरावती -
अमरावती नाम देवतावास और सुंदर रमणियो के कारण पड़ा। पद्मप्राभृतक और पादताडितक साहित्य में इस नगर का अन्य देशां के साथ सम्बन्ध होने से इसे सार्वभौम नगर कहा जाता है। इसी कारण 10 वीं शताब्दी के लेखक पद्मगुप्त परिमल ने इस नगरी को अमरावती कहा है।
प्रतिकल्पा -
यह नगरी अपने पुरातन इतिहास के साथ जीवित होने के कारण स्कन्ण पुराण में प्रतिकल्पा के नाम से भी जानी गई है। सोमदेव और कथासरित्सागर में 4 युगों में क्रमशः पद्मावती, भोगवती, हिरण्यवती और उज्जयिनी नाम बताये गये हैं।
उज्जैन के विकास के साथ बड़ी विडम्बनाएँ हैं। यहाँ विकास के नाम पर भी विभिन्न राजनैतिक दल एक नहीं हो पाते है, जैसे समीप के इन्दौर नगर में होता आया है। इन्दौर शहर में विकास की बात पर विभिन्न राजनैतिक दल अपने - अपने मतभेदो ंको भुलाकर एक जाजम पर आ बैठते हैं। इसके एक नहीं अनेक उदाहरण हैं ,जो सब जानते है। यही जज्बा उज्जैन के लोगो में भी होना चाहिए तभी उज्जैन, इन्दौर के समान अपना बहुमुखी विकास कर सकता है। उत्तरप्रदेश के इलाहबाद का नाम बदलकर जब प्रयागराज हो सकता है तो उज्जैन का नाम भी बदलकर उज्जयिनी हो सकता है । जरूरत सिर्फ इस बात कि है कि उज्जैन के समस्त राजनैतिक , सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक क्षेत्र के विद्वतजनां को एक साथ इस मुद्दे पर एकजुट होकर प्रयास करने की है। यदि ऐसा हो सकेगा तो शीघ्र ही उज्जैन के वासी उज्जयिनी नगरी में रहने का गौरव हासिल कर सकेंगे।
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